अर्थव्यवस्था

सब्सिडी खर्च बढ़ाने को मजबूर सरकार

केन्द्र सरकार ने सब्सिडी सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त सब्सिडी बिल संसद में अनुमति के लिए पेश किया और उसे तत्काल अनुमति मिल गयी।

जच्चा-बच्चा मौत के मामले में भारत की स्थिति चिंताजनक

दुनिया भर में जच्चा-बच्चा की होने वाली मौतों के मामले में भारत की स्थिति अत्यधिक खराब एवं चिंताजनक है। मातृ दिवस के अवसर पर दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में हुए ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृ नवजात स्वा

अमृतकाल किसके लिए ?

सरकार द्वारा घोषित अमृतकाल में हम लोग रह रहे हैं। इस पर सवाल उठना लाजिमी है कि यह तथाकथित अमृतकाल किसके लिए अमृतकाल है और किसके लिए विषकाल?

आंकड़ों की एक और बाजीगरी

भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर पिछले कुछ समय से सवाल उठने शुरू हो गये हैं। आज सरकार अलग-अलग तरह के हेर-फेर के जरिए अपने मनमाफिक आंकड़े जुटाने में लगी रहती है। ऐसा ही कुछ अभी जारी पी

युवाओं की हत्यारी व्यवस्था

हमारे देश में युवाओं की आत्महत्या का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। बढ़ती बेरोजगारी, असुरक्षित भविष्य, संबंधों में व्यक्तिवाद का बोलबाला आदि बड़े पैमाने पर युवाओं को अलगाव, अवसाद की ओर ढकेल रहे हैं। आत्महत्या

अडाणी के साथ गोता लगाते कर्जदाता एलआईसी व बैंक

हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के चलते अडाणी के शेयरों में गिरावट का दौर जारी है। खुद अडाणी दुनिया के तीसरे नम्बर के धनाढ्य से 38 वें स्थान पर खिसक गये हैं। बीते एक माह में उनकी कंपनियों के शेयरों का बाजार पूं

भारत का चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा

चीन भारत का अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत का कुल व्यापार वर्ष 2021-22 में 1035 अरब डालर का हुआ। इसमें चीन के साथ 115.83 अरब डालर का व्यापार हुआ। यह कुल व्यापार का 11.19 प

मनरेगा और वित्तमंत्री का अर्द्धसत्य बयान

बीते दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में बताया कि मनरेगा के तहत काम की मांग लगातार गिर रही है। इस तरह इस बयान के जरिये वित्त मंत्री ने यह दिखलाने की कोशिश की कि भारतीय अर्थव्यवस्था सुधर

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।