हिन्दू फासीवादी ये ना करें तो और क्या करें

/hindu-phaseevaadi-ye-naa-karein-to-aur-kya-karein

कुछ लोग कहते हैं और कई सोचते हैं कि हिन्दू फासीवादियों को मंदिर-मस्जिद की नफरती राजनीति नहीं करनी चाहिए। जहां कहीं भी मस्जिद हैं, मदरसे हैं उनके नीचे हिन्दू मंदिर होने का दावा छोड़ देना चाहिए और इस आधार पर उन्माद पैदा करना बंद कर देना चाहिए। कुछ मध्यम वर्गीय लोग या कुछ उदार पूंजीवादी बुद्धिजीवी कुछ इसी तरह सोचते हैं। इसी तरह का शिगूफा बीच-बीच में संघ प्रमुख भागवत भी छोड़ देते हैं। मोहन भागवत के लिए सबका डी एन ए कभी-कभी एक ही हो जाता है।
    
इस सबसे इतर हिन्दू फासीवादी अपना तांडव जारी रखे हुए हैं। यह बढ़ता ही जा रहा है। भारत का पूंजीवादी संविधान एक बात कहता है और संघी बड़े इत्मीनान से और बढ़-चढ़ कर हिन्दू राष्ट्र का दावा करते हुए अपने हमले करते जा रहे हैं। संविधान कहता है हर किसी को अपनी धार्मिक उपासना पद्धति को अमल करने की स्वतंत्रता है और अल्पसंख्यक समुदाय को इस मामले में संरक्षण हासिल है। मगर संघी लंपट फासीवादी दस्ते मस्जिदों और चर्चों में घुसकर प्रार्थना या उपासना में खलल डालते हैं और तोड़-फोड़ करते हैं। 
    
अब प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाले हुए एक भगवाधारी योगी जो उत्तर प्रदेश में सत्ता सुख का आनंद ले रहा है कह रहा है कि किसी भी विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं बोलना चाहिए, हम जिस दिन मस्जिद बोलना बंद कर देंगे उस दिन लोग (मुस्लिम) वहां जाना बंद कर देंगे; वैसे भी ये इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है कि किसी की भी आस्था को ठेस पहुंचाकर वहां मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर दिया गया हो, ऐसी जगह पर इबादत खुदा को भी मंजूर नहीं होती। 
    
संघियों का यह अद्भुत कारनामा है पहले मस्जिदों के नीचे मंदिर होने के दावे करो फिर उसमें तोड़-फोड़ करने को कोशिश करो और शासन-प्रशासन का इस्तेमाल इस मामले में करो। मस्जिदों को लंपट मीडिया के दम पर विवादित स्थल में बदल दो और फिर दावे या आग्रह करो कि मुसलमानों को इन मस्जिदों को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। इसे फर्जी तथ्यों और दावों से ऐतिहासिक गलती बताकर दुराग्रह करो कि यह सब हिंदुओं को सौंपकर भूल सुधार करो। हिन्दू फासीवादियों के हिसाब से चूंकि मुस्लिम यह सब नहीं करते इसलिए जो कुछ भी हिंसा, तोड़-फोड़ वे (संघी लंपट) कर रहे हैं जायज है। 
     
एक तरफ योगी और संघी यह दावा करते हैं कि इस्लाम में इबादत के लिए ढांचे की जरूरत नहीं और दूसरी तरफ सड़कों पर या ट्रेन या अन्य सार्वजनिक जगहों पर नमाज होने पर लोगों पर डंडे चलाते हैं और संगीन फर्जी मुकदमे दर्ज करते हैं। मतलब साफ है कि अल्पसंख्यक खासकर मुसलमानों को किसी भी स्थिति में संघियों की राजनीति के लिए बलि का बकरा बनना ही है। मुख्यमंत्री योगी के हिसाब से मुसलमानों को विवादित ढांचे मामले पर कोर्ट नहीं जाना चाहिए, बल्कि चुपचाप इसे हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। 
    
आखिर योगी या हिन्दू फासीवादियों के हिसाब से वे कौन से हिन्दू हैं जिन्हें इस तरह मस्जिदों और मदरसों की जमीनें सौंपी जानी हैं? यही नहीं वक्फ बोर्ड के अधीन की जमीन पर जिनकी गिद्ध नजरें जमी हुई हैं। ये गिद्ध नजरें यहीं तक नहीं रुकी हैं बल्कि ये बस्तियों को अवैध अतिक्रमण घोषित करके ध्वस्तीकरण अभियान चलाने की मुहिम का भी हिस्सा बनती हैं। इन बस्तियों में हिन्दू-मुस्लिम सभी रहते हैं। इस तरह बस्तियों की जमीनों को भी हड़प लिया जाता है और लोगों को दर-दर शरणार्थियों की स्थिति में धकेल दिया जाता है। उजड़ने वालों में आम तौर पर ही मुसलमान और दलित वंचित हिन्दू होते हैं। 
    
शहरों में जमीन सीमित होने और अत्यधिक महंगी होने के चलते हिन्दू फासीवादी सरकार द्वारा इस तरह जमीनों को हड़प लेना ऊंचे स्तर का खेल है। इन जमीनों पर रसूखदार लोगों, उद्योगपतियों और भू माफियाओं की गिद्ध नजरें जमी हुई हैं। केवल उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो योगी सरकार को पूंजीपतियों के विकास के लिए लगभग 2 लाख एकड़ जमीन अलग-अलग इलाकों में चाहिए जिसके लिए लैंड बैंक परियोजना है। 
    
