दुनिया में सबसे पुराने लोकतंत्र का दावा करने वाले अमरीका में दोनों बड़ी पार्टियों- डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी- ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए तैयारी और प्रचार जोर-शोर से शुरू कर दिया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अंततः अपने को राष्ट्रपति चुनाव से उस समय बाहर कर लिया जब मानसिक तौर पर अस्थिर रहने के चलते डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने उन पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार से हटने के लिए दबाव डालना तेज कर दिया। अब डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के बतौर मौजूदा उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस के लिए प्रचार अभियान तेज कर दिया है। दूसरी तरफ, रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हैं। ये वही डोनाल्ड ट्रम्प हैं जिन्होंने 6 जनवरी, 2021 को राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद बलात राष्ट्रपति बनने के लिए संसद पर अपने हिंसक समर्थकों द्वारा धावा बोलवा दिया था।
अब ट्रम्प का मुकाबला कमला हैरिस से है। दोनों ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार करने वाले यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की हत्यारी सरकार की नीति का समर्थन किया है। बाइडेन ने अपने राष्ट्रपतित्व काल में इजरायली हुकूमत द्वारा गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार और वहां महाविनाश लाने में इस हुकूमत को अमरीकी हथियारों की भरपूर आपूर्ति की है। इजरायली हुकूमत की हर तरह से मदद की है। ईरान के विरुद्ध घेरेबंदी करने के लिए प्रतिरोध की धुरी के विरुद्ध अरब देशों के शासकों को लुभाने और भयभीत करने का प्रयास किया है। इसने रूस के विरुद्ध यूक्रेन को हथियारों से मदद की है। यूरोप के नाटो सहयोगियों के साथ रूस की घेराबंदी करने की कोशिश की है। इसने दक्षिणी चीन सागर और ताइवान में चीन को घेरने के लिए जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों के साथ युद्धाभ्यास किये हैं और गठबंधन बनाये हैं। जो बाइडेन की विदेश नीति, जिसका सारतत्व अमरीकी प्रभुत्व को बचाये रखना है, का कमला हैरिस पूर्णतया समर्थन करती हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी की घरेलू नीति मजदूर-मेहनतकश आबादी के विरुद्ध व्यापक हमला करने की रही है। इजरायली हुकूमत द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार के विरुद्ध प्रदर्शन करने वाले प्रदर्शनकारियों पर बड़े पैमाने पर अमरीकी हुकूमत द्वारा हमले किये गये हैं। उन्हें यहूदी विरोधी बताकर गिरफ्तार किया जा रहा है, उनको नौकरियों से निकाला जा रहा है। इसके अतिरिक्त आज अमेरिका में करोड़ों लोग अपने वेतन की क्रय शक्ति में गिरावट देख रहे हैं। वे अच्छी नौकरियों को दुर्लभ होते देख रहे हैं। उन्होंने घर के मालिक होने का सपना छोड़ दिया है। भविष्य में उनके लिए अंधेरा ही अंधेरा है। अश्वेत अमरीकियों पर नस्लवादी हमले जारी हैं।
हालांकि डेमोक्रेटिक पार्टी का सामाजिक आधार पारम्परिक तौर पर मजदूर वर्ग, अश्वेत आबादी और एशियाई-अफ्रीकी लोगों के बीच रहा है। लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी की युद्धोन्मादी नीति ने और मेहनतकश अवाम की जीविका पर किये जाने वाले हमलों ने उसे अपने पारम्परिक जनाधार से काफी हद तक वंचित कर दिया है। डेमोक्रेटिक पार्टी सैनिक-औद्योगिक तंत्र के लिए काम कर रही है। यह उसी तरह एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग के हितों के लिए काम कर रही है जिस तरह, रिपब्लिकन पार्टी काम कर रही है। दोनों पार्टियां एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग की पार्टियां हैं। दोनों पार्टियां अमरीकी विश्व प्रभुत्व को बचाये रखने के लिए प्रयासरत हैं।
