निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी...

पहले तो खबर आयी कि अयोध्या में भाजपा के प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा और अब खबर यह है कि ‘पहली बारिश में ही टपकने लगा श्री राम मंदिर में पानी’। जिस रामपथ के निर्माण के लिए कईयों के घर उजाड़ दिये गये और रोजी-रोटी छीन ली गई उस रामपथ में पहली बारिश में ही 20 स्थानों पर बड़े-बड़े गड्डे बन गये हैं। और उस खबर को कौन भूल सकता है कि मंदिर परिसर और उसके आस-पास की भूमि के क्रय-विक्रय में करोड़ों रुपये के हेर-फेर किये गये।
    
यह भक्तों का भ्रम ही था कि अयोध्या में भाजपा जीतेगी ही जीतेगी। जहां से उम्मीद नहीं थी वहां से भाजपा हार गई। और हद तो यह हो गई कि मोदी जी बमुश्किल जीते। यह भी भ्रम था कि श्री राम मंदिर युगों-युगों तक के लिए निर्मित है। और मंदिर बनाने वालों का कारनामा देखो वह पहली बारिश नहीं झेल पाया। रामपथ बनाने में किसने क्या सामग्री डाली, किस ने क्या निरीक्षण किया कि वह पहली बरसात में ही जगह-जगह से उखड़ गया। गड्डों से भर गया। मोदी जी, योगी जी और भक्त इस पर क्या कहेंगे। 
    
भक्तों का अपने नेता पर, उसके नारों पर, उसके कार्यों पर बहुत-बहुत भरोसा था। समय ने साबित किया न तो नेता न उसके नारे और न उसके कार्य करिश्मा दिखा सके। परन्तु अग्यानी क्या करें। वे अपने भ्रम को समझ ही नहीं सकते। तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा निज भ्रम...। वे तो अयोध्या में मिली हार के लिए अयोध्या वालों को गरिया रहे हैं। 
 

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को