बीते दिनों मोदी सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक संसद में पेश किया। फिलहाल यह विधेयक संसदीय समिति के पास चला गया है। जहां मोदी सरकार इस विधेयक को पास कराने पर उतारू है वहीं विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं।
वक्फ से सामान्य अर्थों में आशय किसी मुसलमान द्वारा अल्लाह को दान कर दी गयी सम्पत्ति से होता है। इस सम्पत्ति पर किसी का व्यक्तिगत कब्जा नहीं रह जाता। बीते लगभग 6-700 वर्षों से वक्फ के नाम पर दान की गयी सम्पत्ति बढ़ती गयी और यह सम्पत्ति इतनी हो गयी कि इसके नियंत्रण व प्रबंधन के लिए वक्फ बोर्ड स्थापित किये गये। इसी के साथ जब वक्फ के तहत आने वाली सम्पत्तियों को लेकर कानूनी विवाद पैदा हुए तो इससे जुड़े न्यायाधिकरण भी स्थापित हुए।
अभी तक चल रहे वक्फ कानूनों के तहत वक्फ बोर्डों व न्यायाधिकरणों आदि में मुसलमान समुदाय के लोगों का ही नियंत्रण रहा है। अब मोदी सरकार यह बात उद्घाटित कर कि वक्फ सम्पत्तियों पर कुछ चंद मुसलमान धनाढ्यों ने नियंत्रण कर रखा है और वे इसका लाभ उठा रहे हैं, भ्रष्टाचार कर रहे हैं; नया विधेयक लेकर आयी है।
इस नये विधेयक में वक्फ सम्पत्तियों के पंजीकरण से लेकर इसके बोर्डों में व न्यायाधिकरण आदि में प्रशासनिक अधिकारियों खासकर जिलाधिकारी की भूमिका को बढ़ा दिया गया है। इसी के साथ बोर्डों में गैर मुस्लिम अधिकारियों के घुसने की छूट दे दी गयी है। इस तरह सरकार का दावा है कि वह वक्फ पर काबिज भ्रष्टाचारियों से मुक्ति दिलाकर वक्फ सम्पत्ति का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के कल्याण-उत्थान में करना सुनिश्चित करेगी। इसी के साथ इस विधेयक में बोहरा व आगाखानियों के लिए अलग वक्फ बोर्ड बनाने की छूट दी गयी है।
यह एक तथ्य है कि देश में वक्फ बोर्ड के पास मौजूद चल-अचल सम्पत्ति भारतीय सेना व रेलवे के बाद तीसरे स्थान पर है। यह भी तथ्य है कि इन सम्पत्तियों का प्रबंधन उचित तरीके से नहीं हो रहा है व कुछ लोग इससे व्यक्तिगत हित भी साध रहे हैं। देश भर में लाखों सम्पत्तियां वक्फ के तहत हैं। पर क्या इस समस्या का समाधान यह है कि सरकार इन सम्पत्तियों का निर्धारण-प्रबंधन मुसलमान धर्म के लोगों से छीन अपने हाथ में ले ले। यह भारतीय संविधान द्वारा दी गयी धार्मिक स्वतंत्रता पर एक हमला ही होगा।
इसी के साथ यह भी तथ्य है कि हिन्दू मठों-मंदिरों के पास भी भारी सम्पत्ति मौजूद है और वह भी खासे कुप्रबंधन की शिकार है। पर क्या संघी सरकार मठों की सम्पत्ति के संदर्भ में भी इस तरह का कानून लाने की हिमाकत कर सकती है। कभी नहीं।
