जब सब ये कहें ख़ामोश रहो
जब सब ये कहें कुछ भी ना कहो
जब सब ये कहें, है वक़्त बुरा
जब सब ये कहें,
ये वक़्त नहीं, बेकार की बातें करने का
जब सब ये कहें कुछ समझो तो
जब सब ये कहें कुछ सोचो तो
जब सब ये कहें
कलियों का चटकना क्या कम है
फूलों का महकना क्या कम है
शाख़ों का लचकना क्या कम है
बिंदिया का चमकना क्या कम है
ज़ुल्फ़ों का बिखरना क्या कम है
प्यालों का छलकना क्या कम है
जब इतना सब है, कहने को
जब इतना सब है लिखने को
क्या ज़िद है के ऐसी बात करो
जिस बात में ख़तरा जान का हो
जब सब ये कहें, ख़ामोश रहो
जब सब ये कहें, कुछ भी ना कहो
तब समझो, पतझड़ रुत आई
तब समझो मौसम दार का है
तब सहमी, सहमी रूहों को
ये बात बताना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है
हर क़र्ज़ चुकाना लाज़िम है
जब सब ये कहें, ख़ामोश रहो
जब सब ये कहें, कुछ भी ना कहो
तब समझो कहना लज़िम है
मैं ज़िंदा हूं, सच ज़िंदा है,
अल्फ़ाज़ अभी तक ज़िंदा हैं।