कहावत है कि नंगे राजा को नंगा कहने के लिए एक बच्चे के साहस की आवश्यकता होती है।
यह कहावत संभवतः हैन्स क्रिसियन एन्डरसन द्वारा प्रस्तुत बालकथा ‘सम्राट की नयी पोशाक’ से उपजी। स्वयं एन्डरसन ने यह बालकथा तेरहवीं सदी से ही चली आ रही एक कहानी के आधार पर रची।
इस कथा में एक मूर्ख और अहंकारी राजा है जिसे कपड़ों का बहुत शौक है। वह हर घंटे अपनी पोशाक बदलता है। सारे लोगों को यह पता है। इसी का फायदा उठाने के लिए कुछ ठग उस राजा के पास आते हैं और कहते हैं कि वे ऐसी शानदार पोशाक बना सकते हैं जो राजा ने कभी नहीं देखी होगी। बस वह मूर्ख लोगों को नहीं दिखाई देगी। राजा स्वयं को तो बुद्धिमान समझता ही था इसलिए उसने अपने दरबारियों में से मूर्ख लोगों की पहचान करने के लिए सबको यह पोशाक पहनाने की सोची। उसने ठगों को ढेर सारा पैसा व सोना-चांदी दिया कि वे राजा समेत सबके लिए यह अद्भुत पोशाक बनाएं। ठग पोशाक बनाने का अभिनय करते रहे और अंत में बताया कि सबके लिए पोशाक तैयार हो गयी है। राजा ने इस शानदार नयी पोशाक में राजधानी में जुलूस निकालने का निर्णय लिया जिससे प्रजा उसे देख सके। ठगों ने राजा समेत सारे दरबारियों को नयी पोशाक पहनाने का अभिनय किया जबकि असल में सब नंगे ही रहे। राजा समेत सभी नयी शानदार पोशाक पहनने का अभिनय करते रहे जिससे वे मूर्ख न कहलाएं। अंत में नंगों का यानी नंगे राजा और दरबारियों का जुलूस निकल पड़ा। प्रजा में सारे लोग नंगों के इस जुलूस को देखकर मन ही मन हंस रहे थे पर, डर के मारे या स्वयं मूर्ख न घोषित हो जायें, चुप थे। अंत में एक छोटा बच्चा, जो अपने माता-पिता के साथ आया था, बोल पड़ा- ‘राजा तो नंगा है’। अब सच्चाई से मुंह चुराना सबके लिए मुश्किल हो गया लेकिन तब तक ठग माल-मता लेकर चंपत हो चुके थे।
अपने देश में भी एक नंगा राजा है। उसे भी कपड़ों का बहुत शौक है। वह भी घड़ी-घड़ी पोशाक बदलता है। वह भी अपने को बुद्धिमान समझता है और अहंकारी है। यह इतना अहंकारी है कि हर साल बच्चों को परीक्षा पास करने के गुर सिखाता है जबकि स्वयं अपनी डिग्री दिखाने को तैयार नहीं।
यह राजा किसी राजतंत्र का राजा नहीं है। यह लोकतंत्र में चुना गया था पर उसने स्वयं को राजा मान लिया। सब लोग उसे राजा मान लें इसलिए उसने संसद में ‘सेंगोल’ नामक एक छड़ी भी उसी अंदाज में रखवा दी जैसे उसका राज्याभिषेक हो रहा है।
देश में ठगों की पूरी जमात है जो इस राजा की मूर्खता और अहंकार का फायदा उठाने में लगी हुयी है। वह जमात रोज उसके लिए नयी-नयी पोशाक पेश करती है। कभी वह विश्व गुरू बन जाता है तो कभी आध्यात्मिक गुरू। कभी वह बच्चों को परीक्षा पास करवाने लगता है तो कभी दुनिया के युद्ध रुकवाने में लग जाता है। दुनिया के सारे नेता इस नंगे राजा को देख मन ही मन हंसते हैं पर चुप रहते हैं क्योंकि उनका काम निकलता रहता है। कभी-कभी वे खुद भी उसे पोशाक पहना देते हैं जैसे एक ने उसे ‘बॉस’ घोषित कर दिया।
यह राजा ठगों द्वारा दी गयी पोशाक पहनने-उतारने में इतना व्यस्त रहता है कि राजकाज का काम बिल्कुल नहीं देख पाता। वैसे भी वह इतना कूढ़मग्ज है कि देश की तमाम समस्याओं को वह समझ भी नहीं सकता। इसीलिए वह बस इतना करता है कि पहले से चली आ रही योजनाओं को अपने नाम से चला देता है। उसके लिए नया नामकरण ही कुछ नया करना है।
लगता है इस राजा ने पिछले दिनों एंडरसन की बाल कथा पढ़ ली है। या हो सकता हे कि उसके दरबारियों में से किसी ने यह कथा उसे सुना दी हो। इसीलिए वह बालक बुद्धि से बहुत भयभीत हो गया है। उसे डर है कि बालक बुद्धि उसके नंगेपन को सारी दुनिया में कहीं उजागर न कर दे। इसीलिए वह कोशिश कर रहा है कि लोग बालक बुद्धि पर विश्वास न करें।
इस बीच ठग काफी सारा माल हथिया चुके हैं। वे राजा को अभी भी नयी-नयी पोशाक पहनाये जा रहे हैं। राजा भी उन्हें पहनता जा रहा है कि शायद कोई उसके काम आ जाये। अंत में राजा पायेगा कि ठग उसे नंगा छोड़ माल-मता लेकर चंपत हो चुके हैं।
बालक बुद्धि और नंगा राजा
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।