
आजकल हिन्दू फासीवादी हर मस्जिद-दरगाह में हिन्दुओं के मंदिर खोजने की जिस मुहिम में लगे हुए हैं उससे परेशान कुछ भलेमानस इसका मुकाबला करने के लिए हिन्दू फासीवादियों के मुखिया मोहन भागवत के उस बयान का सहारा लेने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं खोजना चाहिए।
पता नहीं कि ये भलेमानस मोहन भागवत पर विश्वास करते हैं या नहीं पर उन्हें लगता है कि हिन्दू फासीवादियों के मुखिया के बयान को हिन्दू फासीवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है। पर ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते हैं कि यह हिन्दू फासीवादियों या संघ परिवार की सामान्य कार्य पद्धति है।
झूठ-फरेब, अफवाह और दो-मुंहापन अपने जन्म के समय से ही उनकी कार्य पद्धति का हिस्सा रहा है। वे हमेशा से ही अपने भीतर कुछ और बाहर कुछ और बोलते रहे हैं। ऐसा करके वे भोले-भाले लोगों को ही नहीं बल्कि खुद को समझदार मानने वालों को भी झांसे में लेते रहे हैं। कुछ उदाहरण इसे स्पष्ट करेंगे।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ खुद को एक सांस्कृतिक संगठन कहता रहा है। यह सिरे से झूठ है। राजनीति की किसी भी परिभाषा के हिसाब से संघ एक राजनीतिक संगठन है। इसका मुख्य लक्ष्य यानी भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना और अखंड भारत विशुद्ध राजनीतिक परियोजना है। आज के समय में इसे भारतीय संविधान को बदले बिना तथा पड़ोसी देशों से युद्ध किये बिना हासिल नहीं किया जा सकता। यहां व्यवहार की बात नहीं की जा रही है कि कैसे संघ परिवार चुनावों के समय भाजपा को जिताने के लिए जमीन-आसमान एक कर देता है। फिर भी संघ सांस्कृतिक संगठन होने की माला जपता रहता है।
दूसरा उदाहरण ‘हिन्दू’ की परिभाषा है। हर किसी को पता है कि संघ जिस ‘हिन्दू राष्ट्र’ की बात करता है वह हिन्दू धर्म मानने वालों का राष्ट्र होगा। इसमें मुसलमान और ईसाई तो नहीं ही आते, इसमें बौद्ध, जैन और सिख भी नहीं आते। इसके बावजूद संघ मुखिया समय-समय पर बोलते रहते हैं कि भारत में रहने वाले सारे लोग हिन्दू हैं, कि सारे भारतीयों का डी एन ए एक है।
ठीक इसी तरह मोहन भागवत का वह बयान है कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों खोजना। मोहन भागवत का यह बयान दो लोगों को संबोधित है। एक तो उन भलेमानसों को जो सब कुछ के बावजूद संघ परिवार के झांसे में आना चाहते हैं। दूसरा अपने उन समर्थकों को जो इसका इस्तेमाल कर यह संदेश दें कि जो कुछ हो रहा है उसके लिए संघ जिम्मेदार नहीं है। कि उसके न चाहने पर भी यह हो रहा है। कि यह सब करने वाले हाशिये के लोग हैं।
लेकिन यदि देश में कुछ हो रहा जो कानून का खुला उल्लंघन है, जिसे प्रशासन का पूर्ण समर्थन हो तथा जिसे अदालतें न केवल होने दे रही हैं बल्कि जिसमें वे सहायता कर रही हों, वह किन्हीं हाशिये के लोगों की कारस्तानी नहीं है। इन्हें सरकार या अदालत द्वारा कभी भी रोका जा सकता है। इससे भी बढ़कर संघ द्वारा इसे कभी भी रोका जा सकता है। पर यह नहीं रोका जा रहा है क्योंकि ये सारे यही चाहते हैं।
यह दो-मुंहेपन का शास्त्रीय उदाहरण है। इसमें समूचा संघ परिवार एक खास दिशा में बढ़ता है पर समय-समय पर कुछ ऐसी शाकाहारी बातें बोल दी जाती हैं कि लगे कि संघ परिवार की यह मंशा नहीं है। यह अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने का सबसे अच्छा तरीका है।