इजरायली शासकों-पश्चिमी साम्राज्यवादियों का पुतला दहन

फिलिस्तीन

हरिद्वार/ 22 अक्टूबर 2023 को भेल मजदूर  ट्रेड यूनियन बीएचईएल के कार्यालय पर फिलिस्तीनी उत्पीड़ित जनता के मुक्ति संघर्ष और इजरायली शासकों की खुली तानाशाही पर विचार-विमर्श किया गया। उसके उपरांत भगत सिंह चौक से जुलूस निकालकर चंद्राचार्य चौक (रानीपुर मोड़ ) पर एक सभा की गई और उत्पीड़ित फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में इजरायली शासकों व इजरायली शासकों को मदद पहुंचाने वाले साम्राज्यवादियों का पुतला दहन किया गया।
        
इंकलाबी मजदूर केंद्र के हरिद्वार प्रभारी पंकज कुमार ने कहा कि 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में इजरायल को फिलिस्तीन की जमीन पर बसाया गया था। तब से लगातार इजरायल ने फिलिस्तीन पर कब्जा करते हुए मात्र 12 प्रतिशत जमीन फिलिस्तीन पर छोड़ी है शेष 88 प्रतिशत जमीन पर इजरायल ने कब्जा कर लिया है। रोज ही फिलिस्तीनियों का दमन किया जा रहा है।
    
क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के संयोजक नासिर अहमद ने कहा कि इजरायल द्वारा 75 सालों से लगातार फौजी बूटों तले फिलिस्तीनी जनता को अधिकारविहीन किया जा रहा है। सुरक्षा के मामले में दुनिया की अग्रणी व आधुनिक तकनीक से लैस सेना व चाक-चौबंद खुफिया तंत्र के बावजूद 7 अक्टूबर के हमले को चुपचाप होने देने पर यह स्पष्ट होता है कि इजरायल के आंतरिक राजनीतिक संकट व न्यायपालिका के अधिकार कम करने व उसे कार्यपालिका के मातहत लाने के कदमों, खुद बेंजामिन नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप आदि से ध्यान भटकाने व फिलिस्तीनी जनता के दमन के लिए वैधानिकता पाने व अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए यह सब कुछ किया गया। प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की सचिव दीपा ने कहा कि पूरी दुनिया में मजदूर-मेहनतकश जनता व इंसाफ पसंद आवाम द्वारा इजरायली शासकों द्वारा फिलिस्तीनियों को खाने-पीने, बिजली, दवा आदि आवश्यक वस्तुओं से महरूम करने के अमानवीय कृत्य की कड़ी निंदा की जा रही है। खुद इजरायल व अमेरिका के अंदर भी बड़े-बड़े प्रदर्शनों में युद्ध नहीं शांति के नारे लग रहे हैं।
    
सभा का संचालन प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की हरिद्वार प्रभारी नीता ने किया। 
    
प्रदर्शन में भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, राजा बिस्कुट मजदूर संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के कार्यकर्ता उपस्थित रहे।             -हरिद्वार संवाददाता
 

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।