लैंड बैंक परियोजना का विचार पिछले 20-30 साल यानी नई आर्थिक नीतियों के बाद से ही चल रहा था। 2018 में नीति आयोग ने पूंजीपतियों के प्रोत्साहन के लिए इसका समर्थन किया। हालांकि भारत सरकार के पूर्व सचिव ई एस शर्मा ने लैंड बैंक प्रोजेक्ट की आलोचना करते हुए कहा कि यह फायदेमंद नहीं है क्योंकि कई राज्य सरकारें पहले ही राष्ट्र हित के लबादे में सीमांत श्रमिकों से उनकी जमीनें जबरदस्ती उन्हें बेदखल करके हासिल कर चुकी हैं। लैंड विवाद संबंधी तथ्यों को बताती लैंड कान्फ्लिक्ट वाच की रिपोर्ट के मुताबिक कुल 846 विवाद जमीन से जुड़े हैं जिसमें 10 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। 
    
पहले जमीन हड़पने का खेल राष्ट्र हित या जन हित का लबादा ओढ़ कर होता था। 2007-08 में यह मध्य भारत के आदिवासी इलाकों में जमीन हड़पने की चाहत के रूप में सामने आया इसी तरह कई एक्स्प्रेस वे में किसानों की जमीनों को हड़पने के रूप में। 2008 में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम और सिंगूर में बहुत बड़ा जन आंदोलन ही हुआ। मध्य भारत और देश भर में इस तरह जमीन हड़पे जाने के खिलाफ आंदोलन इतना सशक्त हुआ कि मनमोहन की यू पी ए सरकार को मजबूरन भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में बनाना पड़ा था। जिससे अब जमीनों की इस तरह अंध और बेलगाम लूट में थोड़ा मुश्किल खड़ी हो गई। पूंजीपति कांग्रेस के इस कानून के चलते भी नाराज हुए थे। 
    
हिन्दू फासीवादियों के सत्ता में आने के बाद, जमीनों की यह लूट-खसोट भी हिन्दू राष्ट्र के नाम पर चल रही है। पहले तो मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने की कोशिश की जब इसका व्यापक विरोध हुआ तो अपने कदम पीछे खींच लिए। इसे राज्यों के हवाले कर दिया। 2018 के नीति आयोग ने लैंड बैंक का खुला समर्थन किया और फिर भारत की महत्वाकांक्षी भूमि बैंक परियोजना की शुरुआत जुलाई 2020 से हो गई। केंद्रीय मंत्री वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इंडिया आइडियाज समिट जो अमेरिका-भारत व्यापार परिषद के तत्वावधान में आयोजित की गई थी, में इस योजना की घोषणा कर दी। इस परियोजना का उद्देश्य खुद पीयूष गोयल ने जो बताया वह था कि इसका मकसद निवेशकों के लिए भूमि की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करना है, जिससे देश में उद्योगों और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि भूमि बैंकों के निर्माण से विकास कार्यों में तेजी लाई जा सकेगी और निवेशकों के लिए एक स्पष्ट और पारदर्शी भूमि आवंटन प्रक्रिया स्थापित की जा सकेगी।
         
अपने आका देशी-विदेशी एकाधिकारी पूंजी के मालिकों की सेवा में हिंदू फासीवादी कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। राष्ट्र हित के नाम पर जमीन छीने जाने और जमीन से बेदखल किए जाने का जो सशक्त आंदोलन 2008 के दौर में चला था वह हिंदू राष्ट्र के नाम पर जमीनों से बेदखली और ध्वस्तीकरण के अभियान से फिलहाल बिखरा-बिखरा सा है और अलगाव में है।
    
हिंदू फासीवादी जमीनों समेत भांति-भांति की लूट-खसोट मचाने के लिए हर मस्जिद और मदरसे के नीचे मंदिर होने की बात ना करें तो और क्या करें। इसके दोहरे फायदे हैं एक तरफ आसानी से हर जमीन हथिया लेना दूसरा प्रतिरोध को अलगाव में धकेल देना। इसलिए मुसलमानों के धार्मिक स्थलों और उपासना पद्धति के खिलाफ नफरत फैलाते रहना उनकी नीति है और नियति भी है। इस तरह मुसलमानों को बलि का बकरा बनाकर बहुसंख्यक हिंदू मजदूर-मेहनतकश जनता को रेतने का काम संघी बहुत आसानी से फिलहाल कर ले जा रहे हैं। मगर इनकी यही नीति जमीन पर इन्हें बेनकाब भी कर रही है और मजदूर-मेहनतकश जनता को एकजुट होकर, हिंदू फासीवाद का प्रतिरोध करने की आवश्यकता दिन ब दिन ज्यादा महसूस होती जा रही है। यह प्रतिरोध फिलहाल कमजोर जरूर है मगर यह आगे जरूर बढ़ेगा, भविष्य इसी का है और हिंदू फासीवाद को ध्वस्त कर देगा। 

 

यह भी पढ़ें :-

1. राम प्राण प्रतिष्ठा के बाद ज्ञानव्यापी

2. ये भला कहां मानने वाले हैं..

Tags

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।