विश्व गुरू बनने के आधुनिक नुस्खे
देश के हिन्दू फासीवादियों की लम्बे समय से तमन्ना रही है कि भारत एक बार फिर विश्व गुरू बन जाये जैसा कि वह उनकी नजर में अतीत में था। अब हिन्दू फासीवादी यह मानने लगे हैं कि
देश के हिन्दू फासीवादियों की लम्बे समय से तमन्ना रही है कि भारत एक बार फिर विश्व गुरू बन जाये जैसा कि वह उनकी नजर में अतीत में था। अब हिन्दू फासीवादी यह मानने लगे हैं कि
ईमानदारी और साफगोई के मामले में हिन्दू फासीवादियों का रिकार्ड कोई अच्छा नहीं है। वे शुरू से ही दोमुंहापन की बातें करने के लिए बदनाम रहे हैं। इसका सबसे प्रतिनिधिक उदाहरण उ
एक कहावत है, ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’। यह कहावत एक साथ संसद के विशेष सत्र और कथित ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ पर लागू होती है।
यह स्पष्ट है कि मतदान का अधिकांश वोट ऐसी पार्टी को मिलता है जो कल्याणवाद, राष्ट्रीय अंधराष्ट्रवाद और देशभक्ति आदि के नाम पर धन, सांप्रदायिकता, जातिवाद, धोखेबाज योजनाएं, इ
एक बार फिर से देश में भारत बनाम इंडिया की बहस शुरू हो गयी है। पहले भी भारत बनाम इंडिया की बहस चलती रही है लेकिन इस बार सन्दर्भ पहले से अलग है।
रिलायंस समूह प्रमुख मुकेश अम्बानी ने अपने तीनों बच्चों आकाश अम्बानी, अनंत अम्बानी व ईशा अम्बानी को रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड के निदेशक मण्डल में शामिल करवा दिया। उनकी ब
पूंजीवादी राजनीति में जब थोक के भाव विधायक-सांसद खरीदे जाने लगे, तो मुद्दा-आधारित अविश्वास प्रस्ताव के दौरान किसी विचारोत्तेजक बहस की अपेक्षा नहीं की जा सकती। आठ अगस्त से
खबर है कि कांग्रेस पार्टी के नेता कमलनाथ नये-नये चमके या चमकाये गये लंपट बाबा के दरबार में हाजिरी लगा आये हैं। कमलनाथ मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को
7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।