पंतनगर/ दिनांक 2 दिसंबर 2024 को आंदोलनरत फसल अनुसंधान केन्द्र के मजदूरों द्वारा सामूहिक रूप से हस्ताक्षर कर तिलक राज बेहड़, क्षेत्रीय विधायक किच्छा पंतनगर को ज्ञापन सौंपकर अपनी मांगें उठायी गयीं। ज्ञापन में पूरे माह काम देकर माह में 26/27 कार्य दिवसों का वेतन दिलाने, समय से वेतन भुगतान कराने, सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने की मांग की गई है। इसी तरह संयुक्त निदेशक और कुलपति को मजदूरों द्वारा सामूहिक रूप से लिखित हस्ताक्षर पत्र दिया गया। ज्ञापन की प्रतिलिपि पंतनगर की समस्त मजदूर यूनियनों को प्रेषित की गई है। मांगें पूरी नहीं होने पर विधायक द्वारा 9 दिसंबर 2024 को मांगों के समर्थन में मजदूरों के साथ धरने पर बैठने की घोषणा की गई है।
विश्वविद्यालय पंतनगर जैसी सरकारी संस्था में पिछले 15-20 वर्षों से लगातार कार्यरत मजदूरों को विभिन्न शासनादेशों, श्रम नियमों द्वारा नियमित किया जाना तो दूर की बात, श्रम नियमों द्वारा देय बोनस, ग्रेच्युटी, वर्ष में 20 दिनों के अवकाश से भी वंचित रखा गया है। पूरे महीने काम भी नहीं दिया जा रहा है। माह में मात्र 20-22 कार्य दिवसों का वेतन भुगतान किया जा रहा है। जबकि पूर्व कुलपति 26/27 कार्य दिवसों का वेतन भुगतान कराने का आदेश दे चुके हैं। परंतु कभी समय से वेतन भुगतान नहीं किया जाता। विगत वर्ष कीटनाशक छिड़काव में कई मजदूर बेहोश हो गये। पर मजदूरों को मास्क, साबुन, सुरक्षा, उपकरण, गमबूट उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। मजदूरों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है।
एक ओर आसमान छूती महंगाई में अति अल्प न्यूनतम वेतन में मजदूर परिवार के पालन-पोषण, बच्चों की शिक्षा में पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, ऊपर से पूरे माह काम न देकर मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न किया जा रहा है।
उत्तराखंड शासन द्वारा विश्व विख्यात विश्वविद्यालय पंतनगर की विगत कई वर्षों से लगातार बजट कटौती की जा रही है। जिसका असर घूम फिर कर ठेका मजदूरों पर वेतन कटौती के रूप में पड़ रहा है। ठेका मजदूरों ने अपनी अनदेखी से तंग आकर सभी यूनियनों को किनारे कर स्वतः स्फूर्त आंदोलन छेड़ दिया है। और 18 नवम्बर 2024 से मजदूर रोजाना हाजिरी पर एक घंटे सांकेतिक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसकी भरपाई एक घंटा देर तक काम करके कर रहे हैं। अधिकारियों द्वारा आश्वासन दिया भी गया था। परंतु अब अधिकारी शासन द्वारा बजट अभाव की बात कर रहे हैं।
इसी को लेकर ठेका मजदूर कल्याण समिति की सलाह पर संयुक्त निदेशक, कुलपति जी को सामूहिक रूप से पत्र और विधायक किच्छा पंतनगर को ज्ञापन देकर मजदूरों ने अपनी मांगें उठायी हैं। शासन-प्रशासन से मांगें हासिल करने के लिए मजदूरों को संगठित होकर इलाकाई एकता और जुझारू संघर्ष की जरूरत है। -पंतनगर संवाददाता
पूरे माह काम, समय से वेतन, सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने की मांग
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आलेख
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।