उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक स्वघोषित संत 'नारायण साकार विश्व हरि' उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मचने से 120 से अधिक लोगों की मौत हो गई। ये घटना हाथरस से 47 किलोमीटर दूर फुलराई गांव में हुई।
यह सत्संग ‘मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम समिति’ के नाम से आयोजित किया जा रहा था। आयोजन में मची भगदड़ और 120 से अधिक लोगों की मौत के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक FIR दर्ज की है, जिसमें मुख्य सेवादार और कुछ आयोजकों को आरोपी बनाया गया है, लेकिन FIR में बाबा का नाम नहीं है।
आयोजन के लिए आयोजकों ने जो अनुमति ली थी, उसके मुताबिक वहां 80,000 लोगों को इकट्ठा होना था, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घटनास्थल पर करीब ढाई लाख लोग मौजूद थे। इतनी बड़ी भीड़ जमा होने की आशंका के बावजूद भी वहां पर लोगों के पंडाल में घुसने और बाहर निकलने की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं थी, ना ही आपातकालीन स्थिति के लिए कोई इमरजेंसी रास्ता बनाया गया था। सत्संग में ना तो मेडिकल की उचित व्यवस्था थी और ना ही बाबा के भक्तों को गर्मी से बचाने के लिए भीड़ के हिसाब से कूलर-पंखे ही लगे थे।
बाबा के भक्तों की जान बचाने की तो कोई व्यवस्था सत्संग में नहीं थी, लेकिन बाबा की एंट्री से लेकर, जितने समय बाबा मंच पर रहते और बाद में बाबा की वापसी तक… बाबा के लिए पूरे VVIP ट्रीटमेंट की व्यवस्था की गई थी। नतीजा यही हुआ कि भगदड़ मची, बाबा आराम से निकल गए और 120 से ज्यादा लोग मारे गए।
भारत में धार्मिक आयोजनों में होनी वाली भगदड़ की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। हाथरस की घटना भले ही जुलाई 2024 में हुई हो, लेकिन असल में इस घटना में कुछ भी नया नहीं है। देश में इस तरह के नए-नए बाबा अपने आप को ईश्वर का दूत घोषित कर अपना साम्राज्य स्थापित कर लेते हैं और अपने जीवन के दुखों से त्रस्त जनता को छद्म मुक्ति का भरोसा देकर अपनी दुकानें चलाते हैं।
ऐसे तमाम बाबाओं की तरह सूरजपाल जाटव भी कुछ साल पहले तक उत्तर प्रदेश पुलिस में एक कांस्टेबल था। ये व्यक्ति LIU (लोकल इंटेलिजेंस) में कार्यरत था, इस दौरान इस पर छेड़खानी के मामले दर्ज हुए और उसे पुलिस से निलंबित कर दिया गया। छेड़खानी वाले मामले में सुरजपाल जाटव एक लम्बे समय तक जेल में भी रहा और जेल से बाहर आते ही उसने अपने को सुरजपाल से बदलकर नारायण साकार उर्फ भोले बाबा बना लिया। वापस आकर वो अदालत की शरण में गया, नौकरी पर बहाल हुआ लेकिन फिर उसने VRS ले लिया और अंत में अपने को ईश्वर से सीधे संपर्क रखने वाला बताकर, पार्ट टाइम बाबा से फुल टाइम बाबा बन गया।
हमारे देश में जहां गरीबी और लाचारी ने करोड़ों मज़दूर-मेहनतकशों के जीवन को दुश्वार बना रखा है, वहां ऐसे बाबा एक झूठी उम्मीदों के फेर में इन्हें बड़ी आसानी से फंसा लेते हैं। इनका काम आसान करते हैं, इसी जनता के वोट के आकांक्षी नेता। कई बड़े-बड़े नेता ऐसे फर्जी, ढोंगी बाबाओं के आश्रमों में जाकर मत्था टेकते हैं, जिससे भोली भाली जनता का इन बाबाओं में और भी ज्यादा विश्वास कायम होता है। बाबा लोगों को झूठी तसल्ली देते हैं और लोग बाबा पर भरोसा रखकर नेताओं के झूठे वादों को भूल जाते हैं। यही क्रम इस देश में बार-बार दोहराया जाता रहा है।
