अमरीकी और फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों द्वारा इजरायल और लेबनान के बीच युद्ध-विराम समझौते के कागज की स्याही सूखी भी नहीं थी कि सीरिया में एच.टी.एस. (हयात तहरीर अल-शाम) नाम के आतंकवादी संगठनों के समूह ने बड़े पैमाने पर हमला कर दिया और असद हुकूमत का तख्ता पलट करते हुए सत्ता पर कब्जा कर लिया। यह ज्ञात हो कि इन आतंकवादी संगठनों के समूह का जन्म आई.एस.आई.एस. से निकले अल नुसरा फ्रंट का नाम बदलकर किया गया था। आई.एस.आई.एस. और अल नुसरा फ्रण्ट का गठन अमरीकी साम्राज्यवादियों की मदद और सहयोग से किया गया था। सीरिया में अमरीकी साम्राज्यवादियों का मकसद बशर अल-असद सरकार का हुकूमत परिवर्तन कराना था।
एच.टी.एस. ने 27 नवम्बर को अपने हमले की शुरूआत की। सबसे पहले उसने अलेप्पो शहर पर हमला बोल कब्जा किया। इसके बाद हामा और फिर बहुत जल्द ही वे राजधानी दमिश्क पर कब्जे को पहुंच गये। दमिश्क पर इनके कब्जे के साथ ही असद सरकार का पतन हो गया। असद को भागकर 8 दिसम्बर को रूस में शरण लेनी पड़ी। इस तरह महज 12 दिन की लड़ाई में असद सरकार का पतन हो गया। एच.टी.एस. ने मोहम्मद अल-बशीर को देश का नया कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। अल बशीर अभी तक इदलिब में विद्रोहियों की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने एक टी वी सम्बोधन में घोषणा की है कि वे 1 मार्च 1925 तक संक्रमणशील सीरियाई सरकार का नेतृत्व करेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री असद के भागने के बाद शांतिपूर्ण तरीके से संक्रमण को सहमत हो गये हैं।
इस तख्तापलट का अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन व इजरायली हुकूमत ने स्वागत किया है उन्होंने इसे असद की तानाशाही का अंत बताया है। ईरान ने इस तख्तापलट के लिए अमेरिका-इजरायल गठजोड़ को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि ईरान ने सीरिया में नई हुकूमत के साथ सम्बन्धों के मामले में यह कहा है कि वह इस पर निर्भर करता है कि वह इजरायल के प्रति क्या रुख लेती है और फिलिस्तीनी मुक्ति का समर्थन करती है अथवा नहीं।
इस तख्तापलट के बाद अमेरिका ने जहां सीरिया में बमबारी की है वहीं इजरायल ने मौके का लाभ उठा कर गोलन पहाड़ियों की ओर से सीरिया में घुसकर एक इलाके पर कब्जा कर बफर जोन बनाने की अपनी योजना को लागू करना शुरू कर दिया है। चूंकि इजरायल को नयी सत्ता पर भी कुछ खास भरोसा नहीं है इसलिए वह सीरिया के हथियार भंडार गृहों को निशाना बना सीरिया की लड़ने की क्षमता को ही कमजोर कर देना चाहता है। तुर्की के भी सीरिया के कुछ इलाके कब्जाने की खबरें आ रही हैं।
सीरिया में 2011 से जारी गृहयुद्ध में अब तक करीब 6 लाख लोगों के मारे जाने व 60 लाख के विस्थापित होने के बावजूद शांति कायम होती नहीं दिख रही है। इस गृहयुद्ध में विभिन्न शक्तियां कार्यरत हैं।
पूर्वी सीरिया के एक बड़े हिस्से पर कुर्दों के वर्चस्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज का कब्जा है। 10 अक्टूबर 2015 को अमेरिकी साम्राज्यवादियों के समर्थन से इस ग्रुप की स्थापना हुई थी। सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज की स्थापना पर तुर्की का अमेरिका से टकराव हुआ था क्योंकि तुर्की इस ग्रुप को अलग कुर्दिस्तान बनाने की कुर्दों की इच्छा को जोड़कर देखता है और इससे अपने कुर्द विद्रोहियों के ताकतवर होने का खतरा देखता है। इसलिए वह खुलकर इस ग्रुप के विरोध में है।
