प्रगतिशील भोजनमाता संगठन का सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न

/pragatisheel-bhojanmata-sangthan-ka-sammelan-safaltapoorvak-sampanna

हरिद्वार/ उत्तराखंड के हरिद्वार में प्रगतिशील भोजनमाता संगठन का दो दिवसीय सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। सम्मेलन के दूसरे दिन 3 जनवरी 2025 को सम्मेलन की कार्यवाही की शुरुआत करने से पहले सम्मलेन ने भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले को, उनके जन्म दिवस के दिन, भारत में महिला शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को याद करते हुए उनके कामों को क्रांतिकारी सलाम प्रस्तुत किया। सम्मेलन ने इस बात पर चर्चा की कि आज के दौर में जब फासीवादी ताकतें नफरत का जहर फैला रही हैं, उस समय सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख का तमाम चुनौतियों को सहते हुए एक साथ महिलाओं के लिए काम करना उनकी सच्ची दोस्ती और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सम्मेलन ने यह संकल्प लिया कि वह सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख से प्रेरणा लेते हुए यूनियन के काम को मजबूती प्रदान करेंगे।
    
जहां पहले दिन सम्मेलन ने घोषणा पत्र और राजनीतिक रिपोर्ट को पास करते हुए शाम को एक क्रांतिकारी सांस्कृतिक कार्यक्रम किया वहीं दूसरे दिन पिछले पांच सालों में किए गए संघर्षों और कार्यवाहियों पर बात-चीत की और इस पर विचार विमर्श किया कि यूनियन को किस तरह भोजनमाताओं के बीच व्यापक बनाते हुए उनके संघर्षों को आगे बढ़ाना है।
    
सम्मेलन ने अपना एक 43 सूत्रीय मांग पत्र पास किया जिसमें आर्थिक से लेकर राजनीतिक सभी प्रकार की मांगें शामिल हैं। प्रगतिशील भोजनमाता संगठन का यह मांग पत्र इस बात को दिखाता है कि यह यूनियन अपनी मांगों ही नहीं बल्कि तमाम मेहनतकश आबादी की मांगों के प्रति प्रतिबद्ध है।
    
सम्मेलन ने अपने संगठन के केंद्रीय निकाय का भी चुनाव किया। सम्मेलन ने यूनियन के अध्यक्ष के बतौर कुमाऊं मंडल के रामनगर से भोजनमाता शारदा को चुना। हल्द्वानी से रजनी जोशी को महामंत्री, हरिद्वार से रजनी को उपाध्यक्ष तथा हरिद्वार से नीता गहलोत को कोषाध्यक्ष के रूप में चुना। नवनिर्वाचित प्रतिनिधियों ने सम्मेलन द्वारा दी गई जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए कहा कि आज हमारी यूनियन की सबसे बड़ी जरूरत उसे ज्यादा से ज्यादा भोजनमाताओं के बीच लेकर जाना है और उनकी मांगों को लेकर संघर्ष करना है। नव निर्वाचित अध्यक्ष ने कहा कि आज हमने सावित्री बाई फुले से यह सीखा कि महिलाएं जब भी आगे बढ़कर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करती हैं तब वह पितृसत्ता द्वारा किए गए हमले की शिकार होती हैं। हमें सावित्रीबाई फुले की तरह दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना है। 
    
महामंत्री रजनी ने कहा कि हमें अपने संघर्ष को सिर्फ आर्थिक मांगों तक ही सीमित नहीं करना है, बल्कि हमें समस्त महिला आबादी की मुक्ति के लिए भी संघर्ष को आगे बढ़ाना है। हमें महिलाओें के हितों के विरुद्ध काम कर रही रूढ़िवादी सामंती सोच के खिलाफ संघर्ष को भी बुलंद करना है।
    
उपाध्यक्ष रजनी ने कहा कि हमें अपने संगठन को और आगे बढ़ाते हुए भोजनमाताओं के बीच से सशक्त नेतृत्व पैदा करना है।
    
सम्मेलन का समापन एक खुले सत्र के साथ किया गया जिसमें अलग-अलग जनसंगठनों, ट्रेड यूनियनों तथा सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। खुले सत्र में आए वक्ताओं ने प्रगतिशील भोजनमाता संगठन को उनके सफल सम्मेलन की बधाई देते हुए कहा कि आज जरूरत है कि हम अपने संघर्षों को साझा बनाते हुए एकमात्र लक्ष्य मानव मुक्ति की ओर बढ़ना है। 
    
सम्मेलन का समापन हरिद्वार शहर में जुलूस के साथ किया जाना था जिसे निकाय चुनाव का हवाला देकर प्रशासन ने रोक दिया। इस पर विरोध जताते हुए भोजनमाताओं ने शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। 
        -हरिद्वार संवाददाता

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता