राजस्थान-छत्तीसगढ़-बिहार - स्वास्थ्यकर्मी संघर्षरत

राजस्थान/ 22 जुलाई को राजस्थान में 17 सरकारी मेडिकल कालेज के 700 अध्यापक सामूहिक छुट्टी पर चले गये। इनकी मांग वेतन भुगतान से सम्बन्धित है। 
    
दरअसल मामला यह है कि मेडिकल कालेज के इन अध्यापकों की नियुक्ति राजस्थान मेडिकल एजुकेशन सोसाइटी के द्वारा की गयी है। यह सोसाइटी राज्य की एक स्वायत्त संस्था है। सोसाइटी के सेवा नियम इन अध्यापकों पर लागू होते हैं। जबकि अध्यापकों की यह मांग है कि चूंकि वर्तमान नियमों में काफी असमानताएं हैं इसलिए सोसाइटी को वेतन के मामले में राजस्थान सिविल सर्विसेज (संशोधित पे) नियम अपनाने चाहिए। 
    
सरकार ने वर्तमान बजट में यह घोषणा भी कर दी कि राजस्थान मेडिकल एजुकेशन सोसाइटी में राजस्थान सिविल सर्विसेज (संसोधित पे) नियम 2017 लागू होंगे लेकिन यह उन्हीं पर लागू होगा जिनकी नियुक्ति 1 अगस्त 2024 के बाद होगी। मेडिकल कालेज के अध्यापक इसीलिए प्रदर्शन कर रहे हैं कि यह सभी पर लागू होना चाहिए।
    
24 जुलाई को राजस्थान के ही अलवर जिले में ठेके पर कार्यरत कर्मचारी समय पर वेतन का भुगतान न होने से हड़ताल पर चले गये। इन कर्मचारियों में जिला अस्पताल, शिशु अस्पताल और महिला अस्पताल के ठेका संविदा कर्मचारी नर्सिंग आफिसर, कम्प्यूटर आपरेटर, वार्ड बॉय, सुरक्षा गार्ड, लैब टेक्नीशियन, सफाई कर्मचारी, फार्मासिस्ट, फायरमैन, इलेक्ट्रिशियन, ड्राइवर, माली, प्लम्बर, दर्जी हैं।
    
कर्मचारियों का कहना है कि समय पर वेतन न मिलने से उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। फिलहाल ये कर्मचारी जून माह का वेतन न मिलने से नाराज हैं।

छत्तीसगढ़/ 22-23 जुलाई को छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों ने 2 दिन की हड़ताल की। इन कर्मियों की संख्या 16 हजार है जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामूहिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पतालों में काम करते हैं।
    
हड़ताल कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि 2023 में तत्कालीन सरकार ने प्रदेश के 37 हजार संविदाकर्मियों जो विभिन्न विभागों में काम करते हैं, के लिए 27 प्रतिशत वेतन वृद्धि की थी और इसके लिए 350 करोड़ का बजट भी रखा गया था लेकिन 1 साल बीत जाने के बावजूद उन्हें इस वेतन वृद्धि का कोई लाभ नहीं मिला है। वेतन वृद्धि के अलावा उनकी मांग - वेतन विसंगति को दूर करना, अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति और मुआवजा राशि को बढ़ाना, अवकाश नियमों में बदलाव, नियमितीकरण, तबादला व्यवस्था में सुधार, सी आर आर व्यवस्था में सुधार, ग्रेड पे का निर्धारण आदि प्रमुख हैं।
    
हड़ताली कर्मचारियों ने जब अपनी मांगों को लेकर विधानसभा कूच करने की कोशिश की तो उन्हें नवा रायपुर के तुता जगह पर रोक दिया गया। कर्मचारियों का कहना है कि चूंकि अभी राज्य में बीमारियां फैल रही हैं इसलिए जनता की परेशानियों को देखते हुए वे केवल 2 दिन की हड़ताल कर रहे हैं। अगर सरकार 2 दिन की हड़ताल के बाद भी नहीं चेती तो 1 माह बाद अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जायेंगे।

बिहार/ बिहार के लखीसराय जिला अस्पताल के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कर्मचारियों ने अपनी सात सूत्रीय मांग को लेकर 22 जुलाई को कार्य बहिष्कार किया। इनकी प्रमुख मांग कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी और डिज़िटल अटेंडेंस का विरोध है। 
    
हड़ताली कर्मचारी बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के बैनर तले कार्य बहिष्कार कर रहे हैं। इन कर्मचारियों का कहना है कि नियमित कर्मचारियों और मोटी-मोटी तनख्वाहें लेने वाले कर्मचारियों को डिजिटल अटेंडेन्स से अलग रखा गया है। यह नियम केवल संविदा कर्मचारियों के लिए है जो कि भेदभावपूर्ण है। 
    
कर्मचारियों का कहना कि हमारी अन्य मांगों में समान काम का समान वेतन, स्वास्थ्य विभाग में पद सृजित कर उनको नियमित करना, अप्रैल 2024 से लंबित वेतन का भुगतान करने, कार्यस्थल पर शौचालय, स्वच्छ पेयजल व बिजली जैसी बुनियादी सुविधा बहाल करना आदि हैं।
    
26 जुलाई को बिहार चिकित्सा एवं जनस्वास्थ्य कर्मचारी संघ के आह्वान पर पीएएचसी में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कार्यरत कर्मी अपनी दस सूत्रीय मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गये हैं। इनकी मुख्य मांग समान काम का समान वेतन की है।
    
स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारियों की हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों में संविदा क्षेत्र के कर्मचारियों की बढ़ती संख्या इस बात की ओर संकेत कर रही है कि सरकार को न तो अपने ही देश या राज्य की जनता के स्वास्थ्य की कोई परवाह नहीं है और न ही स्वास्थ्य क्षेत्र में लगे इन कर्मचारियों की।

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को