मौजूदा सीरिया की सत्ता कब्जाने वाला एच.टी.एस. अल नुसरा फ्रंट का ही बदला हुआ रूप है। तुर्की से सीधे इसे समर्थन हासिल रहा है। इसका वर्तमान में इदरिश, अलेप्पो, दमिश्क सहित सीरिया के बड़े इलाके पर कब्जा है। यह इलाका तुर्की की सीमा से जार्डन की सीमा तक फैला है।
उत्तरी सीरिया में सीरियन नेशनल आर्मी (SNA) का दबदबा है। यह भी तुर्की के समर्थन वाला विद्रोही समूह है। 2011 में असद की सेना से अलग हुए इस हिस्से का उत्तर पश्चिम सीरिया के बड़े हिस्से पर नियंत्रण है।
इसके अलावा पश्चिमी सीरिया में असद का समर्थन करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े अलावायत फोर्सेज का तटवर्ती इलाकों में दबदबा रहा है। इनका ईरान, इराक व लेबनान के हिजबुल्ला से भी संबंध रहा है।
सीरिया में 2011 से ‘अरब बसंत’ के दौरान बशर अल-असद की हुकूमत के विरुद्ध जन असंतोष उभरा था और व्यापक जनता सड़कों पर उतरी थी। इस व्यापक विरोध प्रदर्शन का अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अपने ‘हुकूमत परिवर्तन’ के मकसद को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया। तब से सीरिया गृह युद्ध से गुजर रहा है। पहले, अमरीकी साम्राज्यवादियों का साथ कई अरब हुकूमतें दे रही थीं। ये अरब हुकूमतें बशर अल-असद की हुकूमत के विरुद्ध कई आतंकवादी संगठनों को पैसे और हथियारों से मदद कर रही थीं। तुर्की भी सीरिया के उत्तर-पश्चिम से अपनी सीमा से सटे इलाके में कब्जा कर चुका था और वह सीरिया के उत्तर-पूर्व में कुर्द इलाके में हवाई हमले कर रहा था। इसी दौरान, अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया के दक्षिण-पूर्व में इराक की सीमा से लगे इलाके में कब्जा करके वहां अपना सैनिक अड्डा बना चुके थे। अमरीकी साम्राज्यवादी आई.एस.आई.एस. को खतम करने के बहाने सीरिया की सम्प्रभुता को रौंद कर वहां अपना फौजी अड्डा कायम किये हुए हैं। और वहां के तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की चोरी कर रहे हैं। 2012 से 2017 तक सीरिया के विरुद्ध अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ कई अरब हुकूमतें और तुर्की मिलकर वहां गृहयुद्ध भड़काये हुए थे। तुर्की सीरिया के विरुद्ध आतंकवादियों को प्रशिक्षित और हथियारबंद करने का काम अपने देश में कर रहा था।
2015-16 से सीरिया में गृहयुद्ध की परिस्थितियों में परिवर्तन उस समय आना शुरू हो गया जब सीरिया की हुकूमत ने रूस से उसके पक्ष में सैनिक हस्तक्षेप की मांग की। रूस के सैनिक हस्तक्षेप से पहले सीरिया के बड़े इलाके में अलग-अलग आतंकवादी समूहों, तुर्की और अमरीकी साम्राज्यवादियों का कब्जा हो चुका था। रूसी सैनिक हस्तक्षेप ने कई आतंकवादी समूहों के कब्जे वाले इलाकों को मुक्त कराने में बशर-अल-असद हुकूमत की मदद की। निश्चित ही इसमें रूसी साम्राज्यवादियों का भू-राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थ रहा है। रूसी साम्राज्यवादियों ने भी सीरिया में अपना सैनिक अड्डा कायम किया था। बशर अल-असद सरकार के समर्थन में ईरान की सरकार रही थी। वह अपने सैनिकों और अन्य तरीकों से बशर अल-असद की सरकार के पक्ष में रही थी। रूस और ईरान ने तुर्की की हुकूमत के साथ मिलकर सीरिया में गृहयुद्ध समाप्त करने के मकसद से 2017 से अस्ताना वार्ता करके एक समझौता किया। इससे तात्कालिक तौर पर सीरिया में तुर्की की तरफ से हमले कम हुए।
