
पिछले दिनों यह खबर आयी कि भारत ने आबादी के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। वह दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया। ऐसे मौके पर मजाकिया ढंग से देश के रहनुमा को बधाई दी जा सकती है। वाह गुरू! तुम तो विश्व गुरू बन गये। और किसी मामले में तो नहीं भी पर जनसंख्या के मामले में तो बन ही गये।
लेकिन इस बधाई को कोई लेना नहीं चाहेगा। मोदी जी तो बिल्कुल भी नहीं। परन्तु भाजपा, आर एस एस, विश्व हिन्दू परिषद वालों को तो यह बधाई अवश्य ही लेनी चाहिए क्योंकि ये बेचारे हिन्दुओं की आबादी कम होने का रोना रोते रहते हैं। कई-कई तो खुलेआम हिन्दुओं से कहते रहते हैं कि दस-दस बच्चे पैदा करो! सच्चाई तो यह है कि देश को आबादी के मामले में दुनिया का नम्बर वन देश बनाने में सबसे ज्यादा योगदान हिन्दुओं का ही है। इस मामले में सबसे ज्यादा बधाई के पात्र हिन्दू हैं। मुस्लिम इसके बाद। और बाकी तो इस मामले में कुछ खास नहीं कर सके। पारसी तो सिकुड़ते ही जा रहे हैं। क्या भारत की आबादी भारत के लिए कोई समस्या है। मजे की बात यह है जो कल तक जनसंख्या वृद्धि की आलोचना करते थे वे आज यह बताते फिर रहे हैं कि कैसे भारत की जनसंख्या भारत की ताकत है। कुछ तो बता रहे हैं चीन बूढ़ा हो रहा है और भारत जवान है और लम्बे समय तक जवान रहेगा।
असल में जनसंख्या को लेकर मचाई गयी चीख-पुकार अब भारत के लिए गर्व की कम शर्मिन्दगी का कारण ज्यादा बन गयी है। इसलिए मोदी जी ने देशवासियों को कोई बधाई नहीं दी। नहीं तो वे जिस क्षण भारत चीन को पीछे छोड़ता ठीक उसी क्षण का पीछा करते और कोई महा आयोजन (विग इवेंट) करवा देते। देशवासियों से अपील की जाती कि जो शिशु भारत को आबादी में नम्बर वन बनायेगा उसको एक अरब रुपये का पुरुस्कार दिया जायेगा। मां-बाप को विशेष रूप से सम्मानित किया जायेगा। उन्हें जीवन भर भारत सरकार के अतिथि के रूप में पूरे भारत में कहीं भी आने-जाने की यात्रा मुफ्त दी जायेगी। भारत सरकार के अतिथि गृह में एक कमरा उनके लिए बुक रहेगा।
कभी अगर भारत सरकार ने यदि जनसंख्या के वैज्ञानिक सिद्धान्त को पढ़़ाया होता तो इस तरह से उसकी जुबान पर ताला नहीं लगा होता। कुल जनसंख्या के बजाय किसी देश की आबादी को जनसंख्या घनत्व से ज्यादा अच्छे ढंग से मापा जा सकता है। जनसंख्या घनत्व (कुल आबादी/कुल भूमि वर्ग किलोमीटर में) के हिसाब से भारत का स्थान बहुत नीचे है। विकीपीडिया के अनुसार उसका स्थान 29 वां है। कुछ वर्ष पहले तक इजरायल और भारत का जनसंख्या घनत्व लगभग बराबर रहा है। ठीक इसी तरह चीन का स्थान जनसंख्या घनत्व के अनुसार 84वां है।
वैज्ञानिक जनसंख्या सिद्धान्त यह भी बताता है कि किसी देश में एक समय क्यों कर जनसंख्या वृद्धि होती है और फिर कैसे यह वृद्धि दर गिरने लगती है। और फिर एक समय बाद जनसंख्या या तो स्थिर या फिर गिरने लगती है। विकीपीडिया के अनुसार भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2022 में लगभग 0.68 फीसदी थी। वर्ष 1971 से इसमें गिरावट आनी शुरू हो गयी। 1981 में 2.47 फीसदी, 1991 में 2.39 फीसदी और 2001 में 2.15 फीसदी व 2011 में 1.77 फीसदी प्रतिवर्ष रही है।
2021 में जनगणना नहीं हो सकी। यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है। अरविन्द केजरीवाल जब मोदी जी के अनपढ़ होने की बातें करता है तो मोदी जी भी बार-बार ऐसे काम करते हैं जो केजरीवाल की बातों की किसी रूप में पुष्टि ही कर देते हैं। भारत के इतिहास में ऐसा पहली दफा हुआ है जब जनगणना समय से नहीं की जा सकी।