अर्थव्यवस्था

टी बी रोधी दवाओं की किल्लत

मोदी सरकार की घोषणा है कि 2025 तक भारत को टी बी से मुक्त कर दिया जाएगा। पहले की 2030 तक की समय सीमा को पांच वर्ष कम कर यह लक्ष्य लिया गया। लेकिन जैसा कि मोदी सरकार की आम

भारत में पढ़े-लिखे नौजवानों में बढ़ती बेरोजगारी

चुनावी साल है, ‘नये वोटर’ को रिझाने के लिए राजनीतिक दल कलाबाजियां कर रहे हैं। लेकिन इस सब के बीच देश में नौजवानों की क्या स्थिति है? पढ़ा लिखा नौजवान घर पर क्यों बैठा है?

खुश हो जाइये ! अब अपन गरीब नहीं रहे !

इंदिरा गांधी ने 70 के दशक में जब गरीबी हटाओ का नारा दिया था तो देश के सारे गरीब-मजलूम खुश हो गये थे कि चलो अब हमारे दिन बहुरेंगे। पर इंदिरा गांधी को गरीबी हटाने का असली फ

वैश्विक निवेशक समिट और मोदी

2002 के गुजरात दंगों के आयोजन के बाद गुजरात के तब के मुख्यमंत्री रहे मोदी ने 2003 में वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन करवाया था। यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स सम्मेलन था जिसमें देशी और

ऊंची विकास दर की असलियत

भारत सरकार ने वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही के आंकड़े जारी कर दिये हैं। इन आंकड़ों के अनुसार दूसरी तिमाही (जुलाई-सितम्बर 2023) के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 7.

नोटबंदी के सात साल

विगत 8 नवम्बर को नोटबंदी के 7 साल पूरे हो गये। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 2016 की 8 नवम्बर को रात 8 बजे अचानक टीवी पर प्रकट होकर की गई नोटबंदी की घोषणा, इससे जुड़े

आटा और डाटा

देश के संघी प्रधानमंत्री ने संघ परिवार के जमीनी प्रचार को यह सीख दी कि वे जाकर जनता को यह बतायें कि यदि आटा महंगा हुआ है तो डाटा उससे भी ज्यादा सस्ता हुआ है। इसलिए संघी स

महंगाई की मार: कहां गई मोदी सरकार?

टमाटर समेत लगभग सभी सब्जियों के आसमान छूते भावों ने गरीब आदमी ही नहीं मध्यमवर्गीय लोगों तक के होश उड़ा दिये हैं। कभी चुनावों के वक्त ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।