गणेश चतुर्थी के अवसर पर बवाल

मध्य प्रदेश और सूरत में गणेश चतुर्थी पर साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश

7 सितंबर शनिवार के दिन गणेश चतुर्थी के अवसर पर मध्य प्रदेश में रतलाम के मोचीपुरा में समारोह में गणेश की मूर्ति ले जा रहे थे। गणेश की मूर्ति पर पत्थर फेंकने की अफवाह फैली और तथाकथित हिन्दू कट्टरपंथी संगठन पास के पुलिस थाने पर जा कर प्रदर्शन करने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि मूर्ति को खंडित कर दिया गया है। और फिर पुलिस पर दबाव बनाने लगे कि अपराधियों को गिरफ्तार करो। पुलिस से झगड़ा करने लगे और दूसरे समुदाय के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। उस दौरान पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। जिस इलाके से गणेश की मूर्ति लेकर जा रहे थे उस जगह सारे सीसीटीवी कैमरों को पुलिस ने चेक किया। कहीं पर इस घटना कोई भी सुराग नहीं मिला ।

मजे की बात यह है कि जो पुलिस पर दबाव बनाने वाले लोग थे और बवाल काट रहे थे वही अफवाह फैलाने की साजिश में शामिल पाये गये। सारे हिन्दू नाम हैं - लखन रजवानिया, किन्नर गुरु काजल, रवि शर्मा, महेंद्र सोलंकी, जलज सांखला, रवि सेन, विजय प्रजापति, नितेश, मुकेश बंजारा, मंथन भोंसले, अमन जैन, जयदीप गुर्जर और अजू बरगुंडा। सभी पर भीड़ को उकसाने, इकट्‌ठा होकर हंगामा करने और गाड़ियों में तोड़फोड़ करने का आरोप है। जलज सांखला भाजयुमो का जिला उपाध्यक्ष है।

वहीं पर जिस पुलिस अधिकारी ने झूठी अफवाह फैलाने वाले लोगों का खुलासा किया उसका रात में ही मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने तबादला कर दिया।

वहीं दूसरी और गुजरात के सूरत शहर के सैयदपुरा में गणेश चतुर्थी के पंडाल में पत्थर फेंकने के बाद बवाल हुआ। बताया जा रहा है कि पत्थर फेंकने वाले 6 लडकों ने एक चलते आटो से पंडाल में पत्थर फेंका। यह भी कहा जा रहा है कि लड़के खेल रहे थे तभी पत्थर के टुकड़े जा कर पंडाल में गिरे और उसके बाद बवाल हुआ।

उसी रात को भाजपा का एक मंत्री आकर सबक सिखाने जैसा जहरीले भाषण दे गया। रात भर उपद्रवियों ने बवाल काटा। पुलिस द्वारा दूसरे समुदाय के लोगों के घरों पर रात में ही जाकर धर पकड़ शुरू कर दी गयी। 32 लोगों को गिरफ्तार किया है और बुरी तरह पिटाई की गई। आरोपियों के घरों को बुल्डोजर से गिरा दिया गया है।

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।