कौन कौवा, कौन गरुड़

/kon-kauva-kon-garud

‘कोई कौवा अगर मंदिर के शिखर पर बैठ जाए तो क्या वह गरुड बन जायेगा’ का जवाब कोई भी देगा। नहीं! यह सवाल इससे आगे जायेगा कि कौवा कौन है और गरूड़ कौन है। और कौन यह तय करेगा कि कौन कौवा, कौन गरुड़ है। 
    
अगर कोई कौवा मंदिर के शिखर पर बैठकर अपने को गरुड़ घोषित कर दे तो बाकी कौवे ‘‘कांव-कांव’’ करेंगे ही। वे भी सोचेंगे ही कि जब ये कौवा जो कल तक उनके साथ मल में से दाने चुन-चुन कर खाता था अब अपने को गरुड़ घोषित कर रहा है तो वे भी मंदिर के शिखर पर बैठकर अपने को गरूड़ घोषित कर सकते हैं। ये तो सरासर नाइंसाफी होगी कि एक कौवा जिसने अपने को गरुड़ घोषित कर दिया है बाकी कौवों को ऐसा करने से रोके।
    
हुआ यूं कि चंद रोज पहले सर संघ चालक मोहन भागवत ने पुणे में संजीवनी व्याख्यान माला में कौवा-गरुड़ का सवाल उठाया था। उन्होंने उन लोगों की आलोचना की जो मंदिर-मस्जिद के विवादों को उठाकर हिन्दू नेता बनना चाहते हैं। उन्होंने चेतावनी दी थी कि कौवे गरुड़ बनने की कोशिश न करें। जाहिर है वे अपने आपको गरुड़ ही बता रहे होंगे। फिर इसी सिलसिले में उन्होंने नेहरू-कांग्रेस टाइप ‘अनेकता में एकता’ की बात करते हुए कहा कि ‘हम विविधता में एकता की बात करते रहे हैं, अब हमें विविधता को ही एकता मानना होगा’। यह बात कुछ वैसे ही है कि ‘‘सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज करने’’। या फिर कोई जन्म भर व्याभिचार में लिप्त व्यक्ति मरते वक्त व्याभिचार के खिलाफ नैतिक उपदेश देने लगे।
    
मोहन भागवत के बयान के बाद एक के बाद एक कौवे शोर मचाने लगे और उन्होंने मोहन भागवत से अधिकार-प्राधिकार छीन लिया कि वे नहीं तय कर सकते हैं कि कौन कौवा है और कौन गरुड़। और आगे कि कोई कौवा कब और कैसे गरुड़ बन सकता है यह मोहन भागवत नहीं तय कर सकते हैं। 
    
मोहन भागवत की आलोचना करने वालों में थेः शंकराचार्य अविमुक्तिश्वरा नंद, रामभद्राचार्य, स्वामी रामदेव, स्वामी चक्रपाणि आदि, आदि। कोई मोहन भागवत जी से पूछे इनमें से कौन कौवा और कौन गरुड़ लगता है। 

 

यह भी पढ़ें :-

1. दो-मुंहा सांप

2. कौन किसका बॉस? कौन किसका पीर?

3. बहुरुपिये के नये रूप धरने की असफल कोशिश

4. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख का ‘संशोधनवाद’

5. आरक्षण पर ‘भागवत’ कथा

6. मोहन भागवत का नया लक्ष्य

7. जनवाद का गला घोंट मोहन भागवत का कद बढ़ाने का प्रयास

8. मोहन भागवत जी! देश की जनता आपकी सम्पत्ति नहीं, आप देश की जनता पर बोझ हैं

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता