जनसंख्या विशेषज्ञ

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एक महाशय हैं जो अपनी उम्र की चौथी अवस्था में प्रवेश कर चुके हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो उनके सन्यास लेने की उम्र हो गयी है। महाशय ने ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रम में कितना-कितना जीवन जीया यह तो या तो वे स्वयं जानते होंगे अथवा या फिर राम ही जानते होंगे। सन्यास आश्रम में वे प्रवेश करेंगे अथवा नहीं ऐसी कोई घोषणा उन्होंने नहीं की है परन्तु जो स्थिति है उसे देखकर पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उनका सन्यास लेने का कोई इरादा नहीं है। 
    
इन महाशय ने जानवरों की डाक्टरी की पढ़ाई की है। बेजुबान जानवरों की इन्होंने कभी चिकित्सा, डिग्री लेने के बाद नहीं की परन्तु इन्होंने जुबान वालां को जानवरों में बदलने में अपनी पूरी प्रतिभा, मेधा, क्षमता का प्रयोग किया। फलस्वरूप वे अघोषित तौर पर राष्ट्र प्रमुख की भूमिका निभाते हैं। 
    
इन महाशय को भारत की जनसंख्या की बहुत चिंता हो गयी है। लोगों से आह्वान कर रहे हैं (खासकर हिन्दुओं से) कि वे कम से कम तीन बच्चे पैदा करें। क्योंकि अगर लोग बच्चे नहीं पैदा करेंगे तो जनसंख्या की दर जो कि लगातार कम हो रही है और कम हो जायेगी। और फिर ये डर दिखाते हैं कि कहीं हिन्दुओं की संख्या ज्यादा ही कम हो गयी तो गैर धर्मी उन पर राज करने लगेंगे। यहां चतुराई है कि ये यह नहीं बताते हैं कि भारत की कुल जनसंख्या वृद्धि (सभी धर्मों, समुदाय की) की दर ही गिर रही है। हिन्दू ही नहीं बल्कि गैर हिन्दू भी कम संतान पैदा कर रहे हैं। 
    
किसी सिरफिरे ने मजाक किया कि साहब आप को जनसंख्या की इतनी ही चिंता है तो क्यों आपने यानी अघोषित राष्ट्र प्रमुख ने विवाह नहीं किया। और फिर आप ऐसा क्यों नहीं करते कि आप अपने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को विवाह करने की इजाजत दे दें। कुछ तो योगदान करेंगे और नहीं तो बेचारे इधर-उधर जो गुल खिलाते रहते हैं वह ही रुक जायेगा। फिर अघोषित राष्ट्र प्रमुख देश के प्रधान सेवक को आदेश दे कि वे अपनी छोड़ी गयी पत्नी को प्रधान सेवक की कुटिया में ससम्मान वापस ले आयें। एक मिसाल नहीं होगी तो भूल-सुधार तो होगा ही। 
    
उसी सिरफिरे ने फिर मजाक किया, यहां एक बच्चा पालना मुश्किल है वहां आप तीन-तीन बच्चों की बात कर रहे हैं। कहां से उन्हें पढ़ायें, कहां से खिलायें, और क्या उनका भविष्य है। क्या आप हमारे बच्चों की देखभाल आदि का प्रबंध करेंगे। लगता है जानवरों के डाक्टर ने हमें भी जानवर समझ लिया है।     
    
वैसे जनसंख्या विशेषज्ञ बने ये महाशय शायद औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन समझते हैं। इनका बस चले तो ये हर हिन्दू औरत को सौ पुत्रों की मां जिसने अपनी आंख में पट्टी बांध ली थी, बना दें। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।