ककराला (बदायूं) के नागरिकों पर योगी सरकार का जुल्म

[ककराला (बदायूं) में एक जांच दल गया। इसमें यूपी डेमोक्रेटिक फोरम के अजीत, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के सतीश और ए पी सी आर के कार्यकर्ता शामिल रहे। जांच के आधार पर रिपोर्ट निम्नवत है]

बदायूं शहर से लगभग 15 किमी. दूर एक कस्बा ककराला है। यह नगर पंचायत है। लगभग 90 प्रतिशत आबादी यहां मुस्लिम है। चेयरमैन मुस्लिम हैं जो पूर्व के बसपा विधायक की पत्नी हैं। क्षेत्र से विधायक ज्यादातर सपा और बसपा से रहे हैं। 2017 में यहां से भाजपा का विधायक था जिसे 2022 के विधान सभा चुनाव में सपा के प्रत्याशी ने हरा दिया।

कस्बे में मुस्लिम समुदाय भी कई राजनीतिक गुटों में बंटा हुआ है। कुछ धार्मिक गुरू भी राजनीतिक हस्तक्षेप रखते हैं। इस इलाके का अधिकांश वोट सपा को जाता रहा है। ऐसे इलाके जहां मुस्लिम वोट बहुसंख्या में हैं वे इलाके वर्तमान योगी सरकार को अखरते रहे हैं। ये इसे अपने धार्मिक धु्रवीकरण के औजार बनाते हैं और जान-बूझकर उकसावे की कार्यवाहियां करते हैं जिससे मुस्लिम समुदाय भड़के और फिर उसे दमन का शिकार बनाया जाए। इस काम के लिए शासन-प्रशासन का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है।

चुनाव या किन्ही त्यौहारों के समय पुलिस फ्लैग मार्च करती है। पिछले कुछ समय से ये परंपरा सी बन गई है। यह भी खासकर मुस्लिम इलाकों में ही किया जाता है। प्रचारित किया जाता है कि ये संवेदनशील इलाके हैं। यह कहकर अन्य समुदायों में ये स्थापित करने की कोशिश की जाती है कि ये लोग अराजक हैं। इस तरह के मार्चों से शांति तो कम लेकिन जनता में दहशत फैलाने का काम ज्यादा होता है।

ऐसा ही फ्लैग मार्च 9 दिसंबर 2022 को ककराला में चल रहा था। फ्लैग मार्च के दौरान पुलिस ने ककराला में संदेहास्पद लोगों का बहाना बनाकर गाड़ियों की चेकिंग शुरू कर दी। चेकिंग में एक मुस्लिम नौजवान की बाइक को रोका गया। उस पर एक अन्य नौजवान भी बैठा था। उसके कागजात चेक किए गए। इसी समय उससे बहस हो गई। आरोप है कि इस बाइक चालक युवक रेहान से मारपीट भी की गई और वह बेहोश हो गया। पुलिस ने उसे एक चौराहे पर लिटा दिया। जहां उसके परिवार के सभी लोग आ गए।

रेहान को ककराला पुलिस चौकी की पुलिस ने मई/जून के महीने में किसी मामले में गिरफ्तार किया था। उसके बाद उसे थर्ड डिग्री टार्चर किया जिसमें उसे शारीरिक चोटों के अलावा गहरा मानसिक आघात पहुंचा। बाद में पुलिस ने उसे छोड़ दिया। उसके परिवार वालों ने बदायूं से बाहर किसी शहर में उसका इलाज करवाया। तभी से वह अस्वस्थ है और उसे दौरे पड़ते हैं, खासकर पुलिस को देखकर दहशत में आने से उसे दौरे पड़ जाते हैं।

इस घटना की वजह से नगरवासियों में पुलिस के खिलाफ पहले से ही आक्रोश था। इस मामले में कई पुलिस वाले सस्पेंड भी चल रहे थे। लोगों का यह भी कहना था कि पुलिस रेहान के परिवार पर ले-देकर मुकदमा वापस करने का दबाव भी बना रही है। कुछ दिन पहले ही पुलिस उसके घर वालों से मिली भी थी।

ऐसे में इस वक्त चेकिंग के नाम पर रेहान के साथ पुलिस द्वारा दोबारा वही सुलूक करना लोगों के गुस्से का कारण बन गया। लोग इकट्ठे होने लगे। उसके बाद भीड़ पुरानी पुलिस चौकी पहुंची और नारेबाजी होने लगी, मेन रोड जाम कर दिया गया। सी.ओ. सहित काफी संख्या में पुलिस बल तैनात था। लोगों का यह भी कहना था कि जब भीड़ जमा हो गई तो पुलिस ने समझा कर भीड़ को हटाने का प्रयास किया, लेकिन महिलाएं ज्यादा गुस्से में थीं। यहीं पर एक सवारियों से भरी बस भी खड़ी थी उसे नहीं निकलने दिया जा रहा था। पुलिस ने बस को पहले तो निकलवाने का प्रयास किया। बाद में बस पीछे हटवा ली गई। इसी दौरान पथराव शुरू हो गया। पथराव शुरू कैसे हुआ इस पर लोगों की अलग-अलग राय है।

पुलिस और भीड़ दोनों की ओर से पथराव हुआ। पथराव लगभग एक से डेढ़ घंटे तक चला। कुछ पुलिस वाले भी घायल हुए। लोगों ने दुकानें बंद कर दीं। कुछ का कहना है दुकानों पर भी पथराव हुआ।

