
पंतनगर/ दिनांक 19 अप्रैल 2023 को विश्वविद्यालय के गार्डन सेक्सन में कार्यरत ठेका मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर काम बंद कर दिया। मजदूर माह में 26-27 दिन काम व समय पर वेतन भुगतान की मांग कर रहे थे। इस कामबंदी से गार्डन के अधिकारियों में हड़कंप मच गया। शीघ्र ही घंटे भर में प्रभारी अधिकारी गार्डन पहुंचे। उनके द्वारा दिये आश्वासन के बाद ही मजदूर काम पर लौटे।
मालूम हो कि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति द्वारा आदेश जारी कर ठेका मजदूरों को हर माह के प्रथम सप्ताह में वेतन भुगतान किए जाने का निर्देश दिया गया था और साथ ही हर माह 26-27 कार्यदिवसों का वेतन भुगतान किए जाने का निर्देश दिया गया था। परंतु आज तक इन आदेशों का पालन नहीं किया गया। महीने में 18-20 दिन काम व उतने का ही भुगतान किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के आदेशानुसार सभी विभागों में मजदूरों को विभागीय आवास दिए जा रहे है परंतु गार्डन सेक्सन में ठेका मजदूरों को विभागीय आवास तक नहीं दिया जा रहा है। साथ ही समय से वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है। आसमान छूती महंगाई, अति अल्प न्यूनतम वेतन में परिवार के पालन-पोषण, बच्चों की शिक्षा इत्यादि में पहले से ही कर्जग्रस्त होकर मजदूर आर्थिक तंगी में जीवन जीने को विवश हैं। छुट्टियों में अफसरों का वेतन तो सुरक्षित रहता है पर अफसरों द्वारा ठेका मजदूरों को छुट्टियों में काम पर नहीं बुलाया जाता है। गार्डन प्रभारी को छुट्टियों में न गर्मी से फूल, पौधे सूखने की चिंता है और न ही ठेका मजदूरों की हाजिरी कटौती से वेतन कटौती की चिंता है।
आक्रोशित ठेका मजदूरों ने जब काम बंद कर विरोध प्रदर्शन किया तो गार्डन प्रभारी अधिकारी ने पहले तो ठेका मजदूरों को डराने-धमकाने का प्रयास किया पर जब मजदूर डायरेक्टर की धमकी से नहीं डरे, अड़े रहे तब डायरेक्टर वार्ता करने को बाध्य हुआ। गार्डन अफसर द्वारा मजदूरों को महीने में 26-27 कार्य दिवसों के वेतन भुगतान के लिए कुलपति महोदय को फाइल भेजकर अनुमति लेने के आश्वासन पर ही मजदूर काम पर लौटे।
ठेका मजदूर कल्याण समिति द्वारा लगातार शासन-प्रशासन से कुलपति महोदय के आदेशानुसार समय से वेतन भुगतान और माह में 26-27 कार्य दिवसों का वेतन भुगतान किए जाने का अनुरोध किया जा रहा है। बावजूद अभी तक प्रशासन द्वारा कोई सुनवाई नहीं हो रही है। विश्वविद्यालय पंतनगर में कार्यरत करीब 2500 ठेका मजदूरों की अनदेखी, उपेक्षा के कारण ठेका मजदूरों के परिवारों के भरण-पोषण, बच्चों की स्कूल फीस, आवास किराया, राशन, सब्जियों को लेने में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। ठेका मजदूर अपने संगठन में संगठित होकर ही अपने शोषण-उत्पीड़न से निजात पा सकते हैं। -पंतनगर संवाददाता