युवा मतदाता की उदासीनता
यह कहा जा रहा है कि वर्तमान चुनावों में युवा मतदाता, खासकर पहली बार वोट डालने की उम्र में पहुंच रहा मतदाता चुनावों के प्रति उदासीनता दिखा रहा है। मतदान के कम होने में उसक
यह कहा जा रहा है कि वर्तमान चुनावों में युवा मतदाता, खासकर पहली बार वोट डालने की उम्र में पहुंच रहा मतदाता चुनावों के प्रति उदासीनता दिखा रहा है। मतदान के कम होने में उसक
आखिरकार फकीर को विचित्र अनुभूति हो ही गई कि नरेन्द्र दामोदर दास मोदी नाम का व्यक्ति जैवीय नहीं है बल्कि उसे तो परमात्मा ने भेजा है। कि वह तो देवदूत है। देवदूत को अपने भीत
यह भारत में चल रहे आम चुनाव का सबसे ज्यादा मजेदार मौका था जब प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी पर अम्बानी-अडाणी से ‘‘टैम्पो भर’’ कर काला धन पाने का आरोप
9 मई को भारत के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक जिसे सेंसेक्स के नाम से जाना जाता है एक हजार अंक से ज्यादा गिर गया और यही हाल निफ्टी का भी
एक मई को यानी ऐन अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को देश के सत्ताधारी हिन्दू फासीवादियों की पार्टी भाजपा ने इंस्टाग्राम पर अपने आधिकारिक खाते से एक एनिमेशन वीडियो डाला। इसमें दि
लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर है। मोदी-शाह अपने चुनाव प्रचार में कश्मीर घाटी से धारा-370 हटाने को अपनी उपलब्धि के बतौर पेश कर रहे हैं। वे पूरे देश में कांग्रेस नेतृ
आजकल बहुत कम नेता हैं जो अपने राजनीतिक जीवन का कोई लक्ष्य या मिशन घोषित करते हैं। सबका लक्ष्य होता है सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना पर वे उसे घोषित नहीं कर सकते। नरेन्द्र मोद
भारत की शीर्ष न्यायपालिका के करतब उस पर न्याय की आस लगाये लोगों की समझ से परे होते जा रहे हैं। तमाम पूंजीवादी उदारवादी-वाम उदारवादी सुप्रीम कोर्ट से आस लगाते रहे हैं कि व
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को