इसके बाद पी.ए.सी. और अतिरिक्त पुलिस आने के बाद पथराव रुका। पुलिस ने 28 नामजद और 300 अज्ञात के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। उसके बाद गिरफ्तारियों का दौर शुरू हुआ। इसका मुख्य आरोपी नजमुल को बनाया गया जो स्थानीय नेता भी है। वह डोडा और मीट का कारोबार करता है। दूसरा मुख्य आरोपी अमजद है जो कि नशे का कारोबार करता है। पुलिस दोनों को शातिर अपराधी मानती है। लेकिन घटना के कई दिन पहले से ये लोग कस्बे में नहीं थे, ऐसा लोगों का कहना है। पुलिस इन्हें अभी गिरफ्तार नहीं कर पाई है। लोगों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस वीडियो और सी.सी.टी.वी. फुटेज खंगाल रही है। लेकिन घटना स्थल काफी व्यस्त इलाका है जिसमें लोगों की आवाजाही बहुत है। ऐसे में जो लोग घटना में शामिल नहीं हैं उनको भी फर्जी तरीके से आतंकित करने के लिए गिरफ्तार करने की संभावना ज्यादा है। अभी तक पुलिस, नामजद में से 8 लोगों को तथा कुल 36 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है। गिरफ्तारी के लिए फुटेज के आधार पर दबिश देने की बात की जा रही है। पुलिस ने कुछ घरों में तोड़-फोड़ भी की है।

लोग डर की वजह से इधर-उधर गायब हैं। जब लोग घरों में नहीं मिल रहे हैं तो पुलिस महिलाओं को उठा ले जा रही है। कुछ महिलाओं ने बताया कि उनके साथ मारपीट भी की गई। उनसे कहा गया कि आरोपी को पुलिस के हवाले करो। कुछ लोगों को पुलिस पकड़ कर ले गई और उनके साथ मारपीट की तथा पैसे लेकर छोड़ दिया। इस तरह पैसे उगाहने का खेल भी चल रहा है। लोगों में दहशत बनाकर पैसे की उगाही पुलिस द्वारा की जाने की बात भी सामने आई है।

स्थानीय लोगों में (मुस्लिम समुदाय) में काफी दहशत है। पुलिस भिन्न-भिन्न तरीके से लोगों की गिरफ्तारी के लिए दबाव बना रही है। घटना स्थल के आस-पास के मुस्लिम दुकानदारों में भी डर का माहौल है। कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं था। कुछ हिंदू दुकानदारों ने ही जांच दल से बातचीत की लेकिन उनकी बातचीत भी अधिकांशतः पुलिस पक्षधरता की थी। उनका यह भी कहना था कि पुलिस के माफी मांगने के बाद भी भीड़, खासकर महिलाएं शांत नहीं हो रही थीं। पत्थरबाजी के दौरान भीड़ ने बंद दुकानों के ऊपर भी पत्थरबाजी की।

लेकिन पीड़ितों व जेल भेजे गए लोगों के परिवारों से मिलने पर स्थिति उल्टी ही मिली। लोगों ने पुलिस दमन की दास्तान को बताया। कई लोगों के घरों में तोड़-फोड़ की गई।

तमाम लोग डर के कारण घर बार छोड़कर चले गए हैं। एक व्यक्ति के बेटे की गिरफ्तारी के कारण दहशत में उसकी मृत्यु हो गई। एक परिवार घर छोड़कर दूसरी जगह गया वहां उसके बेटे की मृत्यु छत से गिरने के कारण हो गई। मुख्य आरोपी नजमुल की बदायूं शहर स्थित एक बिल्डिंग को ध्वस्त कर दिया गया है। वहीं पुलिस जब गिरफ्तारी को जा रही है और जो लोग नहीं मिल रहे हैं तो पुलिस व नगरपालिका मिलकर उनके घरों पर लाल निशान लगा रहे हैं। और मकानों को तोड़ने की धमकियां दी जा रही हैं। समाचार पत्रों में लगातार पुलिस प्रशासन द्वारा सख्त कार्यवाही और ध्वस्तीकरण की धमकियां लोगों में डर बढ़ा रही हैं।

इस पूरे दमन चक्र में स्थानीय विधायक, सांसद, नगर पालिका के नेता तथा मुस्लिमों की रहनुमाई करने के दावे पर वोट हासिल करने वाले लोग तथा पार्टियों के नेता कहीं भी नजर नहीं आए। लोग पुलिस व फासीवादी सरकार के दमन के शिकार हो रहे हैं। नेता अगले चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं। ये ऐसे लोग हैं जो फासीवादी हमले से जनता को नहीं बचा सकते सिर्फ उनके डर तथा असुरक्षा का दोहन करके वोट हासिल कर लेते हैं। आज इनको बेनकाब करने की जरूरत है।

इस काम को छोटे-छोटे संगठन जो मानव अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्होंने ही आगे बढ़कर पीड़ित लोगों से मिलने की हिम्मत जुटाई। और अपनी क्षमता भर जो भी कर सकते थे उनकी मदद की। जांच दल के जाने के बाद लोगों का इस दमन की ओर ध्यान गया। कुछ धार्मिक संगठन भी सक्रिय हुए। यू पी डेमोक्रेटिक फोरम के लोग बरेली में कमिश्नर से भी मिले। इसके अलावा पीड़ित परिवारों की महिलाओं ने बदायूं जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया तथा एक ज्ञापन सौंपा। जिसमें मांग की गई कि बुलडोजर पर रोक लगाई जाए। घटना की न्यायिक जांच कराई जाए, आदि मांगें उठाई गयीं। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भागीदारी की। इस सब से अब लोगों को कुछ राहत है। लेकिन गिरफ्तारियों व बुलडोजर का आतंक अभी बना हुआ है।

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