
पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में महिलाओं की स्थिति चर्चा का मुद्दा बना रहा। जब राहुल गांधी ने कहा कि संघ महिलाओं को अपने भीतर शामिल नहीं करता व उसकी शाखाओं में महिलायें हाफ पैन्ट पहने नहीं दिखाई देतीं तो संघ व भाजपा के नेताओं ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। संघी नेताओं ने तो राहुल को यहां तक कह डाला कि हाफ पैन्ट पहने महिलायें देखनी हों तो वे महिला हाॅकी मैच में जायें। <br />
पर राहुल गांधी के आरोप की कसक संघ को लगी रही। उसका नया बयान आया कि संघ की शाखाओं में महिलायें इसलिए नहीं होतीं कि शाखा सुबह 6 बजे से लगती है और शाखा में होने वाले शारीरिक अभ्यास को स्त्री-पुरुष एक साथ नहीं कर सकते। सुबह 6 बजे महिलायें अपने घरेलू कामों में लगी होती हैं। महिलाओं की शाखा अलग से उनका संघी संगठन राष्ट्रीय सेविका समिति दोपहर में लगाती है। वरिष्ठ संघी नेता मन मोहन वैद्य ने कहा कि संघ के बाकी सभी संगठनों में महिलायें भागीदारी करती हैं। उनकी भागीदारी बढ़ाने पर नियमित चर्चा होती है। कुछ जगहों पर परिवार शाखा चला कर संघ अपनी केवल पुरुषों वाली छवि को भी दूर कर रहा है। <br />
संघी नेता अपनी सफाई देने की प्रक्रिया में यह स्वीकार करते हैं कि अभी तक संघ के पदाधिकारियों में कोई महिला नहीं है। आखिर महिलाओं के मुद्दे पर संघ व भाजपा नेता इतने तिलमिलाये क्यों हैं?<br />
संघी-भाजपाई नेताओं के सारे दावों के उलट वास्तविकता यही है कि संघ एक महिला विरोधी संगठन है। वह स्त्री-पुरुष बराबरी का घोर विरोधी है। वह स्त्रियों का काम घरों के भीतर बच्चे पालने व पुरुषों की सेवा करने को मानता है। इस मामले में उसकी सोच फासीवादी हिटलर से पूर्णतया मिलती है। अपनी इस सामंती सोच को जब तब संघी नेता दोहराते भी रहे हैं। इससे आगे बढ़कर संघ महिलाओं को सोचने समझने के मामले में पुरुषों से कमतर मानता है। इनके अनुसार 20-22 वर्ष की हिन्दू लड़कियों को आसानी से बरगलाया जा सकता है यहीं से उसका लव जेहाद से लेकर बेटी-बहू बचाओ सरीखे नारे उपजते हैं। उसके अनुसार हिन्दू स्त्रियों की रक्षा का कार्यभार हिन्दू पुरुषों का है। वर्ण व जाति व्यवस्था का समर्थक संघ स्त्री विरोधी मनु स्मृति का पुजारी है और अपने लक्ष्य ‘हिन्दू राष्ट्र’ में उसे संविधान की जगह स्थापित करना चाहता है। <br />
संघ की इसी नारी विरोधी सोच का ही यह परिणाम है कि संघ की सदस्यता केवल पुरुषों को हासिल है। जहां तक राष्ट्रीय सेविका समिति का सवाल है तो वह संघ के बाकी संगठनों की तरह एक संगठन है जो महिलाओं के बीच नारी विरोधी सोच को ही प्रसारित करता है। यहां महिलाओं को साम्प्रदायिक सोच से लैस कर संघ के फासीवादी एजेण्डे को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। संघ की यह स्त्री विरोधी सोच ही है कि संघी पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं के लिए विवाह निषिद्ध है। इन स्वयंसेवकों के लिए माना जाता है कि वे स्त्रियों के सम्पर्क में आने से पतित हो जायेंगे। <br />
आखिर अगर संघ का महिलाओं के प्रश्न पर रुख घोर सामंती, स्त्री विरोधी है तो संघी नेता इसे स्वीकार क्यों नहीं करते? वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। समाज में वक्त के साथ-साथ जैसे-जैसे जनवाद की चेतना मजबूत होती गयी है वैसे-वैसे स्त्री-पुरुष बराबरी का सवाल भी मुखरता से पेश हुआ है। ऐसे में कोई भी संगठन जो भारतीय समाज में अपना आधार कायम करना चाहता है उसे यह दिखावा करना पड़ता है कि वह स्त्री-पुरुष बराबरी का पक्षधर है। चुनावी राजनीति में वोट की मजबूरी भी उसे इस ओर धकेलती है कि वह स्त्री-पुरुष बराबरी का दिखावा करे। संघ व भाजपा की यही मजबूरी उन्हें इस दिखावे को मजबूर करती है। <br />
पर उसकी स्त्री विरोधी सोच जब तक उसके पर्दे के पीछे से जब तब बाहर छलकती रहती है। मामला चाहे लव जेहाद का हो या बेटी-बहू बचाओ का या फिर महिलाओं की वेश-भूषा का सब मामलों में संघ स्त्री विरोधी सोच से लैस है। अपनी सांगठनिक संरचना में भी वह स्त्री विरोधी है। ऐसे में इस सामंती सोच के संगठन सारी कलाबाजियों के बावजूद अपनी स्त्री विरोधी सोच को छिपा नहीं सकते। <br />
ं संघ की महिला विरोधी सोच तब भी सामने आती है जब ये अपने साम्प्रदायिक एजेण्डे को फैलाने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं। दंगों के वक्त इसके लम्पट तत्वों को दूसरे धर्म की महिलाओं के बलात्कार तक से गुरेज नहीं है वहीं अपने धर्म की महिलाओं की रक्षा का दावा करते हुए ये हमेशा साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाते रहते हैं। <br />
संघ के प्रमुख पदाधिकारियों में कोई महिला नहीं है। संघ के आदर्श ‘हिन्दू राष्ट्र’ में महिलाओं की जगह घर में पति की सेवा, चूल्हा चौका, बच्चों की देखभाल है। घर से बाहर निकल सामाजिक जीवन, राजनीति में महिलाओं की बराबरी से भागीदारी का संघ घोर विरोधी है। वह उनके लिए ऐसी शिक्षा चाहता है जो उन्हें पालतू गुड़िया में तब्दील करे। संघ की इस घोर नारी विरोधी दृष्टि को सबके सामने लाना जरूरी है।