तीन दिन क्या खूब तमाशा रहा !
तीन दिन तक लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस चलती रही। अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो जायेगा, इसकी खबर हर किसी को थी। फिर भी लोकसभा में आकाश-पाताल एक कर
तीन दिन तक लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस चलती रही। अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो जायेगा, इसकी खबर हर किसी को थी। फिर भी लोकसभा में आकाश-पाताल एक कर
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के सेवा विस्तार पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी। 11 जुलाई को दिए अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने संजय मिश्रा के
उत्तर प्रदेश में एक चतुर्थ श्रेणी सरकारी कर्मचारी ने अपनी मेधावी पत्नी को प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए इलाहाबाद (प्रयागराज) की किसी अच्छी कोचिंग में तैयारी क
राजस्थान का कोटा शहर एक बार फिर आत्महत्याओं के कारण सुर्खियों में है। इस वर्ष अभी तक 18 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं। बताया तो यह भी जा रहा है कि आत्महत्याओं की संख्या व
भाजपा बहुत दिनों से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा या एनसीपी) को तोड़कर अपने खेमे में पहले तो पूरी पार्टी पर कम से कम उसके एक गुट को लाना चाहती थी। पिछले दिनों वह अप
मणिपुर में पिछले दो महीनों से जो कुछ हो रहा है वह गंभीर और चिंताजनक है। लेकिन उससे भी गंभीर और चिंताजनक है देश की सरकार का रुख।
कोरोना महामारी के वक्त लोगों को टीका लगाने के लिए सरकार ने कोविन, आरोग्य सेतु सरीखे पोर्टल तैयार किये थे। इनमें टीका लगवाने वाले 110 करोड़ लोगों के नाम, मोबाइल नम्बर, आधार कार्ड नम्बर, वोटर आई डी, ट
उड़ीसा में हाल में हुई रेल दुर्घटना जिसमें दो यात्री गाड़ियां और एक मालगाड़ी कुछ ही मिनट के अंतर पर आपस में बुरी तरह टकरा गईं, जिसमें सवार 2500 में से 288 लोगों की मौत की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है और
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को
7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।