6 अप्रैल को दिल्ली की विशेष अदालत (अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम सह सत्र जिला न्यायालय) ने 15 साल पहले आंध्र प्रदेश के जी मुदुगुल मंडल के वाकापल्ली में कोंधु जनजाति की 11 महिलाओं के साथ बलात्कार के 13 आरोपी पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया। साथ ही अदालत ने कहा कि घटिया जांच के लिए पुलिस दोषी हैं जिसकी वजह से आरोपी छूट गये हैं। अब चूंकि आरोपी छूट गये हैं तो इसलिए बलात्कार पीड़ित महिलाओं को मुआवजा देने का आदेश भी कोर्ट ने दिया है।
ज्ञात हो कि ये घटना अगस्त 2007 की है जब पुलिस की विशेष शाखा ने वक्काकाली में माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाया था। उसी समय 11 आदिवासी महिलाओं ने अपने साथ पुलिसकर्मियों द्वारा बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई गयी थी। उसके बाद ये मुकदमा नीचे की अदालतों से होता हुआ विशेष न्यायालय पहुंचा और अब 15 सालों बाद न्यायालय ने आरोपियों को बरी कर दिया है। 11 पीड़ित महिलाओं में से 2 की मृत्यु भी इसी बीच हो चुकी है।
यह घटना केवल आंध्र प्रदेश की ही नहीं है। जिन भी इलाकों में खनिज सम्पदा है, वे ज्यादातर आदिवासी इलाके हैं। वहां माओवादियों से निपटने के नाम पर अक्सर ही पुलिस और अर्द्ध सैनिकों के अभियान चलते रहते हैं। इनका मकसद यहां से आदिवासियों को विस्थापित करना है। और इन अभियानों का शिकार महिलाएं बनती रहती हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार से लेकर थानों में उत्पीड़न तक किया जाता है। सोनी सोरी ऐसे उत्पीड़न का प्रतीक उदाहरण है। लेकिन इन महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करने वाले पुलिसकर्मियों को कोई सजा नहीं मिलती। कोई केस अगर अदालत पहुंच भी जाता है तो केस को कमजोर करने के लिए पुलिस सब कुछ करती है और इन सब कामों में सत्ता का पूरा संरक्षण उन्हें मिलता है।
इस केस में भी यही हुआ। शुरुआत से ही जो जांच अधिकारी नियुक्त किये गये थे वे इस केस को कमजोर बनाने का काम करते रहे। पीड़ित महिलाओं के बयान तक बहुत बाद में दर्ज़ किये गये। यहां तक कि इस केस को शुरू होने में ही 10 साल लग गये।
और उसके बाद न्यायालय ने क्या किया। उसने आरोपियों को बरी कर दिया। आये दिन गरीब, दलित, आदिवासियों, महिलाओं आदि जो भी कमजोर तबके से आते हैं उनको इसी तरह का न्याय नसीब होता है। ऐसा न्याय उनके साथ हुए अन्याय की पीड़ा को कई गुना बढ़ा देता है।