न्यूनतम वेतन देने को भी मालिक/प्रबंधन तैयार नहीं

फरीदाबाद/ हरियाणा सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत न्यूनतम मजदूरी की दरों को निरीक्षित किया था। लेकिन अधिकांश फैक्टरियों के मालिकान इस न्यूनतम मजदूरी को भी देने को तैयार नहीं हैं। कुछ फैक्टरियों ने तो घोषणा होते ही मजदूरों की छंटनी शुरू कर दी। जब से न्यूनतम वेतन में वृद्धि की घोषणा हुई है, तभी से मजदूरों को आशंका थी कि ये न्यूनतम वेतन लागू होगा भी कि नहीं। जैसा कि आशंका थी वैसा ही हुआ कि अधिकांश फैक्टरियां न्यूनतम वेतन नहीं दे रही हैं।<br />
   कुछ एक फैक्टरी में, जहां न्यूनतम वेतन मिल रहा है, वहां सभी को अकुशल ग्रेड ही दिया जा रहा है। तालिका के अनुसार इसमें छः प्रवर्ग हैं। अकुशल-7600, अर्धकुशल क-7980, अर्धकुशल ख-8379, कुशल क-8797.95, कुशल ख-9237.85, उच्च कुशल-9699.74। इसके साथ साथ यह नोट संलग्न है कि -<br />
‘‘पांच वर्ष का अनुभव रखने वाले अकुशल कर्मचारी अर्द्ध कुशल प्रवर्ग क में माने जायेंगे, अर्द्धकुशल प्रवर्ग क में तीन वर्ष के अनुभव पश्चात कर्मचारी अर्द्ध कुशल प्रवर्ग ख में माने जायेंगे, कुशल प्रवर्ग क में तीन वर्ष के अनुभव पश्चात कर्मचारी कुशल प्रवर्ग ख में माने जायेंगे’’। <br />
लेकिन तीन वर्ष तो क्या दस-बीस साल के अनुभव के पश्चात भी मजदूरों को न्यूनतम वेतन भी मिलना मुश्किल हो रहा है। नया ग्रेेड आने से पहले जिन मजदूरों को न्यूनतम वेतन से ज्यादा मिल रहा था, उनको भी न्यूनतम वेतन ही दिया जा रहा है। इनको न्यूनतम वेतन से ज्यादा इसलिए मिल रहा था कि वे आपरेटर थे। नया ग्रेड आने से आपरेटरों को भी या 10-20 वर्ष के अनुभव वाले मजदूरों को भी हेल्पर ग्रेड दिया जा रहा है। <br />
महिला मजदूरों की हालत तो और भी बुरी है। कुछ फैक्टरियों को छोड़ दिया जाये तो उन्हें तो अभी तक पुराने ग्रेड के अनुसार न्यूनतम मजदूरी मिलना मुश्किल है। श्रम कानूनों की हालत यह कि मालिकों को यह अधिकार दे दिया गया है कि खुद श्रम विभाग को लिखकर दे दें कि उनकी फैक्टरी या संस्थान में श्रम कानून लागू हैं तो श्रम विभाग मान लेगा कि श्रम कानून लागू हैं। श्रम कानून तो एकदम न के बराबर हैं। न तो मालिकों/प्रबंधकों में श्रम कानूनों का कोई भय है। जब से भाजपा की मोदी सरकार आयी है तब से श्रम कानूनों को खत्म करने या निष्प्रभावी बनाने पर उतारू है। आज की महंगाई की हालत में 7600 रुपये में क्या होना है। मजदूरों को न्यूनतम वेतन के लिए संगठित होकर संघर्ष करने की जरूरत है। इसके साथ ही न्यूनतम वेतन बढ़ाने के लिए भी संघर्ष करना होगा और साथ ही ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ भी।  <strong> फरीदाबाद संवाददाता</strong>

आलेख

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

/samooche-pashcim-asia-men-yudha-phailaane-kaa-prayaas

इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी। 

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।