‘‘आम चुनाव का परिणाम अनिश्चित’’

9 मई को भारत के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक जिसे सेंसेक्स के नाम से जाना जाता है एक हजार अंक से ज्यादा गिर गया और यही हाल निफ्टी का भी हुआ वह 22,000 के कथित मनोवैज्ञानिक सीमा से नीचे आ गया। बताया जा रहा है कि निवेशकों के 7.3 लाख करोड़ रुपये डूब गये। इसी तरह रुपया भी डालर के मुकाबले और कमजोर हो गया। 
    
शेयर बाजार के डूबने का एक कारण जहां यह बताया गया कि कम्पनियों के चौथी तिमाही के वित्तीय परिणाम आशानुरूप नहीं हैं और दूसरा कारण ज्यादा दिलचस्प और महत्वपूर्ण है कि आम चुनाव का परिणाम अनिश्चित हो गया है। 
    
कहां तो मोदी एण्ड कम्पनी ‘अबकी बार चार सौ पार’ का नारा उछाल रही थी और अब कहां शेयर बाजार के धुरंधरों और धूर्त विदेशी निवेशकों को लगने लगा है कि यह भी संभव है कि मोदी सत्ता में वापस न आ पाये। उनका ‘‘डार्लिंग’’ चुनाव हार जाये। 
    
ये परजीवी वित्तीय राक्षस अगर यूं घबरा रहे हैं तो अवश्य ही इसमें कुछ न कुछ बात होगी। धूर्त विदेशी निवेशक भारत से भाग रहे हैं तो यूं ही नहीं भाग रहे होंगे। इन धूर्त लालचियों को कुछ न कुछ अंदरखाने की खबर होगी। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता