झूठे मुकदमों के विरोध में प्रदर्शन

हल्द्वानी/ हल्द्वानी के बहुचर्चित रेलवे बनाम बनभूलपुरा अवाम मामले में बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं पर लगाए झूठे मुकदमों के विरोध में 15 मार्च को बुद्ध पार्क, हल्द्वानी में सभा कर धरना-प्रदर्शन किया गया। धरना-प्रदर्शन के पश्चात सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार के नाम ज्ञापन प्रेषित किया गया। ज्ञापन में बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के चार कार्यकर्ताओं पर लगाए झूठे मुकदमे वापस लेने और उच्चतम न्यायालय में उत्तराखंड सरकार से बनभूलपुरावासियों के पक्ष में मजबूती से पैरवी करने की मांग की गई।

अवगत रहे विगत 2 जुलाई, 2022 को संघर्ष समिति के बैनर तले उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अपीलकर्ता रविशंकर जोशी के घर पर जाकर बच्चों और महिलाओं का याचिका वापस लेने की अपील का कार्यक्रम ‘बाल आग्रह’ तय किया गया था। कार्यक्रम की पूर्व सूचना स्थानीय प्रशासन उप जिलाधिकारी कार्यालय हल्द्वानी में दे दी गई थी। 1 जुलाई को संघर्ष समिति के 4 कार्यकर्ता अपीलकर्ता के आवास पर कार्यक्रम की पूर्व सूचना देने गए थे। अपीलकर्ता अपने आवास पर नहीं मिले। ऐसे में उनके परिजनों को मामले से अवगत कराया गया। बाद में उनसे फोन पर हुई बातचीत में उनको मामले से अवगत कराया गया। उन्होंने आवास के स्थान पर कार्यक्रम को किसी अन्यत्र सार्वजनिक स्थान पर करने और वहां आने पर अपनी सहमति जताई। साथ ही उसी दिन स्थानीय पुलिस ने भी कार्यक्रम को उनके आवास की जगह सार्वजनिक स्थल पर करने की अपील की। कार्यक्रम याचिकाकर्ता के आवास की जगह सार्वजनिक स्थल पर शांतिपूर्वक तरीके से किया गया। उसके बावजूद भी गंभीर जमानती-गैरजमानती धाराओं में (धारा 387, 448, 506) के तहत संघर्ष समिति के 4 कार्यकर्ताओं पर आपराधिक फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

इस दौरान चली सभा में वक्ताओं ने कहा कि बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं पर झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है। ये मुकदमे संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं-सदस्यों को हैरान-परेशान और बस्ती के पक्ष में उनके द्वारा की जा रही कार्यवाहियों को रोकने के लिए लगाए गए हैं। मुकदमा दर्ज होने के बाद संघर्ष समिति के सदस्यों को पुलिस-प्रशासन द्वारा सूचना भी नहीं दी गई। फरवरी माह में कोर्ट से जारी तीसरा सम्मन साथियों के नाम पहुंचा। वह भी समय पर नहीं दिया गया। ताकि मामले की पैरवी और तैयारी करने का मौका नहीं मिल सके।

यह सरकारों के फासीवादी कदमों की बानगी है। जहां पर न्याय के पक्षधर लोगों को अलग-अलग तरह से दमन का शिकार बनाया जा रहा है। आज केंद्र की मोदी सरकार, राज्य की धामी सरकार जिन नीतियों पर चल रही है वह घोर जनविरोधी हैं। हिंदू फासीवाद के रास्ते में आने वाली सभी रुकावटों-बाधाओं को वह सत्ता के जरिए दमन का शिकार बना रहे हैं। इस पूरे मामले की सत्यता से स्थानीय पुलिस-प्रशासन अवगत था। पुलिस मामले में अंतिम रिपोर्ट लगाकर इस मामले को समाप्त कर सकती थी। पुलिस-प्रशासन को पूरे मामले से जानकारी होने के बावजूद भी मुकदमा दर्ज होना यह इसी बात की बानगी है कि हिंदू फासीवाद के रास्ते में आने वाली सभी रुकावटों को दूर किया जाए।

बनभूलपुरा के मामले में शुरुआत से ही बेरुखी का रुख दिखाया गया है। क्योंकि वहां पर बहुसंख्यक आबादी गरीब अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से है। बस्ती के पास गौला नदी पर बना पुल टूटने की जांच होनी थी। परंतु रहस्यमय तरीके से बनभूलपुरा के निवासियों को गौला नदी पर बने पुल टूटने का आरोपी मान लिया गया। बाद में रेलवे ने इस जमीन पर रह रहे लोगों को रेलवे की जमीन पर कब्जाकारी और जमीन अपनी होने का दावा जताया। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले से बनभूलपुरा के गरीब नागरिकों के आवास खाली कराने तक बात पहुंच गई। फिलहाल उच्चतम न्यायालय के स्टे से मामला रुका हुआ है। आज बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं पर लगाया झूठा मुकदमा भी इसी बेरुखी का एक हिस्सा है।

वक्ताओं ने कहा सरकारों के इन दमनकारी, जन विरोधी, फासीवादी कदमों का पुरजोर तरीके से विरोध किया जाएगा। न्याय के लिए मजबूती से आवाज उठाई जाएगी। बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ता-सदस्य सरकार के इन झूठे मुकदमों और कदमों से हैरान-परेशान नहीं हैं बल्कि वह इन दमनकारी नीतियों का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे हैं और बनभूलपुरा के 50 हजार लोगों के आवास और जीवन की रक्षा की मांग को मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं।

कार्यक्रम में मजदूर सहयोग केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा के सदस्य-कार्यकर्ता मौजूद रहे। -हल्द्वानी संवाददाता

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।