भारत मंडपम पर करोड़ों खर्च लेकिन मज़दूरों को नहीं मिला वेतन

G 20 सम्मेलन

G 20 सम्मेलन के दौरान मोदी ने दोनों हाथों से पैसे खर्च किये ताकि विदेशी मेहमानों को भारत की भव्यता दिखाई दे। और इसीलिए उन्होंने 2700 करोड़ की लागत से भारत मंडपम तैयार करवाया। लेकिन इतने पैसे खर्च करने के बाद भी मज़दूरों को उनका वेतन तक नहीं दिया गया। मज़दूर अभी भी अपनी मज़दूरी पाने के लिए भटक रहे हैं।

ज्ञात हो कि भारत मंडपम को बनाने के लिए नोयडा की प्रिस्तीन यूटिलिटीज कम्पनी को ठेका दिया गया था जिसने करीब 250 श्रमिकों को काम पर रखा था। इन श्रमिकों का कहना है कि जब हमें काम पर रखा गया था तब 16,000 रुपये तनख्वाह बताई थी लेकिन G 20 का कार्यक्रम ख़त्म होते ही हमें जाने के लिए बोल दिया गया। और मात्र 2700 रुपये पकड़ाये हैं। किसी मज़दूर को ये पैसे भी नहीं मिले हैं। जब हम नोयडा जाते हैं तो वहां कोई नहीं सुनता और यहाँ प्रगति मैदान में आने पर यहां भी हमें अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है। जबकी हमने जी 20 कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तीन दिन तक भूखे प्यासे रहकर काम किया। उस दौरान हमें नहाने तक की भी फुर्सत नहीं थी।

19 सितम्बर को प्रगति मैदान के बाहर प्रदर्शन कर रहे श्रमिक उमाशंकर ने बताया कि वेतन न मिलने के कारण हम मकान का किराया नहीं दे पा रहे हैं। मकान मालिक हमें घर से निकालने की धमकी दे रहा है। हमारे छोटे छोटे बच्चे हैं। आखिर हम कहाँ जाएंगे? 

जी 20 सम्मेलन के दौरान जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाकर और विदेशी मेहमानों को सोने चांदी के बर्तनों में खाना खिलाकर मोदी ने भारत की एक झूठी तस्वीर गढ़ने की कोशिश की लेकिन जी 20 कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जिन मज़दूरों ने अपना पसीना बहाया उन्हीं मज़दूरों को वेतन तक न मिलना भारत में मज़दूरों की दुर्दशा को ही दिखाता है साथ ही मोदी की श्रमेव जयते की असलियत को भी दिखाता है।

Tags

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को