वैश्वीकरण और मजदूर

मैं देखता हूं लोगों को रोज ब रोज आगे बढ़ने के लिए तमाम तजबीजों का सहारा लिए हाड़तोड़ मेहनत करते। आगे बढ़ने से मेरा आशय जीवन चलाने हेतु सम्पत्ति, साजो सामान जुटाते जाने से है जिससे अच्छा जीवन हो। जो जिस स्तर का है, जिस हैसियत का है उस स्तर से ऊपर उठने, आगे बढ़ने और धन कमाने को लालायित रहता है। वैसे तो जिस स्तर का इंसान होता है उसी स्तर के साधन उसके पास होते हैं। जैसे एक सर्वहारा या मजदूर की हैसियत केवल उसके शरीर के श्रम के अलावा कुछ नहीं होती है। उसी को औजार समझ लीजिए, फिर शरीर भी कमजोर हो तो वह उसी तरह का श्रम करेगा। वह शाम को रोटी के सिवा और क्या सोच सकता है। उसका भविष्य समाज के ठेकेदारों पर निर्भर है। जब ये ठेकेदार ही ठग, धोखेबाज, शातिर, प्रपंची और जालसाज हों तो उस श्रमिक का जिसके पास शरीर के अलावा कुछ नहीं है, क्या होगा?

यह श्रमिक तो अंधेरे में हाथ पांव मार रहा होता है। उसे नहीं मालूम कि उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण किस चिड़िया का नाम है। दरअसल उसके ठेकेदार, मालिकों का आगे बढ़ना मजदूर को गर्त में ढकेल कर ही सम्पन्न होता है। उदारीकरण-वैश्वीकरण निजीकरण मजदूरों को गर्त में ढकेलने की नीति है।

माना जाता है कि शिक्षा वह आधार है जिससे इंसान की समझ उन्नत होती है, वह भी वैज्ञानिक शिक्षा। परन्तु आज शिक्षा को अवैज्ञानिक बनाकर पूरे समाज को कूपमण्डूक सोच में ढाला जा रहा है। इसको आप कक्षा नौ, दस की व्याकरण की पाठ्यक्रम में वैश्वीकरण के बारे में पढ़कर समझ सकते हैं। पुस्तक में वैश्वीकरण की भारी मात्रा मे तारीफ की गई है। पर वैश्वीकरण का अर्थ वास्तव में क्या है? यह व्याकरण की पुस्तक एनसीआरटी की है। इस तरह का ज्ञान अर्जित कर विद्यार्थी समाज को छोड़िए अपने को ही कहां ले जायेगा। वैश्वीकरण मजदूरों को चूसने की लूटेरों की साजिश है। इसकी मार से मजदूर उस बाजार की भेंट चढ़ जायेगा जहां ठगों की भरमार- नकली खाद्य पदार्थ, अनाज नकली, दूध, नकली खाद्य तेल बनावटी-मिलावटी। आखिर शरीर रुग्ण बनाकर दुनिया से विदाई ले लेगा। अंततः समाज के ढांचा बदले बिना सारा समाज ही रुग्ण हो जायेगा। आइए ढांचा बदलने के संघर्ष में तन-मन-धन से लगा जाये। -देवसिंह, बरेली

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।