
‘जिसकी जि कांग्रेस पार्टी ने आजकल एक नया नारा दिया है- ‘जिसकी जितनी आबादी, उसका उतना हक’। उसे लगता है कि यह नारा आने वाले चुनावों में उसका बेड़ा पार लगायेगा। जनता के विभिन्न हिस्से उसे हाथों-हाथ लेंगे।
हक की बात करके कांग्रेस पार्टी ने यह जताने की कोशिश की है कि उसे लोगों के हकों की बहुत चिंता है। इससे अच्छी बात क्या होगी कि कोई पार्टी जनता के हक की चिंता करे और वह भी वह पार्टी जो आजादी के बाद ज्यादातर समय देश पर राज करती रही हो।
पर जनता के विभिन्न हिस्सों को कांग्रेस पार्टी द्वारा हक की बात किये जाने से बहुत खुश नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए मजदूरों को खुश नहीं होना चाहिए कि उन्हें देश की दौलत या आय में से आधे से ज्यादा हिस्सा मिलेगा क्योंकि वे देश की आबादी में आधे से ज्यादा हैं। इसी तरह किसानों को खुश नहीं होना चाहिए कि उन्हें देश की दौलत में से एक तिहाई मिल जायेगा।
देश की महिलाओं को भी कोई खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए कि चूंकि वे देश की आबादी में आधी हैं, इसलिए देश की आधी दौलत उनके नाम हो जाएगी। कि संसद-विधानसभाओं में उनकी संख्या कुल की आधी होगी। कि सभी सरकारी, गैर-सरकारी नौकरियों में आधी उनकी होंगी।
इस समय देश में दिन-रात कोसे-पीटे जाते रहे मुसलमानों को भी गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए कि अब उनकी विपत्ति के दिन दूर होने वाले हैं। कि देश की दौलत और अन्य संसाधनों में उन्हें उनकी पन्द्रह प्रतिशत आबादी के हिसाब से हिस्सा मिलेगा। कि हिन्दू फासीवादियों ने उन्हें उनके जिन्दा रहने के बचे-खुचे साधनों से भी वंचित करने की जो मुहिम चला रखी है, वह रुक जायेगी।
और तो और देश के दलितों और पिछड़ों को भी खुश नहीं होना चाहिए कि उन्हें देश की दौलत में उनकी आबादी के हिसाब से हिस्सा मिल जायेगा। ऐसे ही आदिवासियों को भी खुश नहीं होना चाहिए।
तब फिर आबादी के हिसाब से हक का क्या मतलब है? किस आबादी को, कौन सा हक मिलेगा?
हक की ये सारी बातें असल में, जातिगत आरक्षण के बारे में हैं। इस लुभावने नारे का मतलब बस इतना है कि आबादी के विभिन्न जातिगत समूहों (दलितों, पिछड़ों इत्यादि) को आबादी में उनके हिस्से के हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिए। इसको सुनिश्चित करने के लिए पहले जातिगत जनगणना कराई जानी चाहिए।
संघ के हिन्दू फासीवादी धर्म के आधार पर हिन्दुओं को अपने पीछे एकजुट करना चाहते हैं। इसलिए वे जाति के आधार पर ऐसे नारे-बंटवारों का विरोध करते हैं जो उनके लिए समस्या पैदा करें। जातिगत आरक्षण का मुद्दा ऐसा ही मुद्दा है। ठीक इसी कारण उनके विरोधी इस मुद्दे को उछालना चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी इस समय यही कर रही है। यह कमण्डल के खिलाफ मण्डल का नया संस्करण है।
कांग्रेस पार्टी की यह कवायद देश की मजदूर मेहनतकश जनता के साथ सरासर धोखाधड़ी है। यह कांग्रेस पार्टी की केन्द्रीय सरकार ही थी जिसने देश में निजीकरण-उदारीकरण की नीतियां लागू कीं जिनसे सरकारी नौकरियां लगातार कम होती गईं। पिछले तीन दशक में सभी प्रादेशिक कांग्रेस सरकारों ने नौकरियों में कमी की है। आज भी भारी मात्रा में सरकारी विभागों में या तो पद खाली पड़े हैं या फिर संविदा पर भरे जा रहे हैं। ऐसे में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे को उठाना परले दर्जे की धूर्तता है।
आगे बढ़ें। सरकारी नौकरियों तक पहुंचने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी है। लेकिन कांग्रेसी नीतियों ने ही गरीब दलितों-पिछड़ों का पढ़ना-लिखना दूभर बना दिया- शिक्षा के निजीकरण के जरिये। एक नीति के तहत प्राथमिक से लेकर डिग्री स्तर तक के सरकारी संस्थानों को रद्दी बना दिया गया। उच्च शिक्षा के संस्थानों में फीस बेहद बढ़ा दी गई। नतीजा यह निकला कि दलितों और पिछड़ों की ज्यादातर आबादी ढंग की शिक्षा से वंचित हो गई। एक ओर कांग्रेसी सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को बुनियादी हक घोषित किया तो दूसरी ओर वास्तव में दलितों-पिछड़ों के बच्चों को ढंग की शिक्षा से वंचित कर दिया। अब वहां गरीबों के बच्चे बस ‘मिड डे मील’ खाने जाते हैं।
कांग्रेस पार्टी अब चाहती है कि दलित-पिछड़े उसके इस रिकार्ड को भूलकर विश्वास करें कि वह उनके हकों के लिए चिन्तित है। लेकिन उसकी चाल इतनी पारदर्शी है कि बिना किसी मेहनत के ही पकड़ में आ जाती है।
पर कांग्रेसी करें तो क्या करें? मजदूर-मेहनतकश जनता के वास्तविक कल्याण के लिए कोई भी कदम वे उठा नहीं सकते क्योंकि तब उनसे पहले से ही नाराज चल रहे बड़़े पूंजीपति और नाराज हो जायेंगे। ऐसे में वे केवल धोखाधड़ी पर ही उतर सकते हैं। और वही ये कर रहे हैं। पर वे भूल जाते हैं कि उनके सामने हिन्दू फासीवादी संघी हैं जो धोखाधड़ी में उनके भी उस्ताद हैं। तनी आबादी, उसका उतना हक’