आई एम टी मानेसर से सटे गांव-बस्तियों के रास्तों के बुरे हाल

मजदूरों को अपने पूरे जीवन भर ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मजदूर फैक्टरियों में, फैक्टरी मालिकों/ठेकेदारों के जुल्मों सितम से परेशान रहते हैं। महंगाई की मार झेलने को मजबूर होते हैं। महंगा इलाज करवाने को मजबूर होते हैं। मकान मालिकों की गालियां-बदतमीजी सहने को मजबूर होते हैं। और जिन गांव-बस्तियों में मजदूर रहते हैं वहां की खराब व्यवस्था में रहने को मजबूर होते हैं। आम मेहनतकश जनता की ये समस्याएं इनके जीवन के हिस्से के रूप में जुड़ जाती हैं। इन सभी समस्याओं का समाधान नहीं मिल पाने और संघर्ष के विकल्प के अभाव में ये किस्मत भाग्य आदि के सहारे जीवन जीने को मजबूर होते हैं।
    
हरियाणा का गुड़गांव जिला मिलेनियम सिटी कहलाया जाता है। इस शहर में सैकड़ों से ज्यादा गगनचुंबी इमारतें हैं। ढेरों आधुनिक औद्योगिक इमारतों का निर्माण किया गया है। इन इमारतों, फैक्टरियों का निर्माण करने वाले मजदूर किन परिस्थितियों में रहते हैं, इन मजदूरों को इनके रिहायशी इलाकों में क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, ये सवाल महत्वपूर्ण बन जाता है। मजदूरों के रिहायशी इलाकों में लगभग एक जैसी समस्या मौजूद है।
    
हम यहां गुड़गांव के मानेसर में आईएमटी से सटे गांवों और उनमें रहने वाले मजदूरों के रहन-सहन की स्थिति के बारे में थोड़ा प्रकाश डालेंगे। यहां स्थापित किए गए उद्योगों का नामकरण (आधुनिक औद्योगिक शहर) आई एम टी किया गया है। सरकार द्वारा इन उद्योगों और इनके मालिकों को ढेरों सुविधाएं देकर इनकी जान-माल की गारंटी की जा रही है। लेकिन मालिकों के मुनाफे और सरकार के राजस्व का आधार मजदूरों-मेहनतकशों के जीवन की सुरक्षा और उनके रिहायशी इलाकों में सुख-सुविधाओं के सवाल से न मकान मालिकों, न फैक्टरी मालिकों और न ही सरकार को कोई लेना-देना है। इनको तो अपने-अपने हितों की पूर्ति होते रहने से ही मतलब है।
    
मानेसर के आई एम टी से सटे 8-10 गांव हैं जिनमें मजदूरों की बड़ी आबादी किराए पर रहती है। लेकिन इन गांवों की सड़कें, गलियां टूटी-फूटी और गलियों में कीचड़ और गंदा पानी फैला रहता है। क्योंकि यहां सड़कों व नालियों की नियमित मरम्मत नहीं हो पाती है। मजदूरों को काम पर रोज गंदगी भरी सड़कों/गलियों से जाना-आना  होता है। लेकिन जब थोड़ी सी भी बारिश हो जाती है तो मजदूरों को और ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए यहां के सरपंच नाम के सरपंच बने रहते हैं जबकि इन सभी गांवों के सरपंचों ने मिलकर नूहं दंगों के दौरान मुसलमानों के बहिष्कार के लिए अनेकों पंचायतें की थीं। हालांकि अब ये गांव नगर निगम मानेसर में सम्मिलित कर लिए गए हैं। इसके बावजूद भी इन समस्याओं के समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। सबने इन समस्याओं की ओर से अपनी आंखें बंद कर रखी हैं।
    
जबकि पिछले कुछ सालों से हाईवे और पुलों की खूब चर्चा हुई। इनकी तारीफ में इतने पुल बांधे गए, जितने पुल बने भी नहीं। पुलों व हाईवे को देश-समाज के विकास का आधार घोषित किया गया। असल में मजदूरों-मेहनतकशों के रिहायशी इलाकों की खराब व्यवस्था को नहीं दिखाया गया। ऐसी स्थिति में मजदूरों-मेहनतकशों को ये समझना होगा कि ये पूंजीवादी व्यवस्था है और इस व्यवस्था में मजदूरों का श्रम ही इनको प्यारा होता है न कि मजदूर। इस स्थिति को बदलने के लिए मजदूर वर्ग को खुद ही अपनी लड़ाई लड़ने की जरूरत है।             -गुड़गांव संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।