इसी दौरान डोनाल्ड ट्रम्प पर हमला हुआ। वे इस हमले में बच गये। इससे डोनाल्ड ट्रम्प का आक्रामक प्रचार और तेज हो गया। रिपब्लिकन पार्टी ने इस हमले का इस्तेमाल करते हुए यह कहना शुरू कर दिया कि डोनाल्ड ट्रम्प को शारीरिक तौर पर खत्म करने की साजिश के पीछे ‘‘वामपंथियों’’ का हाथ है। इस मिथ्या प्रचार के जरिये रिपब्लिकन पार्टी ने अपना दक्षिणपंथी एजेण्डा और तेजी से प्रचारित करना शुरू कर दिया। यह डोनाल्ड ट्रम्प ही था, जिसने ‘‘अमरीका प्रथम’’ की नीति को आगे बढ़ाते हुए चीन के विरुद्ध व्यापक व्यापार युद्ध शुरू किया था। इसने इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत के समर्थन में अपना दूतावास तेल अबीब से येरूशलम स्थानांतरित करके येरूशलम पर इजरायली कब्जे को अमरीकी मान्यता प्रदान की थी। इसने यूरोप के नाटो देशों को धमकी दी थी कि वे नाटो के बजट में पर्याप्त खर्च नहीं कर रहे हैं, कि उन्हें अपने बजट का कम से कम दो प्रतिशत नाटो मद में खर्च करना चाहिए। उसने अफगानिस्तान में आक्रामक युद्ध जारी रखा था। ट्रम्प का शासन काल अपने श्वेत नस्लवादी रुख के लिए कुख्यात रहा था। यह आप्रवासियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करता रहा था। इसने मैक्सिको सीमा पर आप्रवासियों को रोकने के लिए दीवार खड़ी की थी।
एक तरफ, घोर दक्षिणपंथी ट्रम्प राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार है दूसरी तरफ डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस हैं जो अपनी आधी भारतीय पहचान और नारी पहचान का इस्तेमाल करते हुए दिखावा यह कर रही हैं कि वह उदारपंथी हैं लेकिन वे अमरीकी सत्ता के एकाधिकारी पूंजीपतियों के लिए अपनी युद्धोन्मादी नीति के लिए जानी जाती हैं।
यह राष्ट्रपति पद का चुनाव अमरीकी सैनिक-औद्योगिक तंत्र के हितों को और अमरीकी साम्राज्यवाद के हितों को केन्द्र में रख कर लड़ा जा रहा है। इस चुनाव को यहूदी अरबपतियों की और अन्य अरबपतियों की लाबी अपने धन के माध्यम से पूरी ताकत के साथ प्रभावित कर रही है। कमला हैरिस ने थोड़े ही दिनों में 12 करोड़ डालर से ज्यादा की धनराशि इन अरबपतियों से जुटा ली है। दूसरी तरफ एलन मस्क जैसे अरबपति डोनाल्ड ट्रम्प के अभियान में अपनी ताकत लगाये हुए हैं।
अक्सर, मजदूर-मेहनतकश आबादी के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी के लोग यह भ्रम फैलाने में कामयाब हो जाते हैं कि कम बुराई वाले पक्ष को चुना जाए। जबकि हकीकत यह है कि डेमोक्रेटिक पार्टी भी उतनी ही मजदूर-मेहनतकश विरोधी है जितनी कि रिपब्लिकन पार्टी है। इनके नकाब अलग-अलग हैं। यदि इनके नकाब को हटा दिया जाए तो ये उतने ही खूंखार भेड़िया हैं, जितना कि घोषित दक्षिणपंथी ट्रम्प है।
डेमोक्रेटिक पार्टी ट्रम्प को फासीवादी कहकर अपने को फासीवाद विरोधी घोषित करती है। यह मतदाताओं को 6 जनवरी, 2021 की घटना की याद दिलाकर ट्रम्प द्वारा सत्ता पर कब्जा करने की कोशिशों का हवाला देती है। लेकिन यह सब करते हुए वह यह नहीं बताती कि इसके शासनकाल में घरेलू व विदेश नीति मूलतया वही रही है जो ट्रम्प की रही है। इसने चीन के साथ व्यापार युद्ध को और तेज किया है। इसने ताइवान के मसले पर चीन के विरुद्ध उकसावे भरी कार्रवाइयां की हैं। इसने रूस के विरुद्ध यूक्रेन युद्ध में अरबों डालर के हथियार और प्रशिक्षक भेजे हैं।
कुल मिलाकर, इन दोनों पार्टियों के उम्मीदवार अमरीकी मजदूर वर्ग के हितों के विरोधी और अमरीकी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग के स्वार्थों के पैरोकार हैं।
