साम्राज्यवादियों की चहेती संस्था को नोबेल शांति पुरस्कार

    इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार रासायनिक हथियार निषेधक संगठन [Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons] को दिया गया है। इस संगठन का घोषित उद्देश्य दुनिया भर में खतरनाक रासायनिक हथियारों की समाप्ति है। परन्तु इस संगठन का इतिहास दिखाता है कि यह दुनिया भर में साम्राज्यवादी मंसूबों की पूर्ति का माध्यम बना रहा है। खासकर अमेरिकी व रूसी साम्राज्यवादी इस संगठन के माध्यम से यह सुनिश्चित करने में लगे रहे हैं कि कोई अन्य देश रासायनिक हथियारों में उनकी बराबरी न कर पाये। इस तरह यह संगठन तमाम अन्य साम्राज्यवादी संस्थाओं की तरह शांति का नहीं युद्ध-तबाही को फैलाने का जरिया रहा है।<br />
    1997 में अस्तित्व में आये इस संगठन के ‘रासायनिक हथियार प्रतिबन्धों’ पर दुनिया के 189 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं। इसने तब दुनिया से रासायनिक हथियारों की समाप्ति के लिए अप्रैल 2012 की तारीख तय की थी। वर्ष 2013 में सीरिया में हुए रासायनिक हमले <span style="font-size: 13px;">में</span> करीब 1300 लोगों की मौतों ने जाहिर कर दिया कि यह संगठन अपने लक्ष्य को पाने से कोसों दूर है। जहां तमाम देशों ने गुपचुप तरीके से रासायनिक हथियारों के जखीरे अपने पास रखे हैं वहीं अमेरिका ने घोषित किया है कि वह अगले दशक तक ही इन हथियारों को समाप्त करेगा वहीं रूस ने इन्हें 2018 तक खत्म करने की घोषणा की है।<br />
    अमेरिकी व रूसी साम्राज्यवादी शीत युद्ध के जमाने से ही तमाम देशों को रासायनिक हथियार देते रहे हैं। सबसे ज्यादा रासायनिक हथियार भी इन्हीं के पास हैं। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद कायम हुए इस संगठन का इस्तेमाल अधिकतर अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए किया।<br />
    ईराक पर हमले के वक्त ईराक के पास रासायनिक हथियारों के होने का झूठा आरोप अमेरिका ने लगाया था। इस संस्था की इस काम में मदद ली गयी। ये हथियार ईराक-ईरान युद्ध के वक्त अमेरिका ने ईराक को मुहैय्या कराये थे। सीरिया पर हमले के लिए भी इसी संस्था का इस्तेमाल कर उस पर रासायनिक हथियारों के होने को बहाना बनाया जा रहा है। इस वक्त अमेरिका-रूस के मध्य समझौते के चलते ये संस्था सीरिया में रासायनिक हथियारों के खात्मे में जुटी है।<br />
    कुल मिलाकर यह संस्था साम्राज्यवादियों के वैश्विक कुकर्मों-हस्तक्षेपों-हमलों के लिए इस्तेमाल होती रही है। यह दुनिया पर सामरिक रूप से अमेरिका-रूस के वर्चस्व को कायम रखने का माध्यम बनी रही है। ऐसे में इसका शांति से कोई लेना-देना नहीं है। यह संयुक्त राष्ट्र की उन तथाकथित शांति सेनाओं की तरह है जो शांति के नाम पर हस्तक्षेप, कत्लेआम का जरिया बनती रही हैं।<br />
    नोबेल शांति पुरस्कारों का इतिहास ही यह दिखलाता है कि ये अक्सर ही साम्राज्यवादियों के चाटुकारों को दिया जाता रहा है। यह दुनिया में मौतों-लूट-हत्या के ठेकेदारों को दिया जाता रहा है। इसी तर्ज पर ओबामा को नोबेल पुरस्कार दिया गया था। अब उनकी चहेती संस्था को इससे नवाजा गया है। इन तमगों के पीछे खड़े व्यक्ति-संस्थायें शांति नहीं, हिंसा-मौतों के सौदागर हैं।

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