यह दरिंदगी कब खत्म होगी

/yah-darindagi-kab-khatm-hogi

पुणे बलात्कार कांड

महाराष्ट्र के पुणे के स्वारगेट बस अड्डे पर बस में 26 वर्षीय युवती से बलात्कार की घटना ने एक बार फिर निर्भया कांड की याद दिला दी। पुलिस घटना के तीन दिन बाद आरोपी को पकड़ने का दावा कर रही है। 
    
निर्भया कांड के वक्त बलात्कारियों को कड़ी सजा देने की मांग उठी थी। इसके बाद कानून को कठोर भी बनाया गया। पर बलात्कारों की संख्या में कोई कमी नहीं आयी। अभी बंगाल की डाक्टर से बलात्कार-हत्या पर जनाक्रोश शांत भी नहीं हुआ था कि पुणे की घटना ने लोगों को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया। 
    
वैसे देश के देहातों-कस्बों में हर रोज बलात्कार की ढेरों घटनायें घटती रहती हैं। ये घटनायें अखबारों-टीवी चैनलों की सुर्खियां नहीं बनती। केवल कुछ ही घटनायें इनके द्वारा उछाली जाती है। इन घटनाओं पर बढ़ता जन हस्तक्षेप महिला हिंसा के प्रति समाज में बढ़ रही जागरुकता को दिखाता है। पर जनता के बढ़ते सरोकार के बावजूद बलात्कार-महिला हिंसा की बढ़ती घटनायें समाज में बढ़ती पतनशीलता को भी दिखाती हैं। 
    
बलात्कार-महिला हिंसा के लिए महिलाओं को, उनकी वेश भूषा को दोषी ठहराने वाली पुरातनपंथी-सामंती सोच भी समाज में कम नहीं है। आये दिन नेताओं से लेकर नामी लोग ऐसे महिला विरोधी बयान देते रहते हैं। पुणे बलात्कार कांड पर भी महाराष्ट्र के एक मंत्री ने महिला के न चिल्लाने पर उसी को दोषी ठहराने का काम किया। 
    
समाज में बढ़ रही महिला हिंसा की घटनाओं पर फासीवादी-सामंती तत्वों की प्रतिक्रिया महिलाओं को ही आरोपित कर उन्हें घर में कैद करने, उनके पहनावे, पढ़ने-लिखने, रोजगार पर प्रतिबंध थोपने की होती है। ये ताकतें महिलाओं को घर की चहारदीवारी में कैद कर उनके प्रतिहिंसा थामने का ख्वाब दिखाती हैं। उनका यह ख्वाब तब बेपर्दा हो जाता है जब पता चलता है कि सर्वाधिक महिला हिंसा की घटनायें घर के भीतर या पास-पड़ोस में ही होती हैं। 
    
पूंजीवादी व्यवस्था में जहां एक ओर महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई रोजगार के लिए घर से बाहर निकलने की मजबूरी पैदा की जाती है; इस मजबूरी के परिणामस्वरूप ही महिलायें घर से बाहर के उत्पादन, सार्वजनिक जीवन में अपना हस्तक्षेप बढ़ा, खुद के पैरों पर खड़ी हो अपनी आजादी की ओर डग बढ़ाती हैं; वहीं दूसरी ओर पूंजीवादी बाजार महिला शरीर को एक उपभोग वस्तु के रूप में पुरुषों के सम्मुख परोस उन्हें महिलाओं के प्रति हिंसक-हमलावर बनाता जाता है। फिल्में-गीत-संगीत-पॉर्न साइटें सभी महिलाओं के शरीर को उपभोग वस्तु के रूप में पेश करती हैं। सभी जगह व्यक्तिवाद व ‘खाओ-पियो ऐश करो’ की संस्कृति का परिणाम यह होता है कि व्यवस्था पुरुषों को एक समूह के तौर पर पतित सोच में धकेल हिंसक-बलात्कारी बनाने में जुटी रहती है। 
    
ऐसे में स्पष्ट है कि कुछ कड़े कानूनों, फांसी पर लटकाने की मांग आदि से महिला अपराध नहीं रुकने वाले। पूंजीवादी व्यवस्था में इस तरह के अपराधों पर लगाम नहीं लग सकती। आज महिला आंदोलन के लिए जरूरी है कि वो एक ओर पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष को तेज करे; वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर में फिर से धकेलने की पुरुष प्रधान सामंती सोच का भी मुकाबला करे।  

 

यह भी पढ़ें :-

1. यौन हिंसा और उसके खिलाफ फूटा आक्रोश

2. यौन हिंसा और ‘‘आठ मार्च’’

आलेख

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

/gazapatti-mein-phauri-yudha-viraam-aur-philistin-ki-ajaadi-kaa-sawal

ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

/apane-desh-ko-phir-mahan-banaao

आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।