आखिर सीरिया विभिन्न साम्राज्यवादी ताकतों और इस क्षेत्र की ताकतों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है? इसका एक जवाब तो इस देश की भौगोलिक स्थिति में है और इससे भी महत्वपूर्ण बात बशर अल असद की हुकूमत की अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में ली गयी अवस्थितियों में है। यह जानी हुई बात है कि बशर अल-असद और उसके पहले उसके पिता हाफिज अल-असद के शासन काल के दौरान सीरिया के पहले सोवियत सामाजिक साम्राज्यवादियों और बाद में रूसी साम्राज्यवादियों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहे हैं। इस क्षेत्र में वह रूसी साम्राज्यवादियों का प्रभाव क्षेत्र रहा है। इस क्षेत्र के अधिकांश अरब देश अमरीकी साम्राज्यवादियों के प्रभाव क्षेत्र के तौर पर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों की पश्चिम एशिया में अपनी फौजी और राजनीतिक चौकी के बतौर इजरायल रहा है। ईरान में इस्लामी सत्ता आने के पहले अमेरिका की लठैत ईरान की शाह रजा पहलवी की हुकूमत थी। शाह रजा पहलवी की हुकूमत ढहने के बाद ईरान की इस्लामी हुकूमत अमरीकी साम्राज्यवादियों की आंख की किरकिरी हो गयी। वह सीरिया के साथ-साथ ईरान में भी हुकूमत परिवर्तन की लगातार कोशिशें और साजिशें करता रहा है। उसने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसको आर्थिक तौर पर कमजोर करने की पूरी कोशिश की। अमरीकी साम्राज्यवादियों के इन कारनामों के चलते और इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों पर लगातार हमलों के कारण ईरान की हुकूमत अमरीकी साम्राज्यवादियों और इजरायल के विरुद्ध लड़ने के लिए क्षेत्रीय प्रतिरोध संगठनों को मजबूत करने के प्रयास में लग गयी। उसने सीरिया के साथ अपने रिश्तों को घनिष्ठ किया और सीरिया के माध्यम से क्षेत्रीय प्रतिरोध संगठनों विशेष तौर पर हिजबुल्ला (लेबनान) को हथियार, गोलाबारूद और अन्य तरीकों से मदद की। फिलिस्तीन की आजादी के सवाल पर वह उनके समर्थन में दृढ़ता से खड़ा रहा। सीरिया की बशर अल असद की हुकूमत भी फिलिस्तीन की आजादी के सवाल पर दृढ़ता से उसके पक्ष में खड़ी रही है। ऐसी स्थिति में सीरिया और ईरान की हुकूमतें अमरीकी साम्राज्यवादियों और इजरायल के विरोध में प्रतिरोध संगठनों की मदद करती रही हैं। यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि अमरीकी साम्राज्यवादी और इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत सीरिया की हुकूमत को बदलने के लिए उसे तबाह और बर्बाद करना चाहते रहे हैं।
यहां तुर्की की भूमिका की चर्चा करना भी प्रासंगिक है। तुर्की की क्षेत्रीय विस्तारवादी आकांक्षायें हैं। तुर्की नाटो का सदस्य है। वह अमरीकी साम्राज्यवाद का सहयोगी है। तुर्की में अमरीका और नाटो के फौजी अड्डे हैं। लेकिन सीरिया में जहां वह कुछ इलाकों पर कब्जा किये हुए हैं, वहीं कुर्द इलाके के बारे में उसकी अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ टकराहट है। चूंकि तुर्की के अंदर भी कुर्द आबादी है और कुर्द आबादी वहां अलग से कुर्दिस्तान बनाने की मांग कर रही है। तुर्की की एर्दोगन की हुकूमत इस मांग को करने वाले संगठनों के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई करके