सब्सिडी खर्च बढ़ाने को मजबूर सरकार

केन्द्र सरकार ने सब्सिडी सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त सब्सिडी बिल संसद में अनुमति के लिए पेश किया और उसे तत्काल अनुमति मिल गयी।

सरकार की आम नीति उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों के तहत जनता की जरूरतों पर दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती की है। इसके उलट सरकार पूंजीपतियों पर तरह-तरह से पैसा लुटाती रही है।

सरकार ने अतिरिक्त खर्च के लिए 214580.88 करोड़ रुपये का सब्सिडी बिल संसद में मंजूरी के लिए पेश किया। इस सब्सिडी बिल में वित्त मंत्रालय 109288.95 करोड़ रुपया उर्वरक, 80348.25 करोड़ रुपया खाद्य वस्तुएं और 24943.68 करोड़ रुपया पेट्रोलियम उत्पादों के लिए अतिरिक्त देगा।

वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते समय सब्सिडी के लिए 317865.91 रुपया रखा गया था। तो अतिरिक्त सब्सिडी बिल को मिलाकर वित्त वर्ष 2022-23 का पूरा सब्सिडी बिल 532446.79 करोड़ रुपये का हो जायेगा। इसमें कुल खाद्य सब्सिडी 287179.34 करोड़ रुपया, उर्वरक सब्सिडी 214571.27 करोड़ रुपया और पेट्रोलियम उत्पादों पर 30756.18 करोड़ रुपया सब्सिडी हो जायेगा। अगर पिछले वर्ष 2021-22 की बात करें तो इस वर्ष कुल 4.46 लाख करोड रु. की सब्सिडी दी गयी थी। सरकार ने नये वर्ष में इसे घटाकर 3.17 करोड़ रु. करने की सोच से प्रस्थान किया था। ऐसा तभी संभव था जब सरकार अपने मुफ्त राशन वितरण के कार्यक्रम को बंद कर देती व खाद-पेट्रोलियम की कीमतें नहीं बढ़तीं।

सरकार की योजना ऐसी ही थी कि मुफ्त खाद्यान्न वितरण कार्यक्रम बंद कर दिया जाये। पर कोविड का खतरा व अर्थव्यवस्था की बदहाली उसे बारम्बार इस कार्यक्रम को बढ़ाने पर मजबूर करता रहा। अब एक बार फिर सरकार ने इसे जनवितरण प्रणाली के तहत लागू खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अगले वर्ष देने की भी घोषणा कर दी है। पूर्व में चल रही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना बंद कर अब राशन की दुकान में ही मुफ्त अनाज सरकार देगी।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम व खाद के दाम बढ़ने ने भी सरकार को अतिरिक्त सब्सिडी खर्च की ओर धकेला। पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस के दामों में वृद्धि का बोझ सरकार ने जनता पर डाला। हालांकि पेट्रोल-डीजल के मामले में सरकार द्वारा बीते वर्षों में बढ़ाये करोें की प्रमुख भूमिका रही। पर खाद के दाम बढ़ने पर सरकार इसका बोझ किसानों पर डालने की हिम्मत नहीं कर सकी। फलतः इस मद में सरकार को 1.09 लाख करोड़ रु. अतिरिक्त खर्च करना पड़ा। रसोई गैस पर 24943.68 करोड़ रु. की सब्सिडी देने की भी बात सरकार कहती है।

सरकार के बीते 2-3 वर्षों का व्यवहार इसके घोर जनविरोधी होने को दिखाता है। दुनिया के तमाम देशों ने कोविड महामारी के वक्त जहां पूंजीपतियों पर भारी पैसा लुटाया वहीं अपनी जनता की राहत के भी कुछ इंतजाम किये। पर भारत सरकार पूंजीपतियों पर तो भारी पैसा लुटाती रही पर सब्सिडी व जनराहत पर जुमलों से ज्यादा खर्च को तैयार नहीं हुई। जनता की भूखमरी की स्थिति लॉकडाउन से खड़ी कर कुछ किलो मुफ्त राशन देने पर ही सरकार अपनी पीठ ठोंकती रही। यह मुफ्त राशन भी देने से वह हर नये वर्ष में बचने की योजना बनाती रही पर जनता की बदहाली बारम्बार उसे इस योजना को आगे बढ़ाने को मजबूर करती रही।

आज भारतीय अर्थव्यवस्था ऐसे आर्थिक संकट में है जहां पर मैनुफैक्चरिंग पिछले साल की तुलना में 5-6 प्रतिशत सिकुड़ गयी है। जबकि पिछले साल अक्टूबर में इसमें 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। मैनुफैक्चरिंग का भार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 77.6 प्रतिशत है। निर्यात में भी अक्टूबर महीने में पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में 16.7 प्रतिशत की गिरावट आयी है। एम एस एम ई कम्पनियां वर्ष 2016 से ही संकटग्रस्त हैं। इसकी लाखों इकाईयां बंद हो चुकी हैं। इन सभी कारणों से बेरोजगारी में भारी इजाफा हुआ है। सेण्टर फार इंडियन इकोनामी के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं। इसने 19 दिसम्बर 2022 को जो आंकड़े पेश किये हैं उसके अनुसार देश में बेरोजगारी दर 9.11 प्रतिशत हो गयी है। यह बेरोजगारी दर उन लोगों का आंकड़ा है जो काम करना चाहते हैं और उसके लिए प्रयासरत हैं। जबकि बड़ी संख्या हमारे देश में ऐसे लोगों की है जो रोजगार तलाशते-तलाशते थक गये और उन्हें काम नहीं मिला। उन्होंने अब रोजगार के लिए प्रयास करना छोड़ दिया है। अर्थात् देश में बेरोजगारी दर 9.11 प्रतिशत से काफी ज्यादा है। महंगाई ऊपर से लोगों की कमर तोड़े हुए है। ऐसी स्थिति में निम्न मध्यम वर्ग की एक बड़ी संख्या गरीबी रेखा से नीचे आ गयी है।

अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के मामले में सरकार को कोई नीति नहीं सूझ रही है। सरकार नीति के मामले में लकवाग्रस्त है। अगले साल कई राज्यों मेघालय, त्रिपुरा, नागालैण्ड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलगांना और राजस्थान में विधान सभा चुनाव हैं। इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव हैं। इसको ध्यान में रखते हुए यह फासीवादी सरकार अपनी प्रकृति के अनुसार नाम मात्र का दिखावटी लोकरंजक कार्यक्रम लेकर आयेगी और उसका खूब प्रचार करेगी। इसी के तहत खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री पीयूष गोयल ने घोषणा की कि अब सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत 81.3 करोड़ लोगों को प्रति माह 5 किलो ग्राम अनाज मुफ्त में देगी। इनके लिए लगभग 2 लाख करोड़ रुपया सब्सिडी पर खर्च आयेगा। जबकि उर्वरक एवं एलपीजी पर सरकार सब्सिडी को घटाने का प्रयास करेगी। जिसका बोझ किसानों एवं गरीब जनता को भुगतना पड़ेगा।

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।