पीले आंसू

आज का दिन बाकी दिनों से कुछ अलग नहीं था। आपने फिल्मों में अक्सर देखा होगा, किसी मालिक, अफसर बाबू को फैक्टरी या ऑफिस जाते हुए देखा होगा पत्नी का गले लगाकर बाय कहना, बच्चों की प्यार भरी पप्पी। कितना भावनात्मक लगता है, आप भाव-विभोर होते हैं। मगर 10x10 के कमरों में जीवन रंगहीन होता है। पर्दों पर ये भाव शायद आपके भीतर बेचारगी या दया को जन्म दें, एक ऐसी दया जो शायद आपको महानता का अहसास दिलाए। किसी के गले में पड़ा हुआ सोने का हार घमंडी होता है, महानता के भ्रम में पड़ा होता है। मगर चिमटा कभी किसी बनावटी सम्मान का मोहताज नहीं होता। लोहे और सोने के बीच का फर्क वह जानता है।

घर से निकलते हुए फरीद खाने के टिफिन को साइकिल में रखने से पहले पत्नी को बोलता है, दाल वाला डब्बा ऊपर क्यों रख दिया, झटके में दाल बाहर निकल जाती है। दाल ज्यादा पतली नही है, नहीं गिरेगी। भीतर से पत्नी का जवाब सुन खाने का टिफिन निश्चिंत हो पुरानी अटलस साइकिल में फंसा दिया जाता है। अब्बू आते समय बाजार से पकौड़ी और मिठाई लेते आना, नन्हा शाहजेब अभी तीन साल का है। हर शनिवार बाजार से उसे पकौड़ी और मिठाई की उम्मीद रहती है। जेब टटोलने पर 70 रुपए हाथ में आते हैं कुछ सोचकर 20 रुपए बच्चे के दूध के लिए छोड़कर 50 रुपए का हिसाब लगाता है।

इस दुनिया ने धन की देवी लक्ष्मी को रचा, विद्या की देवी सरस्वती कहलाई। शायद दुनिया में ईश्वर को रचने वाले, संपत्तिशाली, ज्ञानी और शक्तिशाली लोग रहे होंगे दुनिया के किसी भी खुदा ने कभी मरती हुई भावनाओं के मर्म को नहीं रचा, ईश्वर के सेवादारों के बच्चों की इच्छाएं शायद पहले भी अधूरी रहती होंगी। फरीद की साइकिल 8 बजे फैक्टरी पहुंचती है, जहां लोहे की ढलाई होती है। लोहे और इंसान का रिश्ता बहुत पुराना है। बहुत गहरा है। लोहा सभ्यता का निर्माता है, जीवन का निर्माता है। कठोर है, निर्मम है, निर्मम है क्योंकि जमीन की परतों को फाड़ देता है ताकि अन्न उग सके। कठोर है क्योंकि हर तकलीफ सहकर निर्माण कर सके। आपने कभी लोहे की महक को नहीं सूंघा होगा मगर फरीद को उसी लोहे की महक के साथ जीना है जिसके साथ उसका पसीना मिला होता है। इन 12 घंटों के लिए फरीद के कपड़े, फरीद का पसीना और खुद फरीद लोहमय हो जाते हैं।

2500RPM की रफ्तार से घूमता हुआ ग्राइंडिंग व्हील जब लोहे के स्पर्श में आता है तो धूल और लोहे की गर्द को हवा में उड़ा देता है, हवा उस गर्द को पूरे वातावरण में बिखेर देती है। पूरा वातावरण लोहमय हो जाता है। नाक में बांधी गई कपड़े की परत उस धुंध को रोकने में असमर्थ है, प्राणवायु के साथ लोहा और मिट्टी आपके फेफड़ों में भर जाती है।

अक्सर आपने शरीर में लोहे की कमी से होने वाली बीमारियों के बारे में जाना होगा, मगर फेफड़ों में बढ़ी हुई लोहे की मात्रा किन बीमारियों को जन्म देती है ये शायद अभी शोध का विषय है। इस में लोहे की खोज के लिए अत्याधुनिक मशीनों का आविष्कार भले ही हो गया है मगर फरीद कभी शोध का विषय नहीं बन पाया है। हर घिसा हुआ धातु का पुर्जा दिहाड़ी में इजाफा करता है, और हर पुर्जा ठेकेदार की कोठी, मालिक की नई फैक्टरी का भागीदार है मगर फरीद के लिए हर पुर्जा उसके बच्चे की मिठाई है, कमरे का किराया है, ईद की सेवई सब ये पुर्जा ही है। ठेकेदार और पुर्जे के बीच की ठगी से फरीद नाराज है, मगर हर जुमे की नमाज में खुदा से इस नाराजगी का जिक्र नहीं है। दुनिया की कोई भी इबादत शायद लूट के खिलाफ, शोषण के खिलाफ नहीं लिखी गई है। धर्म के लिए जिहाद का जिक्र फरीद ने सुना था, उस जिहाद में धर्म के लिए लड़ने का संदेश तो था मगर ऐसी कोई आयत फरीद ने नहीं पढ़ी थी जिसमें उस मासूम की पकौड़ियों और मिठाई की हसरतों का जिक्र होना था। ऐसा कोई कलमा न था जिसमें ठेकेदारों की लूट के खिलाफ कलम चली। हर मर्ज का उसने सिर्फ एक मरहम सुना था कि.....अल्लाह बड़ा बादशाह है।

