यह जीत इतना इतराने वाली नहीं है !

पूर्वोत्तर के 3 राज्यों त्रिपुरा, नागालैण्ड, मेघालय के चुनावी नतीजे आ चुके हैं। त्रिपुरा में जहां भाजपा अकेले दम पर बहुमत हासिल कर चुकी है वहीं नागालैण्ड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ उसका गठबंधन बहुमत पा चुका है। मेघालय में भाजपा महज 2 सीट हासिल करने के बावजूद पुरानी सरकार वाला गठबंधन नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ कायम कर फिर से सत्ता में वापसी कर चुकी है। हालांकि अन्य राज्यों में कुछ सीटों के उपचुनाव में भाजपा को कहीं हार तो कहीं जीत मिली। कुल मिलाकर नतीजे इतने इतराने वाले नहीं रहे जितना भाजपाई इतरा रहे हैं। मत प्रतिशत देखें तो पाते हैं कि आधे से अधिक आबादी ने भाजपा को मत नहीं दिया।

इस तरह तीनों राज्यों की कुल 179 सीटों के चुनाव में महज 46 सीटें जीत कर भी भाजपा तीनों राज्यों की सत्ता में बनी रहेगी। इस जीत से उत्साहित प्रधानमंत्री मोदी ने दावा कर दिया कि विपक्षी व कट्टरपंथी कह रहे थे कि ‘मर जा मोदी’ जबकि जनता कह रही है ‘मत जा मोदी’। इसी तरह मोदी ने जीत का श्रेय भाजपा सरकार के कामों व भाजपा की कार्यशैली को दे दिया। इस जीत पर भाजपाई नेता इस तरह घमण्ड में डूबे थे मानो कोई उन्हें हरा ही नहीं सकता। वे यह बात भूल जाते गये लगता है कि उनके फासीवादी हथकण्डों की शिकार हुई जनता एक दिन उनका असली जनविरोधी चेहरा जरूर पहचानेगी और फिर उनका हिसाब जरूर चुकता करेगी। हिटलर के अनुयायी लगता है हिटलर का हश्र भूल चुके हैं पर उन्हें पड़ोसी श्रीलंका में सिंहली राष्ट्रपति का जनता द्वारा किया गया हश्र तो याद ही होना चाहिए था।

इन चुनावों में भाजपा को मात देने के लिए त्रिपुरा में माकपा व कांग्रेस का गठबंधन बनाना काम नहीं आया। कहना गलत नहीं होगा कि बीते 5 वर्षों के भाजपाई शासन के बावजूद त्रिपुरा की जनता पर हिन्दू फासीवादी हथकंडों का असर बना हुआ है। इस चुनाव में भाजपा की जीत ने एक बार फिर साबित किया कि महज चुनावी जोड़-तोड़ के जरिये फासीवाद को परास्त नहीं किया जा सकता। क्रांति की राह छोड़ चुकी माकपा फासीवाद को हराने के नाम पर कांग्रेस से गठजोड़ कर अपने और पतन की दिशा में कदम बढ़ा रही है। आज फासीवादी ताकतों को सड़कों से लेकर संसद तक हर जगह चुनौती देने की जरूरत है। ऐसा क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के नेतृत्व में कायम होने वाले मोर्चे के जरिये ही संभव है। कांग्रेस सरीखी पार्टी से फासीवाद विरोध की उम्मीद पालना बचकानापन है।

इन चुनावों में भाजपाई जीत के पीछे एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग और उसके पूंजीवादी मीडिया के हाथ के साथ-साथ सरकारी मशीनरी के मनमाफिक इस्तेमाल की भी भूमिका रही है। आज जनता भाजपा से खुश होकर उसे नहीं जिता रही है जैसा कि मोदी व संघी समझते हैं। बल्कि आज जनता भाजपा के पीछे इसलिए खड़ी होने को मजबूर है क्योंकि पूंजीवादी मीडिया ने अपने प्रचार से विपक्षी दलों को इतना बौना कर दिया है कि जनता उन्हें भाजपा से बड़ी बुराई मानने लगती है। इस काम में विपक्षी ताकतों का अवसरवाद व भ्रष्टाचार प्रकारान्तर से पूंजीवादी मीडिया व संघ-भाजपा की मदद ही कर रहा है।

ऐसे में जरूरी है कि संघ-भाजपा की चुनावी जीत से सुधारवादियों की तरह मातम मनाने के बजाय फासीवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए मजदूर-मेहनतकश जनता को तैयार किया जाए। जाहिर है यह संघर्ष अपने साथ ही पूंजीवाद विरोधी संघर्ष से भी जुड़ा होगा जिसके निशाने पर एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग होगा। जरूरत है कि क्रांतिकारी विचारों का जन-जन तक प्रसार करते हुए फासीवादी ताकतों को हर स्तर पर चुनौती दी जाए। इतिहास की सच्ची निर्माता जनता होती है। इस विश्वास से जिस दिन भारतीय जनमानस लैस हो जायेगा उस दिन फासीवादियों को धूल चटा जनता अपना भाग्य अपने हाथ में ले लेने आगे आ जायेगी। तब वास्तव में संघी नेताओं का हश्र उनके आदर्श हिटलर सरीखा करने में जनता देर नहीं लगायेगी।

आलेख

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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