यूनिफाइड पेंशन स्कीम : कर्मचारियों को भरमाने की कोशिश

यूनिफाइड पेंशन स्कीम बनाम ओल्ड पेंशन स्कीम

नये-नये नामों से योजनायें पेश कर जनता को भरमाने और अपना उल्लू सीधा करने में माहिर नरेंद्र मोदी द्वारा अब यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) नाम से एक नई योजना लाकर ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की पुनर्बहाली की मांग कर रहे सरकारी कर्मचारियों को भरमाने की कोशिश की गई है। 

दरअसल आज से 20 साल पहले 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उदारीकरण-निजीकरण की खुले पूंजीवाद की नीतियों के तहत सरकारी कर्मचारियों की उस समय जारी पेंशन स्कीम, जो कि उन्हें सेवानिवृति के बाद सुरक्षित भविष्य प्रदान करती थी, को ख़त्म कर न्यू पेंशन स्कीम (NPS) लागू की थी, जो कि सरकारी तथा निजी दोनों क्षेत्रों के लिये है। तभी से 2004 अथवा उसके बाद सरकारी सेवा में आने वाले कर्मचारियों को न्यू पेंशन स्कीम (NPS) के तहत पेंशन मिल रही है, और जो कर्मचारी 2004 से पहले से सरकारी सेवा में हैं केवल उन्हें ही ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) के तहत पेंशन मिल रही है। पुरानी पेंशन स्कीम के तहत पेंशन पाने वाले कर्मचारियों की संख्या उनकी सेवानिवृति के साथ स्वाभाविक ही साल दर साल कम होती जा रही है। इस समय केंद्र सरकार के 32 लाख कर्मचारियों में से पुरानी पेंशन स्कीम के तहत पेंशन पाने वाले कर्मचारियों की संख्या मात्र 9 लाख है जबकि 23 लाख कर्मचारियों को नई पेंशन स्कीम के तहत पेंशन मिल रही है। यही स्थिति राज्यों के स्तर पर भी है।

पुरानी अथवा ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत न्यूनतम 20 साल की सरकारी सेवा पूरी कर चुके सरकारी कर्मचारी को सेवानिवृति के समय उसके अंतिम वेतन के 50 फीसदी के बराबर पेंशन मिलनी शुरु हो जाती है। मतलब, सेवानिवृति के समय कर्मचारी का वेतन यदि 80 हजार रु प्रतिमाह है तो उसे 40 हजार रु प्रतिमाह पेंशन मिलनी शुरु हो जाती है, जिस पर महंगाई भत्ता भी दे होता है। इस पुरानी पेंशन स्कीम के अनुसार पेंशन कर्मचारी का विलंबित वेतन है और जिसका वहन करना सरकार की जिम्मेदारी है। 

लेकिन नई पेंशन स्कीम में सरकार द्वारा कर्मचारियों के प्रति अपनी इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया गया। इसके तहत खुद कर्मचारी के वेतन से प्रतिमाह 10 प्रतिशत की राशि काट ली जाती है और 10 प्रतिशत, जिसे कि बाद के समय में 14 प्रतिशत कर दिया गया, का योगदान सरकार करती है। इससे जो फंड बनता है उसका 60 प्रतिशत हिस्सा सेवानिवृति के समय कर्मचारी को मिल जाता है और बाकी बचे 40 प्रतिशत से उन्हें पेंशन दी जाती है। NPS के तहत मिलने वाली यह पेंशन इतनी कम होती है कि उसमें वृद्धावस्था में सम्मानजनक जीवन जीना तो दूर एक व्यक्ति का खर्च चलना भी संभव नहीं होता है। दूसरे, इस पेंशन फंड को भी सरकार शेयर बाजार में निवेशित करती है, जिस कारण बाजार के अनुरुप पेंशन भी कुछ ऊपर-नीचे होती रहती है और उसके डूबने का भी खतरा बना रहता है।

इन्हीं वजहों से एकदम शुरुआत अर्थात 2004 से ही इस नई पेंशन स्कीम का विरोध हो रहा है और कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम की पुनर्बहाली की मांग कर रहे हैं। कर्मचारियों के भारी विरोध के मद्देनज़र 2022 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब तथा 2023 में हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल भी कर दिया।

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुमत से दूर होकर 240 सीटों पर सिमट चुके और गठबंधन की सरकार चलाने को मजबूर नरेंद्र मोदी पर भी पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने का दबाव है। दूसरे, शीघ्र ही हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं जिसमें विपक्षी दलों ने पुरानी पेंशन स्कीम की पुनर्बहाली को मुद्दा बनाया हुआ है। ऐसे में नरेंद्र मोदी ने एक नया दांव चलते हुये यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS)  लागू कर दी। यह पेंशन स्कीम सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिये है और कर्मचारी दोनों में से किसी एक को चुन सकते हैं।

यूनिफाइड पेंशन स्कीम के तहत भी कर्मचारी के वेतन से प्रतिमाह 10 प्रतिशत की कटौती की जायेगी जबकि 18.5 प्रतिशत का योगदान सरकार करेगी। इस तरह जो फंड बनेगा कर्मचारी को उसमें से सेवानिवृति के समय के साल के औसत वेतन के 50 फीसदी के बराबर पेंशन मिलनी शुरु हो जायेगी। कर्मचारी की मृत्यु होने पर पेंशन का 60 प्रतिशत फैमिली पेंशन के रुप में जारी रहेगा। यहां गौरतलब है कि  NPS के तहत जमा फंड का 60 प्रतिशत कर्मचारी को सेवानिवृति के समय एकमुश्त मिल जाता है लेकिन UPS के तहत कर्मचारी को ऐसी  कोई एकमुश्त रकम नहीं मिलेगी।

दूसरे, UPS के तहत पूरी पेंशन केवल उन्हीं कर्मचारियों को मिलेगी जिनकी सेवानिवृति के समय तक 25 वर्ष की नौकरी पूरी हो चुकी हो। अब ऐसे कर्मचारी जिनकी सरकारी नौकरी 35-40 साल की उम्र में लगी हो तो वे तो 25 साल की नौकरी पूरी होने से पहले ही सेवानिवृत हो चुके होंगे! और आज सरकारी नौकरी पाने वालों में ऐसे 'खुशकिस्मत' बड़ी संख्या में हैं, उनका क्या होगा ? उनके लिये UPS में प्रावधान किया गया है कि उन्हें उनकी नौकरी के सालों के अनुरुप पेंशन मिलेगी, जैसे 10 साल की नौकरी पर प्रतिमाह 10 हजार रुपये, जो कि न्यूनतम पेंशन भी होगी।

उपरोक्त कारणों से ही कर्मचारी UPS की घोषणा के साथ ही इसका विरोध कर रहे हैं और पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग कर रहे हैं। होना तो यह चाहिये कि न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिये अपितु निजी क्षेत्र के मजदूरों और कर्मचारियों के लिये भी पुरानी पेंशन स्कीम को लागू किया जाये, लेकिन इजारेदार पूंजीपतियों के हित में उदारीकरण-निजीकरण की जन विरोधी नीतियों को तेजी से आगे बढ़ा रहे नरेंद्र मोदी सरकारी कर्मचारियों के लिये भी पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने को तैयार नहीं हैं।

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता