संघर्ष क्षेत्रों में भारतीय कामगारों के लिए खतरा

मरने के लिए इस्तेमाल करो और फेंको

जनवरी में, फिलिस्तीन पर इजराइल के युद्ध के 100 दिन पूरे होने के कुछ ही दिनों बाद, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अधिकारियों ने दोनों राज्यों से श्रमिकों की तलाश में आये 15 इजराइली व्यापारियों के एक प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी की। लगभग 10,000 आशावान आवेदक इजराइल में काम पाने के लिए पहुंचे, जिनमें से कई ठंड में घंटों इंतजार कर रहे थे। 
    
अप्रैल में, 64 भारतीय श्रमिकों के पहले बैच को, और अधिक श्रमिकों को लाने की द्विपक्षीय योजना के तहत श्रमिकों की गंभीर कमी का सामना कर रहे इजराइल को भेजा गया था। 13 अप्रैल को इजराइल पर ईरानी मिसाइल हमलों के बाद, भारतीय विदेश मंत्रालय ने इजराइल में भारतीय नागरिकों के लिए एक यात्रा सलाह जारी की, जिसमें उनसे भारतीय दूतावास में खुद को पंजीकृत करने और ‘अपनी गतिविधियों को न्यूनतम तक सीमित रखने’ का आग्रह किया गया। लेकिन वर्तमान में इजराइल में लगभग 18,000 भारतीय श्रमिकों में से कई के लिए ऐसे विकल्प संभव नहीं हैं। 
    
भारत से 42,000 श्रमिकों को भेजने का समझौता एक साल पहले 2023 में शुरू हुआ था। दिसंबर में, इजरायली प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध शुरू होने के दो महीने बाद नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत रूप से उस संख्या से दोगुनी संख्या में मजदूर भेजने का अनुरोध किया था। उच्च वेतन से आकर्षित होकर, देश के कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों से भारतीय श्रमिकों ने बड़ी संख्या में देश छोड़ने के लिए हस्ताक्षर किए। लेकिन जब वे घर छोड़कर वहां पहुंचते हैं तो उनसे किया गया बचाव और सुरक्षा का वादा अक्सर टूट जाता है। 
    
इजराइल एकमात्र ऐसा देश नहीं है जहां भारतीय श्रमिकों को काम की गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। सिंगापुर और खाड़ी देशों में गुलामी जैसी परिस्थितियों में भारतीय श्रमिकों के शोषण का मुद्दा लम्बे समय से चला आ रहा है। सर्बिया में भारतीय श्रमिकों ने अवैतनिक वेतन को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इटली में, एक युवा पंजाबी श्रमिक ने लुटेरी रोजगार एजेंसियों और शोषक नियोक्ताओं के कर्ज में डूबने के बाद आत्महत्या कर ली। अनिश्चित कामकाजी परिस्थितियों और भारतीय श्रमिकों को बहुत कम या न के बराबर वेतन मिलने की कहानियाँ स्पेन और पुर्तगाल में पाई जा सकती हैं। 
    
लेकिन भारत संघर्ष के स्थानों में प्रवासी भारतीय श्रमिकों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से अक्षम है। उदाहरण के तौर पर 2014 में इराक में 40 भारतीय निर्माण श्रमिकों का अपहरण कर लिया गया था। ऐसी भी रिपोर्टें पिछले कुछ महीनों में आई हैं, जो दर्शाती हैं कि भारतीय प्रवासियों से रूस में नौकरियों का वादा किया गया और उन्हें यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में लड़ने के लिए भेज दिया गया। भारत का केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) कम से कम 35 भारतीय नागरिकों को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किये जाने और यूक्रेन में लड़ने के लिए भेजने के बारे में जानकारी होने की बात स्वीकार करता है। पिछले साल आर्मेनिया में नागोर्ना-काराबाख संघर्ष के दौरान अजरबैजान सीमा के पास गोलाबारी में दो भारतीय नागरिक घायल हो गए थे। 
    
इजराइल के मामले में, श्रमिकों को नेतन्याहू और मोदी के बीच पिछले साल शुरू हुए द्विपक्षीय समझौतों के हिस्से के रूप में भेजा जा रहा है। लेकिन ऐसी भर्ती युद्ध के शुरू होते ही तेज हो गई। इजराइल कृषि और निर्माण कार्यों के लिए फिलिस्तीनी मजदूरों पर निर्भर था। 7 अक्टूबर को हमास के इजरायल पर हमले से 150,000 वेस्ट बैंक और 18,500 गाजा पट्टी के मजदूरों को जारी वर्क परमिट रातों-रात रद्द कर दिये गये। इजरायल के रक्षा मंत्री, योव गैलेंट और सेना के चीफ आफ स्टाफ, हर्ज़ी हलेवी ने सुरक्षा कारणों से इन वर्क परमिटों पर रोक लगा दी।
    