ट्रम्प पर हुए हमले के बारे में बोलते हुए जो बाइडेन ने यह कहा कि अमरीकी लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा का स्थान नहीं है। यह भी एक सफेद झूठ है। यहां यह ध्यान में रखने की बात है कि अमरीकी समाज में हिंसा की व्याप्ति आम घटना होती गयी है। ऐसा शायद कोई भी महीना नहीं बीतता जब अमरीका में कहीं न कहीं हिंसा में लोग न मारे जाते हों। राज्य की पुलिस द्वारा अश्वेत लोगों, विशेषकर मजदूरों-मेहनतकश लोगों पर हिंसात्मक हमले होते रहते हैं और यह काम वे निर्द्वन्द्व होकर करते हैं। कोई सनकी, सिर्फ सनक के लिए लोगों की हत्या कर देता है। यहां तक कि कई राष्ट्रपतियों की पहले भी हत्या हो चुकी है और कई राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों पर हत्या के प्रयास हुए हैं। यह अमरीकी पूंजीवादी समाज की सडांध की ही एक अभिव्यक्ति है। यहां राज्य अपने नागरिकों की निगरानी करता है, उनकी जासूसी करता है और नागरिकों के जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा लगातार चलती रहती है। ऐसी स्थिति में यह कहना कि अमरीकी लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा नहीं होती, यह सरासर झूठ है।
हकीकत यह है कि अमरीकी समाज में हिंसा एक आम घटना बन गयी है। और यह बढ़ती जा रही है।
इसका कारण अमरीकी पूंजीवाद में है। इसकी भयंकर असमानता पर आधारित व्यवस्था में है। जहां एक तरफ खरबपतियों की थोड़ी सी आबादी है जिनकी सम्पदा बेतहाशा बढ़ रही है और दूसरी तरफ बेरोजगार बेघर और महंगाई की मार से पीड़ित करोड़ों लोग हैं। ऐसे भयंकर असमान समाज में लोगों का गुस्सा, बेचैनी और असंतोष यदि सही रास्ते के पूंजीवाद विरोधी सामूहिक संघर्ष की ओर नहीं जाता तो वह कोई न कोई मुहाना इसके इजहार के लिए तलाशेगा। यह कई बार दिशाहीन हिंसा को जन्म देता है। इसके अतिरिक्त, पूंजीवाद चरम व्यक्तिवाद को पैदा करता है। व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करता है। जहां पर एक तरफ लोगों को अवसाद और मानसिक बीमारियों का शिकार बनाता है, वहीं वह लोगों को हिंसक बनाता है।
जो हुकूमत दुनिया भर में युद्धों के जरिये थोक पैमाने पर हिंसा कर रही है, उसका महिमामण्डन कर रही है, वह फुटकर हिंसा के लिए अपने घर में हिंसा का माहौल भी बढ़ा रही है।
यही पतनशील अमरीकी समाज की आज की कड़वी सच्चाई है।
आगामी राष्ट्रपति चुनाव के पहले ट्रम्प पर हुआ हमला अमरीकी समाज में फैली हिंसा का ही परिणाम है। यदि इसमें कोई साजिश का पहलू भी रहा हो, तो भी इसकी जड़ें इसी भयंकर रूप से असमान समाज में हैं।
अमरीकी ‘‘लोकतंत्र’’ की यही सबसे बड़ी सच्चाई है कि इस ‘‘लोकतंत्र’’ में हर चार साल बाद यह तय करना होता है कि अमरीकी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग के किस गुट को शासन हेतु चुना जाए। इस ‘‘लोकतंत्र’’ में मजदूर-मेहनतकश आबादी के ऊपर कौन सा गुट शासन करेगा, इस चुनाव में भी हमेशा की तरह यही फैसला होगा।
इस ‘‘लोकतंत्र’’ के प्रहसन में धनतंत्र अपनी पूरी ताकत के साथ अपना रूप प्रदर्शित करेगा और इस धनतंत्र की ताकत के बल पर जो भी सत्तासीन होगा, वह इस प्रहसन को जारी रखेगा।
अमरीकी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग के लिए इस लोकतंत्र का यही अर्थ है।
मजदूर-मेहनतकश आबादी को इस ‘‘लोकतंत्र’’ से कुछ भी सकारात्मक नहीं मिलना है। उसे प्रहसन में छलावा ही मिलना है।
उसकी लड़ाई इस प्रहसन को खत्म करने और धनतंत्र की सत्ता के विरुद्ध संगठित संघर्ष में जाने की है। चाहे यह जितना भी समय ले, रास्ता यही है।
अमरीका में लोकतंत्र का प्रहसन और धनतंत्र का खेल
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को