फैक्टरी में काम पूरे जोर पर है। हर पुर्जे पर दाम तय है और दिन की दिहाड़ी पूरे काम पर। फरीद ग्राइंडर की रफ्तार से खफा है, सोचता है थोड़ा ज्यादा स्पीड हो जाए तो ज्यादा दिहाड़ी बन जायेगी। पुराना व्हील अब छोटा हो चुका है, शाम के 6 बज गए हैं। शाम को बाजार जाना है, मिठाई और पकौड़ी का ख्याल दिमाग में घूम रहा है। विनोद भाई देखना ग्राइंडिंग सही लगी है अभी कुछ ही देर तो हुई थी इस बात को बोले जब फरीद पुर्जा लेकर थोड़ी दूर बैठे विनोद के पास गया था, और अपने किए हुए काम को संतुष्टि के भाव से देख रहा था। 6 बज चुके है, थोड़ा सा माल रह गया है। नया व्हील बदलकर फटाफट काम निपटाने की प्रबल इच्छा उसे रोक लेती है। व्हील बदला जाता है और ग्राइंडर चालू होने की आवाज फैक्टरी के शोरगुल में खो जाती है।

गुणवत्ता की जांच करता विनोद पूरी तल्लीनता से अपने काम में डूबा है, अब फैक्ट्री का कोलाहल, धूल उसकी एकाग्रता में बाधक नहीं बनती।...... प.... टा... क..

एक कर्णभेदी शोर मानो कहीं धमाका हुआ हो। विनोद ने फैक्टरी में अक्सर ऐसी आवाजें सुनी थीं, मगर इस आवाज में आज डर क्यों है? किसी अनहोनी की आशंका क्यूं है? आज ये कर्कश आवाज कलेजे को चीरती हुई क्यूं जान पड़ रही है। 13 किलो वजनी और 2500 आरपीएम की रफ्तार से घूमता हुआ ग्राइंडिंग व्हील का फटना, ये उसी की आवाज है, विनोद इस आवाज को पहचानता है।

जब लोहा घिस रहा होता है, जब आपके हाथों में धातु का कोई पुर्जा होता है उस वक्त आपके सीने और व्हील के बीच महज 6 इंच की दूरी होती है। लोहे से फूटती चिंगारियों से खुद को बचाने के लिए आप कपड़े की एप्रन पहने होते हैं। मगर जब 13 किलो वजनी और 2500 आरपीएम की रफ्तार से घूमता हुआ व्हील फटता है तब कपड़े की एप्रन और कपड़े की कमीज उस वजन और रफ्तार का मुकाबला नहीं कर पाती। फिर उस व्हील का सामना कपड़े के भीतर मौजूद इंसान से होता है। जबड़ा टूट जाता है, पसलियां टूट जाती हैं। शरीर के नाजुक अंग तिलमिला उठते हैं, दिमाग इस हमले से अपने रखवाले को बचाने के लिए अचेतावस्था में चला जाता है। आपके भीतर के टूटे हुए अंगों का करुण रुदन सिर्फ आपका शरीर सुन रहा होता है और बाहर का शरीर रंग बदलकर उस दर्द को बयां करता है।

अभी कुछ देर पहले ही तो उससे बात हुई थी, अब वही फरीद गहरे दर्द में डूबा हुआ है। यह पीड़ा मृत्यु की पीड़ा है, जिसे सिर्फ मृत्यु के द्वार पर खड़ा इंसान ही महसूस कर सकता है। फरीद का जबड़ा टूटा हुआ है, पेट लगातार फूल रहा है, सीने के नीचे का हिस्सा पीला पड़ता जा रहा है, शायद पोटा फट गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में बुत बना विनोद फरीद के बगल में खड़ा है। फरीद अचेत पड़ा है तभी उसके मुंह से आखिरी शब्द निकलते हैं....गाड़ी बुला लो...फिर फरीद दुबारा कुछ नहीं बोला।

बस फरीद के भीतर के अंग उस मर्मांतक पीड़ा को बिना कोई आवाज किए चुपचाप आंसू बहा रहे थे जिन आंसुओं का रंग पीला था। -विमल काशीपुर

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।