राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों संघी संगठनों द्वारा कराये जा रहे धर्मांतरण की बहस में कूदते हुए जो बातें कहीं वे इस संगठन की देश की जनता के बारे में घृणित सोच को सामने ला देती हैं। <br />
संघ प्रमुख ने अपने कार्यकर्ताओं द्वारा जगह-जगह धर्मांतरण कराने के पक्ष में खड़े होते हुए कहा कि अगर हमारा माल चोरी हो गया और हम उसे वापस लें तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस तरह से मुस्लिम-ईसाईयों को हिंदू धर्म में वापस लाकर वे अपना चोरी हुआ सामान वापस ले रहे हैं। इसके साथ ही मोहन भागवत ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के अपराधों को अब और बर्दाश्त न करने की चेतावनी भी इन देशों को दे डाली। <br />
पर इस सीधे-सादे तर्क का शुरूआती बिन्दु ही गलत है। देश के सभी हिन्दू मोहन भागवत के संगठन की सम्पत्ति नहीं हैं। और कुछ नहीं तो सिर्फ इस वजह से ही कि मोहन भागवत और उनके संगठन की पैदाइश से पहले ही हिन्दू धर्म मौजूद है। इसीलिए वे मोहन भागवत की सम्पत्ति नहीं हो सकते। जहां तक अतीत में कुछ हिंदुओं के मुस्लिम व ईसाई धर्म में जाने की बात है तो मोहन भागवत को और अतीत में जाना चाहिए जहां यह मिलता है कि आर्य जाति भारत मेें बाहर से आयी थी और उसने भी देश की कबीलों में रह रही जनता को अपने द्वारा स्थापित ब्राहम्णवादी हिन्दू धर्म में शामिल किया था। इसलिए अगर मोहन भागवत को इतिहास ही दुरूस्त करना है तो उसके लिए सभी लोगों को कबीलों में वापस भेजना होगा और कुछ सिरफिरे ब्राहम्णवादी परम्परा के कट्टर हिंदुओं को देश से बाहर करना होगा। <br />
पर खुद को हिंदू धर्म का ठेकेदार मानने वाले मोहन भागवत ऐसा नहीं कर सकते। वे तो हिन्दू धर्म को देश का मूल धर्म घोषित कर देश में हिंदू राष्ट्र कायम करना चाहते हैं। सिक्खों, बौद्धों को तो वे हिन्दू धर्म की शाखा घोषित ही कर चुके हैं। और साम-दाम-दण्ड-भेद से कुछ लोगों का धर्मांतरण करा वे देश में साम्प्रदायिक वैमनस्य को और ज्यादा फैलाना चाहते हैं। वे खुलेआम घोषित करते भी फिर रहे हैं कि मोदी के रूप में बहुत सालों बाद हिंदू शासक की वापसी हुयी है। इसीलिए संघ कार्यकर्ताओं को प्रलोभन से या छल से कैसे भी लोगों को हिंदू धर्म में वापस लाने का अधिकार है। <br />
खुद को हिंदू धर्म का ठेकेदार मानने वाले संघ को शायद यह मालूम नहीं कि देश की आबादी का 82 प्रतिशत हिन्दू है और यह आबादी के हिसाब से लगभग 90 करोड़ बैठती है। अगर इसमें 60 करोड़ लोगों को मतदाता मान लेें तो भाजपा पिछले चुनाव में महज 17 करोड़ वोट पा सत्ता पर काबिज हुई। इसमें अन्य धर्मों के लोग भी शामिल रहे हैं। और जिन लोगों ने भी अपना वोट भाजपा को दिया भी उन्होंने यह नहीं कहा कि वे सशरीर अब संघ व मोहन भागवत की सम्पत्ति बन गये हैं। अतः स्पष्ट है कि हिंदुओं ने खुद को संघ की सम्पत्ति घोषित नहीं किया संघ खुद हिंदुओं को अपनी सम्पत्ति मानने पर उतारू है। <br />
संघ का हिंदुओं को अपनी सम्पत्ति मानना उसके फासीवादी रुख का नतीजा है साथ ही यह संघ द्वारा स्थापित किये जाने वाले ‘हिन्दू राष्ट्र’ की मंशा भी दिखला देता है इस ‘हिन्दू राष्ट्र’ में मुस्लिम-ईसाई ही नहीं हिंदू मेहनतकश जनता भी संघी लम्पटों के उत्पीड़न का शिकार होगी। ये हिंदू जनता का इस्तेमाल अपनी सम्पत्ति के रूप में करेंगे। <br />
मोहन भागवत जी इतिहास को ठीक करने की कोशिश करने वाले महत्वाकांक्षी लोगों के साथ इतिहास ने क्या सलूक किया। हिटलर के हश्र को आप अच्छी तरह जानते होंगे। आप कहते हैं बांग्लादेश-पाक की कारगुजारियां सर के ऊपर से गुजर रही हैं। हम कहते हैं कि आप की और आपके फासीवाद संगठन की कारगुजारियां मेहनतकश जनता के सिर से ऊपर गुजरने लगी हैं। <br />
इसीलिए इस देश की मेहनतकश जनता भागवत और उसके संगठनों की सम्पत्ति होने से इंकार करती है। साथ ही यह ऐलान भी करती है कि आप और आपका फासीवादी संघ अब अपनी कारगुजारियों से जनता पर बोझ बनता जा रहा है इसलिए अब नारा लगाने का वक्त आ गया है ‘‘जो हिटलर की चाल चलेगा वो हिटलर की मौत मरेगा’’।
मोहन भागवत जी! देश की जनता आपकी सम्पत्ति नहीं, आप देश की जनता पर बोझ हैं
राष्ट्रीय
आलेख
सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।
समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।