जम्मू-कश्मीर में वीडीजी का गठन

नागरिकों के खिलाफ नागरिक गार्ड

केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाने के साथ उसकी सीमित स्वायत्तता 2019 में समाप्त कर दी गयी थी। यह करते हुए दावा किया गया था कि इससे कश्मीर की समस्या हल हो जायेगी। वहां से आतंकवाद समाप्त हो जायेगा। लेकिन सच्चाई क्या है। सच्चाई यह है कि कश्मीर की समस्या और उलझ गयी है। आये दिन कश्मीरी नौजवानों का आतंकवाद के नाम पर मारा जाना जारी है। भाजपा द्वारा कश्मीरी पंडितों को एक राजनीतिक मोहरा बनाने का खेल जारी है। इस मुद्दे को निरंतर उभारा और आक्रामक बनाया गया। जिस कारण वे आतंकवादी घटनाओं का शिकार बन रहे हैं। पिछले कुछ ही समय में अलग-अलग घटनाओं में 7 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई है। यहां डर और दहशत का माहौल बना हुआ है। कश्मीरी पंडितों की हत्या के बाद वहां लोग भाजपा के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।

इन सारे मामलों के मद्देनजर मोदी सरकार ने एक और पैंतरा चला है जो अपने आप में जम्मू-कश्मीर में उलझ रही स्थिति को बयां कर देता है। मोदी सरकार द्वारा यहां खासकर जम्मू में नागरिक मिलिशिया का गठन किया जा रहा है। यानी आतंकवाद से लड़ने के नाम पर हिंदू नागरिकों को हथियार दिये जा रहे हैं। जनवरी माह में नागरिक मिलिशिया जिसे गांव सुरक्षा गार्ड (वीडीजी) नाम दिया गया है, का गठन किया गया। धांगरी और जम्मू के आस-पास के गांवों के सैकड़ों नागरिकों को प्रशिक्षण और शस्त्र दिये गये। धांगरी गांव में ही लगभग 150 वीडीजी सक्रिय हैं। राजौरी के एक पुलिस अधिकारी के अनुसार राजौरी में 700 वीडीजी सदस्यों की मंजूरी मिली है। इनमें से कुछ को सेल्फ लोडिंग राइफलें व अधिकांश को एनफील्ड राइफलें दी जानी हैं।

वीडीजी को काम दिया गया है कि वे गश्त करेंगे। संदिग्धों पर नजर रखेंगे। पुलिस के साथ सहयोग करते हुए कई कार्यवाहियों में सक्रिय रहेंगे। वीडीजी सदस्यों को 4000-4500 रुपये प्रतिमाह पारिश्रमिक दिये जाने की बातें कही गयी हैं। लेकिन वहां लोग बताते हैं कि अभी उन्हें कुछ नहीं मिला है।

भाजपा ने आतंकवाद की समाप्ति के नाम पर वीडीजी बनाकर 1995 के दौर की यादें ताजा कर दी हैं। यह वह समय था जब जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र कश्मीर की आवाज बहुत बुलंद थी। यह वही समय है जब सरकार यहां भारी आतंकवाद कहा करती थी। उस समय पहली बार यहां नागरिक मिलिशिया बनाई गयी थी जिसे उस समय गांव सुरक्षा कमेटी कहा जाता था। इसके 4000 सदस्य थे और 27000 स्वयंसेवक थे। साल 2000 तक आते आते यहां विद्रोह धीमा पड़ने लगा और तभी से नागरिक मिलिशिया को भंग करने की मांग भी उठने लगी और इसे भंग कर दिया गया।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1990 के दशक में वीडीजी सदस्यों के खिलाफ 221 मामले दर्ज किये गये। यह मामले हत्या, बलात्कार व दंगों से सम्बंधित थे। मौजूदा वीडीजी को लेकर भी तमाम लोगों में यही अंदेशा है कि यह इसी राह में आगे बढ़ेगा और हिन्दू-मुसलमान के वैमनस्य को और बढ़ायेगा।

वीडीजी जैसे प्रयास छत्तीसगढ में भी किये गये थे। यह सलवा जुडूम के नाम से कुख्यात है। माओवादियों से लड़ने के नाम पर आदिवासी युवाओं का एक हथियारबंद संगठन बनाया गया जो अपनी कारगुजारियों से बहुत बदनाम हुआ था। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इसकी कडी आलोचना करते हुए इसे असंवैधानिक कहा और बंद करने का निर्देश दिया।

कश्मीर के अपने अनुभव, छत्तीसगढ के सलवा जुडूम के अनुभव और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए केन्द्र में बैठी मोदी सरकार द्वारा कश्मीर में वीडीजी बनाया है। वीडीजी के माध्यम से वह सस्ते सुरक्षाकर्मी तैयार कर रही है। आतंकवाद के नाम पर कश्मीरी मुसलमानों पर हमलों को और व्यापक ढंग से संगठित कर रही है। अपने परिणाम में यह क्षेत्र में हिन्दू-मुसलमान के वैमनस्य को और बढ़ायेगा।

कश्मीरी राष्ट्रीयता भारत की उत्पीड़ित राष्ट्रीयता है। कश्मीरी अवाम अपने अधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत रही है। भारत व पाकिस्तान के शासक लगातार इस न्यायपूर्ण संघर्ष को अपने हितों में बदनाम करने के षड्यंत्र करते रहे हैं। भारत के संघी शासक हर सामाजिक समस्या को कानून व्यवस्था की समस्या मानते रहे हैं और उसे पुलिसिया दमन से सुलटाना चाहते हैं जिसका परिणाम यह निकलता है कि समस्या और बिगड़ जाती है। कश्मीर में उनका मौजूदा कदम कश्मीरी राष्ट्रीयता की समस्या को और उलझाने की ओर ले जायेगा।

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।