सीरिया को लेकर वैश्विक तनातनी

    एक माह के भीतर दूसरी बार अमेरिका ने रूस को घेरने की कोशिश की। अमेरिका ने आरोप लगाया है कि सीरिया की सरकार ने विद्रोहियों के कब्जे वाले दाउमा में रासायनिक हमला किया है जिसमें ढेरों बच्चों समेत कई लोग मारे गये हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ने सीरियाई राष्ट्राध्यक्ष बशर अल असद को जानवर कहा और रूस द्वारा उसे बचाए जाने के लिए रूस को धिक्कारा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस कार्यवाही के लिए सीरियाई सरकार को दंडित करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। इससे अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ गया है। एक माह पहले ही इंग्लैण्ड में एक रूसी डबल एजेंट जासूस स्क्रीपल पर नर्व गैस के हमले के मामले में रूस और पश्चिमी साम्राज्यवादियांे के बीच कूटनीतिक स्तर पर काफी तनातनी हुई। दोनों तरफ से एक-दूसरे के राजनयिकों को देश निकाला दिया गया था।<br />
    अमेरिका द्वारा लगाये जा रहे रासायनिक हमले के आरोप का सीरिया की सरकार ने खंडन किया है। रूस का भी कहना है कि उसके द्वारा की गयी जांच में रासायनिक हमले के कोई सबूत नहीं मिले। रूस ने पेशकश की है कि अंतर्राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सम्बन्धित इलाके में जाकर जांच करने की व्यवस्था रूस करवा सकता है। लेकिन इस प्रस्ताव को अमेरिका समेत पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने ठुकरा दिया है। अमेरिका, इंग्लैण्ड और फ्रांस सीरिया पर हमला करने को लेकर एकमत हैं। सीरिया फ्रांस का पुराना उपनिवेश रह चुका है। आज जब अमेरिका सीरिया के भीतर अपनी सैन्य उपस्थिति घटाना चाहता है तो खाली हो रहे स्थान को भरने का फ्रांस मंसूबा पाल रहा है। इसके द्वारा वह देश के भीतर बढ़ते जनसंघर्षों से भी राहत की उम्मीद पालता है। <br />
    पश्चिमी साम्राज्यवादियों के संभावित हमले के खिलाफ न केवल सीरिया और रूस ने चेतावनी दी है, बल्कि पश्चिमी साम्राज्यवादियों के नाटो गठबंधन का हिस्सा तुर्की भी सीरिया के भीतर रूस के साथ तालमेल बढ़ा रहा है। तुर्की का रूस के साथ रिश्ता बहुत निचले स्तर पर पहुंच गया था जब तुर्की ने 2015 में रूस के एक युद्धक विमान को मार गिराया था। लेकिन पिछले दो साल में रिश्ते लगातार बेहतर होते गये हैं जो कि इसके पश्चिमी सहयोगियों के लिए परेशानी भी पैदा कर रहा है। जासूस पर हुए नर्व गैस हमले के मामले में तुर्की चुनिंदा नाटो देशों में था जिसने किसी रूसी राजनयिकों को देश से नहीं निकाला। तुर्की ने रूस से मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली खरीदने का समझौता किया है और रूस द्वारा तुर्की के पहले परमाणु ऊर्जा संयत्र को निर्मित करने की योजना है। तुर्की ने ईरान से भी रिश्ते बढ़ाए हैं। सीरिया में कथित रासायनिक हमले से तीन दिन पहले ईरान, रूस और तुर्की के बीच शीर्ष स्तर की वार्ता हुयी। तीनों देशों के राष्ट्रपति तुर्की की राजधानी अंकारा में मिले और तुर्की के पुनर्निर्माण और मदद के लिए एक-दूसरे को मदद करने का निर्णय लिया। इन्होंने तुर्की की ‘क्षेत्रीय अखंडता’ की रक्षा करने का संकल्प व्यक्त किया।<br />
    रूसी साम्राज्यवादी भी इस इलाके में अपने स्वार्थों के मद्देनजर टिके हैं। रूस सीरिया में अपने सैन्य अड्डे को खोना नहीं चाहता है। ईरान, तुर्की को अपने करीब लाकर पश्चिमी साम्राज्यवादियों की चुनौती से निपटना चाहता है। रूसी साम्राज्यवादियों के असद सरकार के पक्ष में खड़े हो जाने के चलते ही पश्चिमी साम्राज्यवादी सीरिया पर हमले के मंसूबे को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। वे सीरिया-रूस को बदनाम करने के नित नये झूठ फैलाते रहे हैं।  <br />
    तुर्की, सीरिया के भीतर कुर्द लड़ाकों के साथ युद्धरत है और अमेरिका द्वारा इनको दिये जाने वाली मदद से खफा है। तुर्की अपने देश के भीतर के कुर्द अलगाववाद से सीरिया के कुर्द विद्रोहियों को जुड़ा हुआ मानता है। सीरिया पर पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा हमले की तैयारियों के बीच तुर्की के समाचार पत्रों में सीरिया के भीतर के फ्रांसीसी सैन्य अड्डों के नक्शे छपे। माना जा रहा है कि यह तुर्की समर्थित विद्रोहियों-सीरियाई सरकार को फ्रांस के सैन्य अड्डों पर हमले का आह्वान है। <br />
    सीरिया सरकार पर पहले भी अमेरिका द्वारा रासायनिक हमले का आरोप लगाया गया है। हर बार बाद में पता चला कि आरोप झूठे थे। लेकिन, अमेरिकी साम्राज्यवादियों को इससे जरा भी शर्म नहीं आती। उनकी बेशर्मी जगजाहिर है। इराक पर इतनी भयंकर तबाही मचाने के लिए जिन जनसंहारक हथियारों का बहाना बनाया गया, उनका झूठ जगजाहिर है। इस बार भी झूठे बहाने के आधार पर पश्चिमी साम्राज्यवादी सीरिया में पहले से चल रहे खून खराबे को तेज करें, इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन, यह तय है कि ऐसा होने पर इनके पाप का घड़ा फूटने के करीब ही पहुंचेगा। 

आलेख

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सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

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यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।