शोषण-दमन के खिलाफ मजदूर-किसान पंचायत

/shoshan-daman-ke-khilaaph-majadoor-kisan-panchayat

रुद्रपुर/ 10 अक्टूबर, 2024 को डाल्फिन मजदूर संगठन, श्रमिक संयुक्त मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले गांधी पार्क रुद्रपुर, जि. ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड में मजदूर-किसान पंचायत का आयोजन किया गया। पंचायत में डाल्फिन कंपनी में बुनियादी श्रम कानूनों के उल्लंघन, श्रम भवन रुद्रपुर में चल रहे खुले भ्रष्टाचार और डाल्फिन, लुकास, इंटरार्क (पंतगर और किच्छा), हेंकल, करोलिया, नील मेटल, बड़वे, नेस्ले, पारले (पंतनगर और सितारगंज), आटो लाइन, एरा, गुजरात अंबुजा सहित अन्य कम्पनियों में चल रही श्रमिकों की समस्याओं का समाधान कराने और जिला प्रशासन, श्रम विभाग आदि की मध्यस्थता में हुए समझौतों को लागू कराने की मांग बुलंद हुई। श्रम भवन, रुद्रपुर में वीडियो द्वारा उजागर हुए उक्त खुले भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच की एक स्वर में मांग की गई। इस हेतु साझा और निर्णायक संघर्ष खड़ा करने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किये गए। 
    
10 अक्टूबर को शाम को करीब सवा 6 बजे स्थानीय विधायक शिव अरोरा ने डाल्फिन मजदूर संगठन के अध्यक्ष ललित कुमार को फोन करके अवगत कराया कि उनकी ।क्ड महोदय से बातचीत हो चुकी है और 15 अक्टूबर 2024 को ।क्ड महोदय की मध्यस्थता में कलेक्ट्रेट में वार्ता बुलाई जायेगी जिसमें वो खुद भी बैठेंगे साथ ही उन्होंने तब तक के लिए आमरण अनशन स्थगित करने की अपील की। इसी बीच ।स्ब् महोदया द्वारा डाल्फिन मजदूरों की बंद वार्ताओं को फिर से शुरू करते हुए पंचायत और आमरण अनशन के ठीक एक दिन पहले 9 अक्टूबर 2024 को वार्ता का नोटिस जारी किया गया और 14 अक्टूबर और 15 अक्टूबर 2024 को वार्ता भी बुलाई है। पंचायत ने उक्त बिंदुओं पर विचार किया और सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि 15 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार तक के लिए आमरण अनशन के कार्यक्रम को स्थगित किया जाता है। यदि समस्या का फिर भी समाधान ना किया गया तो आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया जायेगा। महिलाओं द्वारा गांधी पार्क में 3 अक्टूबर से किया जा रहा क्रमिक अनशन जारी रहेगा।
  
पंचायत के दौरान वक्ताओं ने कहा कि आज भारत देश ये किस दिशा की ओर आगे बढ़ रहा है कि बुनियादी श्रम कानूनों को लागू कराने के लिए महिलाएं आमरण अनशन पर बैठकर अपना जीवन दांव पर लगाने को विवश हैं। दर्जनों विकलांग मजदूरों को भी डाल्फिन कम्पनी मालिक द्वारा बेरहमी के साथ में स्थायी नौकरी से निकालकर उन्हें भूखे मरने को विवश कर दिया है।
    
वक्ताओं ने कहा कि श्रम भवन रुद्रपुर में चल रहे भ्रष्टाचार की पोल पट्टी वहीं के कर्मचारियों ने अधिकारियों के केबिन में संदिग्ध व्यक्तियों औरravan नोटों के बंडल के वीडियो को वायरल करके खोलकर रख दी है। सूबे के मुख्यमंत्री खुद ही श्रम मंत्री भी हैं इसलिए उन पर भी सवाल उठने लाजिमी ही हैं। श्रमिकों पर हो रहे उक्त जुल्म, अत्याचार और उक्त भ्रष्टाचार पर उनकी खामोशी भी सवालों के घेरे में है। डाल्फिन मजदूरों पर जानलेवा हमला करके उन्हें लहूलुहान करने और महिलाओं संग छेड़छाड़, अश्लील हरकत करने वाले डाल्फिन कम्पनी मालिक के गुंड़ों की वीडियो, आडियो और सीसीटीवी फुटेज और पुलिस द्वारा कराये गए मेडिकल की रिपोर्ट होने के बावजूद भी पुलिस द्वारा गुंडों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही न करने और एसएसपी व डीएम द्वारा पीड़ित मजदूरों को ही गुंडा घोषित करते हुए नोटिस भेजकर जिला बदर की चेतावनी देने, सिडकुल की अनगिनत यूनियनों के नेताओं की आवाज को दबाने के लिए नोटिस भेजकर शांतिभंग की एकतरफा कार्यवाही करने की घटनाओं से जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं कि भ्रष्टाचार की नदी बहुत दूर तक बह रही है। यदि ऐसा नहीं होता तो बुनियादी श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाले और गरीब मजदूरों का बोनस और न्यूनतम वेतनमान पर भी डाका डालने वाला डाल्फिन कंपनी मालिक प्रिंस धवन आज जेल में होता। लुकास, हेंकल और डाल्फिन के सहित उक्त कम्पनियों के अत्याचारी मालिक अब तक जेल में होते। इस कारण से इस समय सिडकुल के मजदूरों में बहुत अधिक आक्रोश व्याप्त है। दो दिन पूर्व हेंकल कम्पनी के मजदूरों द्वारा शुरू की गई हड़ताल भी इसी बात का परिचायक है। यदि मजदूरों को इसी तरह से दबाया जाता रहा तो आने वाले समय में सिडकुल में मजदूर आंदोलनों का ऐसा जलजला उठेगा जो इस बेरहम शासन सत्ता के रोके भी नहीं रुकेगा। इसलिए हम शासन-प्रशासन से अपील कर रहे हैं कि सभी कम्पनियों के पीड़ित मजदूरों की तत्काल सुनवाई की जाये और समाधान किया जाये। सभी वक्ताओं द्वारा डाल्फिन, लुकास, इंटरार्क, हेंकल, करोलिया, बड़वे, आटोलाइन, नील मेटल, पारले, एरा, गुजरात अंबुजा सहित सभी कम्पनियों के पीड़ित मजदूरों की समस्याओं का तत्काल समाधान कराने की एक स्वर में मांग की गई। 
    
पंचायत में पूंजीवादी रावण (जिसके दस सिर क्रमशः ठेका प्रथा, बोनस और न्यूनतम वेतन का गबन, बेरोजगारी, पूंजीपरस्त शासन सत्ता, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता आदि थे) का पुतला भी तैयार किया गया जो कि मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा। 12 अक्टूबर 2024 को दशहरे के दिन इस पुतले का धरना स्थल पर धूमधाम से किया गया। 
            -रुद्रपुर संवाददाता

आलेख

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

/philistini-pratirodha-sangharsh-ek-saal-baada

7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

/samooche-pashcim-asia-men-yudha-phailaane-kaa-prayaas

इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।