मोदी सरकार अडाणी का भांडा फूटने के बाद भी अडाणी ग्रुप की कंपनियों को बचाने के लिए सरकारी कंपनियों में जमा जनता के पैसों को शेयर बाजार में लगा रही है। सरकार ने पहले अडाणी के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए एलआईसी एवं भारतीय स्टेट बैंक का पैसा अडाणी ग्रुप को दिया था। अब डूबते साम्राज्य को बचाने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि पेंशन फंड का पैसा अडाणी को दे रही है।
एम्पलाइज प्रोविडेंट फंड आर्गेनाइजेशन या कर्मचारी भविष्य निधि संगठन एक सरकारी संस्था है जिसे सरकार के नियंत्रण में ईपीएफओ बोर्ड के माध्यम से संचालित किया जाता है। वर्तमान में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में सरकारी व प्राइवेट अंशधारकों अथवा कर्मचारियों की संख्या लगभग 28 करोड़ है। संस्थान में कर्मचारियों के लगभग 13 लाख करोड़ रुपए से अधिक धनराशि जमा है।
24 जनवरी 2023 को हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी की रिपोर्ट आने के बाद अडाणी के फर्जीवाड़े की पोल खुली तो अडाणी ग्रुप के शेयरों के दाम धड़ाम से नीचे गिर गए। दिसंबर 2022 में 156.3 अरब डालर की संपत्ति के साम्राज्य के साथ गौतम अडाणी दुनिया का दूसरे नंबर का पूंजीपति बन गया था। लेकिन रिपोर्ट आने के बाद गौतम अडाणी की संपत्ति साम्राज्य में 60 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट दर्ज हुई है। 28 फरवरी की रिपोर्ट के अनुसार गौतम अडाणी दुनिया के पूंजीपतियों की सूची में दूसरे नंबर के स्थान से 35वें स्थान के नीचे लुढ़क गये। गौतम अडाणी की कंपनियों के शेयर में पैसा लगाने वालों को चूना लग रहा है।
धोखाधड़ी की रिपोर्ट आने के बाद अडाणी कंपनी के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज हुई है। अब देशी-विदेशी कंपनियां अडाणी के शेयरों में पैसा लगाने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में मोदी सरकार एक बार फिर कर्मचारियों के पैसे को दांव पर लगा रही है। सरकार मार्च 2022 तक कर्मचारी भविष्य निधि का 1.57 लाख करोड़ रुपया शेयर बाजार में लगा चुकी थी। फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद भी कर्मचारी भविष्य निधि के 38,000 करोड़ रुपए सरकार द्वारा अडाणी ग्रुप के शेयर खरीदने में लगा दिए गए हैं। एक समझौते के अनुसार यह सिलसिला सितंबर 2023 तक चलेगा। अभी यह नहीं बताया जा सकता है कि सरकार आगे भविष्य निधि का कितना पैसा शेयर बाजार में लगाएगी। इसके पहले मोदी सरकार ने 2021-2022 में भविष्य निधि पर मिलने वाले ब्याज को घटाकर 8.1 प्रतिशत कर दिया था।
2014 में सरकार बनने के बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी तेजी से सरकारी कंपनियों को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को बेचना शुरू किया था। मोदी सरकार ने बैंक, बीमा व भविष्य निधि में जमा आम जनता के पैसे को भी पूंजीपतियों के हाथों में सौंप दिया। इसके साथ-साथ सरकार अडाणी जैसे पूंजीपतियों को सरकारी बैंकों से लोन भी दिलवाती है। निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों को बड़ी तेजी से लागू करने वाली मोदी सरकार, सरकारी कंपनियों पर ‘घाटे में चलने’ का आरोप लगाकर उन्हें प्राइवेट कंपनियों को बेचती है तथा सरकार प्राइवेट कंपनियों को पैसा भी उपलब्ध कराती है। ऐसा करना देश के विकास के लिए जरूरी भी बताती है। जब कंपनियों के डूबने का स्वांग कर पूंजीपति पैसा लेकर विदेश भाग जाते हैं, तो सरकार सरकारी खजाने से उनका सारा कर्जा भी भरती है। सरकार महंगाई, बेरोजगारी बढ़ाकर एवं सामाजिक सुरक्षा पर खर्च होने वाले पैसों में कटौती कर प्राइवेट कंपनियों को दिए कर्जे की कीमत जनता से वसूल करती है। इसे कहते हैं, ‘‘ना हींग लगे ना फिटकरी, रंग चोखा’’ अथवा ‘‘निजी मुनाफा, सरकारी घाटा’’। यही है पूंजीवादी बाजार व्यवस्था का मंत्र।
भ्रम में जीने वालों को यह बात समझनी होगी कि पूंजीवाद और उसकी बाजार व्यवस्था से न देश का विकास हो सकता है, ना मेहनतकश जनता को राहत मिलने वाली है। जनता के मेहनत से खड़े सरकारी उद्यम और उसी जनता के पैसों से पूंजीपतियों को लाभ क्यों? हमें यह बात भली-भांति समझनी होगी। शोषण व लूट पर आधारित पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ तीव्र आंदोलन के दबाव में जनता को कुछ राहत मिल सकती है। पूरी मुक्ति के लिए पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा एवं समाजवाद की स्थापना ही एकमात्र विकल्प है। -मुन्ना प्रसाद, दिल्ली