नारायण साकार के एक भक्त का कहना है, "हमारी तरफ़ के लोग बाबा की फोटो रखकर पूजा करते थे, उन्हें देखकर हम भी पूजा करने लगे, हम एक साल से इस संगत में हैं। अभी हमें कोई अनुभव नहीं हुआ लेकिन परमात्मा (बाबा) पर हमें विश्वास है, जो मन्नत मांगते हैं वो पूरी होती है।”
देश में धार्मिक आयोजनों में होने वाली भगदड़ों का इतिहास भी बहुत पुराना है:
जनवरी 2005 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान मची भगदड़ में 340 लोगों की कुचलकर मौत हो गई थी।
सितंबर 2008 में राजस्थान के जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में 250 लोगों की मौत हुई।
जनवरी 2011 में केरल के सबरीमाला मंदिर तीर्थयात्रियों में 104 की मौत हो गई थी।
अक्टूबर 2013 में मध्यप्रदेश के दतिया जिले में नवरात्रि उत्सव के दौरान भगदड़ मचने से 115 लोग कुचलकर मारे गए थे।
जुलाई 2015 में आंध्रप्रदेश के राजमुंदरी जिले में पुष्करम उत्सव में गोदावरी नदी के तट पर भी ऐसा ही हादसा हुआ था।
अक्टूबर 2018 में अमृतसर में दशहरा उत्सव देखने जमा हुई भीड़ रेलवे ट्रैक के किनारे आ गई। इस दौरान ट्रेन से कुचलकर 59 लोगों की मौत हो गई थी।
मार्च 2023 में इंदौर में रामनवमी के मौके पर आयोजित हवन कार्यक्रम में भगदड़ मचने से 36 लोगों की जान गई थी।
जुलाई 2024 में हाथरस का हादसा हमारे सामने है, जहां 120 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
ये आंकड़े महज कुछ चुनिंदा घटनाओं के ही हैं। धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के कारण हुई मौतों के आंकड़े भी सरकारी आंकड़े हैं। हम ये जानते हैं कि सरकार ऐसी घटनाओं में आंकड़ों को कई बार कम करके भी दिखाती है। साल दर साल घटनाएं होती हैं, सैंकड़ों लोगों की मौत होती है, सरकार कुछ लाख रुपए मुआवजे की घोषणा भी करती है, जांच समितियां बनाई जाती हैं और इस सबका परिणाम ये होता है कि ठीक उसी ही तरह की घटना कुछ महीनों बाद कहीं और घटती है और इस तरह ये कभी ना खत्म होने वाला चक्र बन जाता है।
हमारा राज्य धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरता है, वो ऐलान करके कहता है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है, लेकिन पग-पग पर वो धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन को खुलकर प्रोत्साहित करता है। ना सिर्फ प्रोत्साहित करता है बल्कि कई जगह तो धार्मिक आयोजनों का आयोजक ही बन बैठता है। हाल ही में 22 जनवरी के दिन हमने देखा कि किस तरह से पूरी राज्य मशीनरी राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में तल्लीन थी। कांवड़ यात्रा के आयोजन से लेकर तमाम धार्मिक आयोजनों में हम ऐसे उदाहरण देख सकते हैं।
हमारे समाज में स्थिति ये है कि पाखंड और अंधविश्वास फैलाने वाले बाबा, नीम हकीमों को सरकार संरक्षण देती है और पाखंड, अंधविश्वास के खात्मे के लिए काम करने वाले नरेंद्र दाभोलकर जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या करा दी जाती है।