जब देश से बाहर युद्ध की जगहों पर भारतीय प्रवासी मजदूरों को भेजा जाए तो सैद्धांतिक तौर पर उनकी सुरक्षा के लिए भारत की ‘ई-माइग्रेट’ योजना में पंजीकृत कराने की जरूरत होती है। इजरायल इस योजना में शामिल नहीं है, न ही रूस या आर्मेनिया उस योजना में शामिल हैं, इससे उन युद्ध क्षेत्रों में भारतीय श्रमिकों की जान जोखिम में रहती है। इससे भी अधिक असामान्य तथ्य यह है कि भारतीय मजदूरों को इजरायल में कम से कम एक वर्ष तक काम करने का समझौता करना होगा, उनके काम और रहने की सीमा 63 महीने (पांच साल तीन माह) है।
    
‘‘इजराइल की आबादी, आप्रवासन और सीमा प्राधिकारी ने लगातार आश्वासन दिया है कि किसी भी भारतीय मजदूर को युद्ध क्षेत्र या उसके पास नहीं रखा जायेगा।’’ एक अज्ञात स्रोत से यह जानकारी ‘द टाइम्स आफ इंडिया’ को मिली। लेकिन 5 मार्च को, एक 31 वर्षीय पैट निबिन मैक्सवेल नाम का मजदूर लेबनान सीमा के करीब एक खेत में काम करते समय हिजबुल्लाह मिसाइल हमले में मारा जाता है। मैक्सवेल जनवरी में हजारों अन्य मजदूरों के साथ इजरायल आये थे। उसकी मौत के बाद गर्भवती पत्नी और पांच साल की बेटी असहाय हो गये। दो अन्य भारतीय नागरिक भी कृषि फार्म में काम करने के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गये, जबकि अन्य पांच को मामूली चोटें आयीं।
    
भारतीय मजदूर इजरायल या अन्य युद्ध क्षेत्रों में मोटी तनख्वाहों के कारण युद्ध की स्थिति के बावजूद जाने को इच्छुक हैं। एक भारतीय मजदूर भारत में उसी काम की तुलना में इजरायल में दस गुना अधिक कमा सकता है। भारतीय मजदूरों के लिए इजरायल में औसत तनख्वाह डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह है। कई मजदूरों ने अपने परिवारों की सभी जमा पूंजी अपना अनुबंध सुरक्षित करने के लिए लुटेरी रोजगार एजेंसी पर खर्च कर दी।
    
लेकिन वहां पहुंचकर कुछ मजदूरों को पता चला कि उनके नियोक्ता अनुबंध को नाम मात्र का भी नहीं मानते। उत्तरी इजरायल में खेती के काम में लगे एक मजदूर ने ‘फारेन पालिसी’ को बताया कि वह 12 घंटे की शिफ्ट में उत्पादों को खेत से उठाने का थकाने वाला काम सप्ताहांत में भी करता है और उसे प्रति घंटा कानूनी मजदूरी से बहुत कम दिया जा रहा है। उसने बताया कि महीने के अंत में मजदूरी उसे नहीं मिली, बल्कि रोजगार एजेंसी को भेज दी गयी।
    
युद्ध क्षेत्र से आ रही मिसाइलें प्रवासी मजदूरों के लिए एक अन्य समस्या हैं। मैक्सवेल उन लगभग आधा दर्जन मजदूरों में से एक था जो पिछले दशक में मारे गये थे। कई मजदूरों ने बताया कि उन्हें मिसाइल हमलों के दौरान बचाव हेतु क्या करना है, इसकी उनके पास बहुत कम तैयारी है और उन पर लगातार काम करने का गंभीर दबाव बना रहता है। एक इजरायली गैर सरकारी संस्था, काव लाओवेद की जांच के अनुसार मिसाइल हमलों के लिए सचेत करने वाले आपातकालीन एप्स गैर इजरायली फोनों में डाउनलोड नहीं हो सकते हैं। लेकिन युद्ध की अग्रिम पंक्तियों में मुश्किल से ही इस तरफ ध्यान जाता है, अलार्म मिसाइल हमला हो जाने के बाद बजते हैं।
    
भारत अपने बहुमूल्य मानव संसाधन- अपने नागरिक- को काम के लिए दुनिया भर में भेजने को उत्सुक हो सकता है लेकिन उनकी सुरक्षा का पर्याप्त ध्यान रखना जरूरी है। जिन देशों में सुरक्षा को खतरा है, वहां ‘ई-माइग्रेट’ योजना का विस्तार इसकी शुरुआत हो सकती है। साथ ही इस प्रणाली को उन श्रमिकों के लिए अधिक आकर्षक विकल्प बनाना होगा जो अन्यथा शिकारी रोजगार एजेंसियों को अपनी जेब से भुगतान करते रहेंगे। लेकिन अभी के लिए भारतीय मजदूर युद्ध में इस्तेमाल करो और फेंको की तर्ज पर मरने को अभिशप्त हैं।  (भावानुवाद, कैरोल शेफ़र, टेलीग्राफ ईपेपर, 07, मई 2024)

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