उनको कुचलने का प्रयास करती रही है। चूंकि सीरिया के कुर्द इलाके से तुर्की के कुर्द इलाके के संगठनों का रिश्ता रहा है इसलिए वह सीरिया के कुर्द इलाकों में बमबारी और सैनिक हमले करती रही है। अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया के कुर्द संगठनों का इस्तेमाल बशर अल असद की हुकूमत के खिलाफ करने में उनको हथियार, गोला-बारूद, प्रशिक्षण और आर्थिक मदद करते रहे हैं। यहां पर तुर्की का अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ एक टकराव रहा है।
तुर्की जहां एक तरफ फिलिस्तीन की आजादी की लड़ाई के समर्थन और इजरायल द्वारा गाजा नरसंहार किये जाने की निंदा करता रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसने इजरायल के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्धों को इस युद्ध के दौरान काफी समय तक बनाये रखा है। इतना ही नहीं, अजरबैजान द्वारा इजरायल को भेजे जाने वाले तेल को ले जाने की इजाजत और इंतजाम अपने बंदरगाहों से करके इजरायली सेना द्वारा फिलिस्तीनियों के किये जाने वाले नरसंहार में वह मददगार रहा है। तुर्की का फिलिस्तीनियों के समर्थन का जुबानी जमाखर्च और वास्तविकता में गाजापट्टी में किये जाने वाले इजरायली नरसंहार में मदद के अतिरिक्त वह सीरिया में आतंकवादियों की मदद करता रहा है।
मौजूदा सीरिया की स्थिति और समूचे पश्चिम एशिया की स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। चीन की मध्यस्थता में ईरान और साउदी अरब के बीच सम्बन्धों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया तेज हुयी है। इससे इस क्षेत्र की दो बड़ी ताकतों के बीच टकराव की संभावनायें कमजोर हुई हैं। सीरिया की बशर अल असद की हुकूमत का अरब लीग के सदस्य देशों ने जो बहिष्कार कर रखा था, वह बहिष्कार समाप्त हुआ है। इजरायल द्वारा गाजापट्टी में व्यापक नरसंहार और महातबाही के विरुद्ध दुनिया भर के लोगों द्वारा किये जा रहे विरोध के चलते दुनिया में इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत अलगाव में गयी है। फिलिस्तीन की आजादी की लड़ाई फिर से उभरकर दुनिया भर में चर्चा के केन्द्र में आयी है। अरब देशों के शासकों को अपनी जनता के फिलिस्तीन के पक्ष में रुख को देखकर न चाहते हुए भी फिलिस्तीन की आजादी के पक्ष में बोलना पड़ रहा है।
चूंकि अमरीकी साम्राज्यवादी हर हालत में और किसी भी कीमत पर इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत का समर्थन करते रहेंगे, इसलिए वे पश्चिम एशिया के क्षेत्र में अपना वर्चस्व बनाये रखने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। अगर पश्चिम एशिया में उनका वर्चस्व कमजोर होगा तो इसका विश्वव्यापी प्रभाव पड़ेगा और वे इजरायल की भी वृहत्तर इजरायल की परियोजना को नहीं साकार कर पायेंगे। इजरायल ने पहले ही सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्जा कर रखा है। वह लेबनान के साबरा और शातिला इलाके पर कब्जा किये हुए है। पश्चिम किनारे पर फिलिस्तीनियों को उजाड़कर लगातार यहूदी बस्तियां बसाता जा रहा है। गाजापट्टी में वह फिलिस्तीनियों के नरसंहार के जरिये उनकी आबादी का नस्लीय सफाया करने की अपनी योजना को अंजाम देता जा रहा है। उसके इस अभियान में इस क्षेत्र में सबसे बड़ी बाधा ईरान है। दूसरे नम्बर पर ये प्रतिरोध संगठन हैं। इन प्रतिरोध संगठनों को हथियार, गोलाबारूद और अन्य मदद पहुंचने का रास्ता सीरिया है। इसलिए इजरायल के लिए सीरिया की हुकूमत को पलटना महत्वपूर्ण रहा है। चूंकि उसके लिए यह अकेले ऐसा कर पाना संभव नहीं रहा है, इसलिए अमरीकी साम्राज्यवादी और तुर्की उसकी मदद में अपने-अपने कारणों से सीरिया में बशर अल असद की हुकूमत को गिराने के लिए एक साथ आ गये। सभी अलग-अलग आतंकवादी संगठनों की मदद करते रहे हैं।
