गाजापट्टी पर इजरायली नरसंहार का क्षेत्रीय प्रभाव व परिणाम

इजरायल द्वारा गाजापट्टी पर किये जा रहे नरसंहार के चार महीने से ऊपर हो गये हैं। अब तक 28,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और 70,000 के आस-पास घायल हो चुके हैं। इसके
इजरायल द्वारा गाजापट्टी पर किये जा रहे नरसंहार के चार महीने से ऊपर हो गये हैं। अब तक 28,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और 70,000 के आस-पास घायल हो चुके हैं। इसके
मैं जिस शहर में रहता हूं वह युद्ध नहीं लड़ रहा है। उस पर नरसंहार और अत्याचार हो रहे हैं।
दक्षिण अफ्रीका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था। लम्बी सुनवाई के बाद अंततः 26 जनवरी को अंतर्राष्
यहूदी नस्लवादी इजरायली सत्ता द्वारा जारी नरसंहार के साथ-साथ आतंकवादी कार्रवाइयों को भी अंजाम दिया जा रहा है। उन्होंने नये वर्ष की शुरूवात के दूसरे ही दिन लेबनान की राजधान
गाजा की मेरी प्रिय माताओं,
इजरायल का गाजापट्टी में नरसंहार और विनाश जारी है। इसका जवाब यमन के हौथी विद्रोहियों ने दिया है। हौथी ने घोषणा की है कि जब तक इजरायल अपना नरसंहार गाजापट्टी में बंद नहीं कर
हमास के हमले के बहाने इजरायल द्वारा फिलिस्तीन में ढायी बर्बरता हर बीतते दिन
2 जुलाई को इस्राइली सेनाओं ने वेस्ट बैंक स्थित जेनिन कैम्प पर भीषण हमला बोल दिया। इस जेनिन शरणार्थी कैम्प में करीब 14 हजार फिलिस्तीनी नागरिक रहते हैं। हमला 3 दिनों तक चलत
रूस-यूक्रेन युद्ध दूसरे वर्ष में प्रवेश कर गया है। एक वर्ष पूरा होने के समय अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन और पोलैण्ड की यात्रा के दौरान यूक्रेन को और ज्यादा आधुनिक हथियार देने की बात की और
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है।
1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।
असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता।
इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।
आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।