महोदय! कृपया!! अपनी जमा-पूंजी ढंग से टटोलिये

/mahoday-krapayaa-apni-jama-poonji-dhang-se-tatoliye

आठ मार्च का दिन था। मोदी जी ने फरमाया, ‘‘मैं सबसे धनी व्यक्ति हूं क्योंकि मेरी जमा पूंजी माताओं और बहनों के आशीर्वाद से भरी हुई है, और यह आशीर्वाद लगातार बढ़ता जा रहा है।’’ 
    
और फिर मोदी जी ने बताया कि उनकी यह जमा पूंजी कैसे बनी और कैसे बढ़ती जा रही है। मोदी जी ने यह नहीं बताया कि इसमें जाकिया जाफरी, बिलकिस बानो, अंकिता भण्डारी का कितना योगदान है। 
    
उन्होंने बताया कि कामकाजी महिलाओं का मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से 26 सप्ताह करने; धारा-370 खत्म करके कश्मीरी महिलाओं को बाहरी व्यक्ति से विवाह करने पर भी पैतृक सम्पत्ति पर अधिकार दिलाया; उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर दिलवाये; शौचालय बनवाये; ट्रिपल तलाक खत्म कर लाखों मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी बर्बाद होने से बचायी; आदि, आदि।  कृपया! उन हजारों-हजार औरतों को नाम भी ले लेते जो गुजरात से लेकर मणिपुर तक कत्ल कर दी गयीं। 
    
ठीक आठ मार्च के दिन खबर आई कि आस्ट्रेलिया में एक भाजपा नेता बालेश धनखड़ को 40 साल की सजा कई लड़कियों के साथ बलात्कार के कारण मिली। बालेश धनखड़ ‘ओवरसीज फ्रेंडस आफ बीजेपी’ का अध्यक्ष रहा है। मोदी जी आपके चेले क्यों इतना नाम कमा रहे हैं? 
    
कर्नाटक में एक इजरायली और एक भारतीय पर्यटक के साथ बलात्कार के बाद ‘टाइम्स आफ इजरायल’ ने बताया कि वर्ष 2022 में हर दिन 90 महिलाओं से भारत में बलात्कार किये गये। आपके ‘दोस्त’ के देश का अखबार ऐसी सच्चाई क्यों उगल रहा है? 
    
मोदी जी आपकी पार्टी के 54 सांसद और विधायकों पर बलात्कार के केस क्यों चल रहे हैं। और ये आपकी जमा पूंजी के हिस्सेदार हैं कि नहीं। पूरे देश में सभी पार्टियों में सबसे ज्यादा बलात्कारी सांसद-विधायक आपकी पार्टी में हैं। कहीं ऐसा तो नहीं जिसे आप अपनी जमा पूंजी समझ रहे हैं वह कुछ और हो। 

 

यह भी पढ़ें :-

संघ व महिलायें

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।