श्रीलंका में 7 दिसम्बर से हम्बानोटा बंदरगाह के 483 मजदूर हड़ताल पर चले गये। ये कर्मचारी बंदरगाह के निजीकरण का विरोध करने के साथ खुद को श्रीलंका पोर्ट अथारिटी के तहत स्थाई किये जाने की मांग कर रहे हैं। मजदूरों का नेतृत्व मगमपुरा पोर्ट वर्कर्स यूनियन कर रही है। मजदूरों का कहना है कि सरकार बंदरगाह को चीन को बेचने की साजिश रच रही है। <br />
जहां एक ओर मजदूर हड़ताल कर रहे थे वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति मैत्रीपाल सीरिसेना व प्रधानमंत्री रानील विक्रमसिंघे चीन की कम्पनी के साथ बंदरगाह को बेचने का सौदा कर रहे थे। सौदे के तहत बंदरगाह को पीपीपी मोड के तहत श्रीलंका व चीन की कम्पनियां मिलकर विकसित करेंगी। श्रीलंका पोर्ट अथारिटी बंदरगाह के 20 प्रतिशत व चीन की चीनी मर्चेण्ट पोर्ट होल्डिंग कम्पनी 80 प्रतिशत की मालिक होंगी। <br />
बंदरगाह के इस प्रस्तावित निजीकरण से मजदूरों को भय है कि उनका रोजगार छीन लिया जायेगा। अतः मजदूर 7 दिसम्बर से हड़ताल पर चले गये। उन्होंने जापानी कंटेनर हाइपेरियन हाइवे जिस पर 5000 मोटरगाड़ियां लदी थीं, को बंदरगाह पर ही रोक लिया। इसी तरह चीन के एक जहाज को सामान उतारने से रोक दिया। कुल तीन बड़े जहाजों को मजदूरों ने अपने कब्जे में कर सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया। <br />
पर सरकार ने मजदूरों को सुनने के बजाय उनके दमन का रास्ता अपनाते हुए नेवी को जहाज खाली कराने का निर्देश दे दिया। नौसेना के सैनिक मजदूरों को धमकाते व हवाई फायर करते हुए जहाज खाली कराने जा पहुंचे और उन्होंने जापानी जहाज खाली करा लिया। दर्जनों मजदूर जो जहाज को रोकने के लिए आगे बढ़े उन्हें नौसेना के सैनिकों द्वारा पीटा गया। <br />
जिन मजदूरों ने प्रशासनिक भवन पर कब्जा कर उसका गेट जाम कर रखा था उन्हें डण्डों, राइफलों द्वारा पीटा गया। 4 मजदूरों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। नौसेना के इस बर्बरतापूर्ण हमले के बावजूद मजदूरों की हड़ताल जारी है। <br />
नेवी ने हड़ताल कर रहे मजदूरों के संघर्ष को आतंकवादी कृत्य की तरह बदनाम करने का प्रयास किया। नेवी के अनुसार वह केवल विदेशी जहाजों के बाधा रहित आना जाना सुनिश्चित कराना चाहती है। <br />
हड़ताली मजदूरों को मार्च 2013 में दस हजार रुपये वेतन के साथ ट्रेनिंग पर भर्ती किया गया था। लगभग डेढ़ वर्ष की ट्रेनिंग के बाद उन्हें सरकारी कम्पनी की जगह नवगठित प्राइवेट कम्पनी मागमपुरा पोर्ट मैनेजमेण्ट कम्पनी के तहत भर्ती दिखा दिया गया। वर्तमान में इनका वेतन 24,500 रुपये है। <br />
मजदूर चीन को बंदरगाह बेचे जाने से आक्रोशित हैं। उन्हें अपनी नौकरी खोनेे का भय है। कई मजदूरों ने किस्तों पर कर्ज ले रखा है। नौकरी खोने पर उन्हें कर्ज जाल में डूबने का भय सता रहा है। मजदूर इससे भी आक्रोशित हैं कि नौसेना व सरकार उनके साथ आतंकवादियों सा सुलूक कर रही है। <br />
मजदूरों का कहना है कि सरकार संघर्ष के नेताओं को गिरफ्तार करने की तैयारी में है। उनका कहना है कि राजपक्षे सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी के लिए भर्ती किया था। अब मौजूदा सरकार इससे मुकर रही है। वे बंदरगाह के निजीकरण में जुटी है। उनका कहना था कि उनका संघर्ष निजीकरण के खिलाफ है और वे जीत तक संघर्ष जारी रखेंगे। <br />
श्रीलंका में पूंजीपरस्त सरकार द्वारा मजदूरों के संघर्षों के दमन में पिछले दिनों काफी तेजी आयी है। सरकार देशी-विदेशी पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए मजदूरों के संघर्षों से लाठी-गोली से निपट रही है। इसी के चलते बंदरगाह मजदूरों को जहाजों पर कब्जे को बाध्य होना पड़ा। उनका जुझारू संघर्ष उन्हें कितनी सफलता दिला पाता है यह आगे पता चलेगा।
श्रीलंका में बंदरगाह कर्मचारियों की जुझारू हड़ताल
राष्ट्रीय
आलेख
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।