स्पष्ट है कि इस विधेयक पर बहस खड़ी करके सरकार मुसलमान समुदाय को इसके बहाने निशाने पर लेना चाहती है। वह इसके जरिये साम्प्रदायिक वैमनस्य पैदा करना चाहती है। सरकार का कोई इरादा वक्फ सम्पत्ति को गरीब मुसलमानों के कल्याण में लगाने का नहीं है। जो सरकार मुसलमानों से जुड़ी सरकारी छात्रवृत्ति-अन्य कल्याणकारी योजनाओं में धन आवंटन लगातार घटा रही हो, उससे इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो गरीब मुसलमानों के कल्याण की चिंता करेगी। इसीलिए मुसलमान समुदाय को लांछित करना सरकार का पहला लक्ष्य है।
सरकार का दूसरा लक्ष्य वक्फ की उन सम्पत्तियों पर कब्जा करना है जिनके कागजात वक्फ बोर्डों पर नहीं हैं। जिलाधिकारी के हाथ में शक्तियां देकर सरकार सीधे इन सम्पत्तियों पर कब्जा जमाना चाहती है। ढेरों सैकड़ों वर्ष पुरानी भूसम्पत्तियों के कागजात या वक्फ को दान में मिलने के प्रमाण उपलब्ध नहीं होंगे। सरकार इन्हें सरकारी सम्पत्ति घोषित कर अपने कब्जे में लेने और फिर बिल्डरों-पूंजीपतियों को भेंट चढ़ाने के इरादे लिये हुए है। सरकार वक्फ द्वारा सरकारी सम्पत्ति को अपने अधीन लेने की, अवैध कब्जे की बातें इसी दृष्टि से प्रचारित कर रही है।
इस तरह स्पष्ट है कि मोदी सरकार निर्लज्जता से मुसलमान समुदाय पर नया हमला बोल रही है। वक्फ सम्पत्ति कुप्रबंधन का हवाला दे वह इस सम्पत्ति को ही छीनने की मंशा से प्रेरित है। जहां सरकार इस मंशा से प्रेरित है वहीं विरोध में उतरे मुसलमान धार्मिक मौलवी व वक्फ सम्पत्ति से लाभान्वित होने वाले धनाढ््य किसी भी कीमत पर अल्लाह की इस सम्पत्ति पर अपने नियंत्रण को छोड़ना नहीं चाहते। साथ ही न ये विभिन्न दबी-कुचली जातियों के लोगों को ही वक्फ बोर्ड में लाना चाहते हैं। इस तरह ये सामंती जमाने से वक्फ सम्पत्ति पर अपने एकाधिकार को कायम रखना चाहते हैं। जहां आज यह हकीकत है कि वक्फ बोर्डों के पास मौजूद सम्पत्ति का कोई विवरण मुसलमान आम जन के पास नहीं है वहीं यह भी सच है कि ढेरों वक्फ सम्पत्ति पर बिल्डर-ठेकेदार अवैध कब्जा कर चुके हैं।
निश्चय ही वक्फ सम्पत्ति के इस कुप्रबंधन-लूट पर लगाम लगनी चाहिए। इसके प्रबंधन-नियंत्रण में महिलाओं से लेकर सभी जाति के मुसलमानों की भागीदारी होनी चाहिए व ये सम्पत्ति खुलेआम घोषित होनी चाहिए। आज वक्फ पर काबिज लोग यह सब नहीं होने देना चाहते।
पर संघी सरकार का विधेयक तो वक्फ सम्पत्ति को ही हड़पने की मंशा से प्रेरित है। इसीलिए उसका समर्थन नहीं किया जा सकता है। अगर सरकार का इरादा नेक होता तो वह पहले हर गली-मोहल्ले में जमीन कब्जाते जा रहे हिन्दू मठों-मंदिरों की अकूत सम्पत्ति के प्रबंधन-उद्घाटन का कानून लाती, उनसे अवैध कब्जे वाली सरकारी सम्पत्ति मुक्त कराती फिर वक्फ की बात करती। पर हिन्दू मठों की सम्पत्ति पर तो ये सरकार चुप्पी साध जाती है।
इसीलिए जरूरी है कि सरकार के इस साम्प्रदायिक विधेयक का विरोध किया जाए। साथ ही वक्फ सम्पत्ति के नियंत्रण को अधिक जनतांत्रिक बनाने की मुसलमान समाज के भीतर की मांग का समर्थन किया जाए।
वक्फ विधेयक : मुसलमानों पर संघी सरकार का एक और हमला
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