इन आतंकवादी संगठनों का प्रशिक्षण और आधुनिक हथियार मुहैय्या कराने का काम यूक्रेन की जेलेन्स्की की हुकूमत ने किया है। ये आतंकवादी समूह कई मध्य एशियाई देशों के आतंकवादियों को लेकर बने हैं। इनके द्वारा इतना बड़ा हमला, बिना अमरीकी, इजरायली और तुर्की की सरकारों के सैनिक सहयोग के नहीं हो सकता था। आधुनिक ड्रोनों की आपूर्ति यूक्रेन की सत्ता ने की।
अमरीकी और फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों द्वारा इजरायल और लेबनान के बीच कराये गये युद्ध विराम समझौते का इजरायल ने तुरंत ही उल्लंघन करना शुरू कर दिया। उसने दक्षिणी लेबनान के गांवों में वापस घर आने वाले लेबनानियों पर हवाई हमले और तोपों के गोले बरसाकर उनको हताहत करना जारी रखा। दूसरी तरफ इजरायली यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की हुकूमत ने अमरीकी साम्राज्यवादियों और तुर्की की सत्ता से मिलकर सीरिया में आतंकवादी हमलों को तेज करने में अपनी भूमिका निभाकर पश्चिम एशिया में युद्ध का विस्तार कर दिया। सीरिया में आतंकवादी हमले का मकसद बशर अल असद की सत्ता को उखाड़ फेंकने के साथ सीरिया के हथियारों को नष्ट करना था। इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत इसके बाद अन्य प्रतिरोध समूहों पर हमला करके अंततोगत्वा ईरान पर हमला करने का मंसूबा रखती है। उसके इस काम में अमरीकी साम्राज्यवादियों का खुला समर्थन है। अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प ने हमास को खुलेआम यह चेतावनी दे दी है कि वह उनके राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के पहले बंधकों की रिहाई पर समझौता कर ले वरना अमरीका गाजापट्टी को नरक बना देगा। उनकी इस धमकी का जवाब भी हमास ने दे दिया है।
जिस तरीके से यूक्रेन में अमरीकी साम्राज्यवादियों और नाटो को पराजय दिख रही है और इस पराजय को रोकने के लिए उन्होंने यूक्रेन को रूस के भीतर तक मार करने वाली मिसाइलों के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है, उससे इनकी बौखलाहट जाहिर होती है। रूसी साम्राज्यवादियों के सामने यूक्रेन की सेना छिन्न-भिन्न होती जा रही है। अमरीकी साम्राज्यवादी इस पराजय की भरपाई करने के लिए रूसी साम्राज्यवादियों को पश्चिम एशिया में उलझाने की चाल चल रहे हैं। इससे इजरायली यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की हुकूमत की युद्ध में अमरीकी साम्राज्यवादियों की भागीदारी कराने की योजना भी सफल हो रही है।
ऐसा लगता है कि पश्चिम एशिया के इस युद्ध का सीरिया से आगे बढ़कर और विस्तार होगा। यह युद्ध सीरिया तक सीमित नहीं रहेगा। इस युद्ध में दो साम्राज्यवादी शक्तियां- अमरीका और रूस- सीधे तौर पर आमने-सामने आ सकती हैं। परोक्ष रूप में तो दोनों शामिल हैं।
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
सीरिया पर आतंकी हमला और तख्तापलट
राष्ट्रीय
आलेख
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।