पर उपदेश कुशल बहुतेरे...

दुनिया के मीडिया में हो या न हो पर भारत के मीडिया में मोदी के उस बयान की चर्चा है जो उन्होंने यूक्रेन से युद्धरत देश रूस के राष्ट्रपति से कहा कि ‘‘संघर्ष का समाधान युद्धक्षेत्र में संभव नहीं है’’। ये वे मोदी हैं जो भारत में पाकिस्तान के बारे में बात-बात पर कहते हैं कि हम छोड़ेंगे नहीं। छप्पन इंच की छाती रोज ही पाकिस्तान और चीन को दिखायी जाती है। जिस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के दम पर मोदी ने 2019 का चुनाव लड़ा और जीता था। ठीक रूस मोदी की कथित सर्जिकल स्ट्राइक से  ज्यादा बड़ी स्ट्राइक यूक्रेन में कर रहा है। उसने पहले यूक्रेन से क्रीमिया द्वीप छीना और अब उसके बड़े भू-भाग पर कब्जा कर के बैठा है। पुतिन की लड़ाई असल में यूक्रेन के बहाने अमेरिकी और पश्चिमी साम्राज्यवादियों से चल रही है और रूस स्वयं एक साम्राज्यवादी ताकत है। दोनों बड़ी ताकतें किसलिए लड़ रही हैं ताकि यूक्रेन पर कब्जा किया जा सके। साम्राज्यवादी लुटेरों को शांति का पाठ पढ़ाना या तो भोलापन है या फिर मूर्खता या फिर अपने कर्मों पर पर्दा डालने के लिए रामनामी चादर ओढ़ना है। 
    
हकीकत तो यह है कि भारत के भीतर और पड़ोसियों से चल रहे संघर्ष का समाधान मोदी युद्धक्षेत्र में या युद्धक्षेत्र बनाकर ही ढूंढते हैं। क्या तो कश्मीर, क्या तो छत्तीसगढ़ हर जगह जहां भी संघर्ष हैं वहां समाधान बंदूक के दम पर ही निकालने की नीति है। यही बात उन जनसंघर्षों पर लागू होती है जो मोदी काल में भारत में फूटे हैं। किसान आंदोलन में 700 किसान यूं ही नहीं मर गये। मोदी ने अपने चेले टेनी मिश्रा को जिसने किसानों को कुचला था अपने मंत्रिमण्डल में बनाये रखा। 
    
मोदी क्योंकि अक्सर ही प्रवचन देते रहते हैं। ऐसा ही कुछ वे रूस में भी कर आये। हालांकि रूस में पुतिन के कान में कहा हम सुख दुख में साथ हैं। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।