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धर्म का धंधा

आज से करीब ढाई हजार साल पहले जब प्लेटो यानी अफलातून ने अपनी ‘गणराज्य’ नामक किताब में आदर्श राज्य व्यवस्था का खाका खींचा तो साथ ही इसके स्थायित्व की भी व्याख्या की। उसने क

‘हिन्दू राष्ट्र’ की ओर एक और कदम

संघ परिवार की ओर से गाहे-बगाहे यह बात होती रही है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के सौ साल होने तक भारत एक ‘हिन्दू राष्ट्र’ बन जायेगा। अब यह समय बहुत नजदीक आ गया

धारा-370 फैसला : जी हुजूर, सिर-माथे पर !

संविधान की धारा-370 को निष्प्रभावी करने के केन्द्र सरकार के 2019 के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये हालिया फैसले ने वर्तमान मुख्य न्यायाधीश से उम्मीद लगाये उदा

पूंजीवादी जनतंत्र में ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनाव

उदारीकरण-वैश्वीकरण के दौर में पूंजीपति वर्ग ने ‘इतिहास के अंत’ में ‘उदार पूंजीवादी जनतंत्र की अंतिम विजय’ के बाद काफी प्रगति की है। उसने अब पूंजीवादी जनतंत्र को महज ‘स्वत

यहूदी राज्य और जनतंत्र

पश्चिमी साम्राज्यवादी, खासकर अमरीकी साम्राज्यवादी यह कहते नहीं थकते कि पश्चिम एशिया में इजरायल अकेला जनतंत्र है। अभी हालिया संघर्ष में अमरीकी राष्ट्रपति ने इजरायल के प्रत

इस्लाम विरोध : एक साम्राज्यवादी कुचक्र

इजरायल फिलिस्तीन के बीच वर्तमान संघर्ष के दौरान एक बार फिर इस्लाम विरोध चरम पर है। भारत के हिन्दू फासीवादियों से लेकर पश्चिमी साम्राज्यवादी शासक सभी इस्लाम पर निशाना साध रहे हैं। तरह-तरह से बताया ज

हिन्दू फासीवादी और जियनवादी

इजरायल के जियनवादी शासकों द्वारा गाजापट्टी पर ताजा बर्बर हमले के दौरान भारत के हिन्दू फासीवादियों की प्रतिक्रिया काबिले गौर है। भाजपा के आई टी सेल से लेकर पूंजीवादी प्रचा

एम एस स्वामीनाथन और हरित क्रांति

मनकोम्बु सम्बासिवान स्वामीनाथन अथवा एम एस स्वामीनाथन का बीते 28 सितम्बर को निधन हो गया। वे 98 साल के थे। वे भारत में तथाकथित हरित क्रांति के जनक माने जाते थे। पिछले कुछ स

मजहब, धर्म और रिलिजियन

आजकल सनातन धर्म की काफी चर्चा है। डी एम के नेता उदयनिधि के सनातन धर्म के उन्मूलन की मांग के बाद हिन्दू फासीवादी इसकी रक्षा में उठ खड़े हुए। उन्होंने सनातन धर्म को हिन्दू ध

इतिहास में एक छोटा सा सबक

देश में आजकल हिन्दू फासीवादियों की मेहरबानी से देश के इतिहास पर काफी बात हो रही है। कभी देश के नाम पर बात तो कभी देश की गुलामी की बात। आम तौर पर इतिहास की जरा भी कद्र न करने वाले लोग भी इस मामले मे

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।